ऐसे शुरू हुआ था मौत का तांडव, पत्तों की तरह बिखरी थी लाशें, 40 साल बाद भी नहीं भरे जख्म
mp news-2 दिसंबर 1984 की रात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक हादसा हुआ था, जिसके निशान आज भी देखने को मिलते हैं. भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इतने सालों बाद भी लोगों के जख्म हरे हैं. जानिए इस त्रासदी की पूरी कहानी
madhya pradesh news-2 दिसंबर साल 1984 की वो रात, कड़ाके की सर्दी, और भोपाल शहर. लोग सर्दी के इस मौसम में चैन की नींद सो रहे थे, लेकिन सोते हुए उन लोगों को क्या पता था कि उनमें से कई लोग आने वाले कल का सूरज नहीं देख पाएंगे. ये कहानी है भोपाल गैस त्रासदी की, 2 दिसंबर का वो काला दिन जिसे याद कर भोपाल के लोगों की रूह कांप जाती है. आज भी लोगों की आंखों से आंसु छलक पड़ते हैं.
इन 40 सालों के बाद भी लोग अपना दर्द बयां नहीं कर पाते हैं. इतने सालों के बाद भी गैस त्रासदी के पीड़ित मुआवजे और न्याय की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं.
कैसे हुआ था हादसा
2 दिसंबर की आधी रात का समय था, भोपाल में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड में वर्कर्स काम कर रहे थे. इस फैक्ट्री में कीटनाशक बनाई जाती थी, दवा बनाने के लिए मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की गैस इस्तेमाल किया जाता था. कर्मचारी वहां मौजूद केमिकल प्रोसेसिंग यूनिट की सफाई कर रहे थे. इसी दौरान पानी गैस के स्टोरेज टैंक तक पहुंचा और केमिकल रिएक्शन शुरू हुआ. गैस का पानी के साथ रिएक्शन बहुत खतरनाक हो जाता है, गैस ने पानी के साथ रिएक्ट करना शुरु हुआ. इसके बाद रिसाव शुरू हुआ, इसका पता उस वक्त चला जब वहां मौजूद कर्मचारियों की आंखे जलना शुरू हुईं.
जान बचाने भागे लोग
गैस लीकेज की जानकारी मिलते ही कंपनी में सायरन बजना शुरू हुआ, लोगों की आंखे जल रही थी और सांस लेने में तकलीफ भी हो रही थी. इमरजेंसी सायरन की आवाज सुनकर लोगों में अफरा-तफरी मच गई, लोंगो का समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, कहां जाए. जिसे जहां जगह मिली उसने वहां दौड़ना शुरु कर दिया. जो लोग इस हादसे में जिंदा बचे उनकी आंखों में आज भी उस काली रात का दर्द दिखाई पड़ता है.
लाशें ही लाशें
3 दिसंबर की सुबह शहर में लाशें ही लाशें नजर आ रही थी. सड़कों और अस्पतालों के बाहर लाशें पड़ी हुई थी, इंसान तो इंसान इस हादसे में जानवरों ने अपनी जान गंवाई थी. अस्पतालों के बाहर लोगों की भारी भीड़ थी, भीड़ के चलते डॉक्टरों ने अस्पतालों के गेट बंद कर दिए. आधिकारिक आंकडे़ मात्र 3 हजार लोगों की मौत का जिक्र करते हैं, लेकिन अनुमान के अनुसार करीब 30 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.
40 साल बाद भी इंतजार
भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी लोगों को भी तक इस त्रासदी के पीड़ित मुआवजे और इंसाफ को लेकर न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं. पीड़ितों को आज भी न्याय का इंतजार है, वो काली रात उनके लिए किसी सदमें से कम नहीं है.