RTE seats decreased: सीएम भूपेश बघेल (Bhupesh baghel) के गृह जिले दुर्ग में शिक्षा व्यवस्था का हाल बेहाल है. पिछले दो साल से लगातार कोरोना संक्रमण के कारण पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी लॉक डाउन लगा हुआ था. जिससे सभी क्षेत्रों में जमकर नुकसान हुआ है. इसी कड़ी में निजी स्कूलों को भी जमकर नुकसान हुआ है. दुर्ग जिले की लगभग 50 से ज्यादा स्कूलों में ताला लटक चुका है. स्कूल बंद हो चुकी है. इसका सबसे ज्यादा असर शिक्षा के अधिकार नियम पर पड़ रहा है. आखिर कैसे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत स्कूलों की सीटें कम हो रही है. आईये जानते हैं...


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गौरतलब है कि अगस्त 2009 में भारत के संसद से नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार एक्ट पारित किया गया था. ये एक ऐतिहासिक कदम था. जिससे 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार हासिल हो सका. शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अच्छी पढ़ाई लिखाई करने वाले होनहार और प्रतिभावान बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल और प्राइवेट स्कूलों में 25% सीटें आरक्षित की गई कि इस आरक्षित सीटों पर यह बच्चे पढ़ाई कर सके और एडमिशन ले सके.


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साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण सूबे के सबसे वीवीआईपी जिला कहलाने वाले दुर्ग में स्कूल संचालकों ने स्कूल चलाने में असमर्थता जताई. जिससे जिले के कुल 50 से ज्यादा स्कूलों के संचालकों ने मान्यता खत्म करने आवेदन दिया है. इनमें प्राइमरी और मीडिल स्कूल शामिल हैं. जिसके बाद शिक्षा विभाग ने उन स्कूलों की मान्यता को ख़त्म करने की कार्रवाई शुरू कर दी है.


स्कूलों की सीट घट गई
शिक्षा विभाग के मुताबिक सबसे ज्यादा स्कूल सत्र 2020-21 में बंद हुए. लॉकडाउन के कारण कई पालकों की नौकरी छूट गई और स्कूलों की फीस भरनी बंद कर दी गई. जिसके बाद स्कूलों में तालाबंदी की नौबत आ गई. इस स्कूल बंदी के कारण अब सबसे ज्यादा मुसीबत में आरटीई में पढ़ने वाले बच्चे हैं. हालांकि विभाग ने इन बच्चों को आसपास के स्कूलों में शिफ्ट करने की तैयारी कर ली है. लेकिन देखा जाए तो दुर्ग जिले में आरटीई की 6000 सीटें आरक्षित थी. जिसके अंतर्गत बच्चों को एडमिशन मिला करता था. 50 से ज्यादा स्कूल बंद होने के बाद अब महज 4886 सीट ही बची है. मतलब जिले में 1110 सीट घट चुकी हैं.


बच्चों का भविष्य अधर में लटका
हालांकि छत्तीसगढ़ की सरकार ने स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल के जरिए कोशिश की है कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए और प्राइवेट स्कूलों के जैसे ही शिक्षा प्रणाली भी लागू की गई है. लेकिन सभी बच्चों का एडमिशन संभव नहीं है क्योंकि आत्मानंद स्कूल में भी लिमिटेड सीट है. जिसके कारण बच्चे एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं. बरहाल अब सीट कम होने के कारण बच्चों की पढ़ाई अधर में लटकी है. शिक्षा विभाग को इस ओर कोई जरूरी ठोस पहल करने की आवश्यकता है.


रिपोर्ट- हितेश शर्मा..