रायपुर: हसदेव अरण्य मामले (Hasdev Aranya issue) पर छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल (Chhattisgarh CM Bhupesh Baghel) ने मीडिया से चर्चा में कहा कि आदिवासी अगर पदयात्रा कर रहे हैं, तो उसमें कोई मनाही नहीं है. उन्हें अपनी बात रखने का हक है. बघेल ने कहा कि बता दूं नो गो एरिया को लेकर भारत सरकार की तरफ से लिखित में कोई दस्तावेज़ नहीं हैं. भारत सरकार ने 452 वर्ग किलोमीटर की बात कही थी. हम तो 1995 वर्ग किलोमीटर का दायरा रख रहे हैं. 


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दिए गए आदेश और निर्देश का पालन करेंगे
हसदेव अरण्य मामले पर सीएम बघेल ने कहा कि पैसा लेकर अब तक ड्राफ्ट तैयार नहीं हुआ है. जिनकी जिम्मेदारी थी, जिन्हें चर्चा करके ड्राफ्ट तैयार करना था, उन्होंने अब तक दस्तावेज़ नहीं सौंपे हैं. ये कौन लोग हैं आप जानते हैं. सीएम ने कहा राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख है. उनकी तरफ से जो भी आदेश और निर्देश दिए जाएंगे. उसका हम पालन करेंगे. हाल ही में कई किलोमीटर चलकर आदिवासी सीएम से मिलने पहुंचे थे, जहां वो जमीन मामले पर अपनी बात रखना चाहते थे. लेकिन सीएम उस समय उनसे मुलाकात नहीं कर पाए थे, जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने गांव वालों से मुलाकार कर उनकी परेशानी सुनी और उन्हें भरोसा दिया कि मामले पर वो चर्चा कर हल देखेंगे. 


 


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क्या है नो गो एरिया का मामला
सरगुजा और कोरबा के जिलों में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे घने और पुराने जंगलों में से हैं. पर्यावरणविदों की माने तो इसे “छत्तीसगढ़ के फेफड़े” कहा जाना गलत नहीं होगा. 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया था. जब जयराम रमेश केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री थे तो तब नो गो एरिया की शुरूआत की गई थी. इसके अधीन आने वाले एरिया में खदानों को अनुमति नहीं दी जाती है. बता दे ग्रामीणों ने 4 अक्टूबर से हसदेव अरण्य बचाओ पदयात्रा शुरू की थी. इसके बाद वो बुधवार को रायपुर पहुंचे थे. 


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आई पर हालात नही बदले
2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित हुआ था. इसके बाद थोड़े दिन हालात सामान्य रहे. आदिवासियों का आरोप है कि बाद में वहां बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ. इसे लेकर ग्रामीणों ने विरोध आंदोलन शुरू किया. 2015 में राहुल गांधी भी इस क्षेत्र में पहुंचे थे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन भी किया और वहां खनन पर रोक लगवाने का भरोसा दिलाया था. 


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