लोकल बॉडी इलेक्शन के मायने गुजरते वक्त के साथ काफी बढ़ गए हैं. इसके वजह ये है कि सियासी दलों को पता चल जाता है कि उनकी बात आम जनता तक कितनी पहुंची.
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प्रिया सिन्हाः नया साल आ चुका है. नई खुशियों को लिए. नई उम्मीदों को लिए. उम्मीदों की बात आई है तो सियासत की बात करना जरूरी है. 2022 कई राजनेताओं के लिए बेहद अहम रहने वाला है क्योंकि इस साल देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों के चुनाव परिणाम आने वाले वक्त में सियासत की दशा और दिशा तय करेंगे. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में चुनाव 2023 में होने हैं लेकिन उससे पहले साल 2022 में भी चुनावी हलचलें दोनों ही राज्यों में तेज नजर आएंगी. चूंकि आम तौर पर चुनाव की फाइनल तैयारियां घोषणा से साल भर पहले शुरू हो जाती है. साथ ही 2022 में इन दोनों राज्यों में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, जो कि राजनीति में लिटमस टेस्ट से कम नहीं माने जाते.
जाहिर है सभी दल इन स्थानीय चुनावों में बढ़त बनाना चाहेगें. आंकड़ों पर ध्यान दें तो मध्यप्रदेश में 230 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को 109, कांग्रेस को 114 बल्कि अन्य को 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कमलनाथ की सरकार बन गई. लेकिन फिर बगावतों का दौर शुरू हुआ. कई कद्दावर चेहरों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया. डेढ़ साल में सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बन गई.
वहीं छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के पक्ष में ही नतीजे आएं. 15 साल से सत्ता में काबिज बीजेपी को इन चुनावों में सिर्फ 15 सीटें ही मिलीं. 90 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 68 पर विजय पताका लहराया. बाकी सीटें जोगी कांग्रेस और अन्य के खातों में गईं.
हालांकि अब परिस्थितियां अलग हैं. दोनों ही दलों के सामने चुनौतियां भी अधिक है. ऐसे में कोशिश दोनों ही दलों की है कि नतीजें उन के पक्ष में आएं. और इसके लिए पार्टी एड़ी चोटी का जोर भी लगा रही हैं. नए साल में ये कोशिशें और भी तेज होंगी.
गांव और शहर की सरकार के लिए शुरू होगी जंग!
लोकल बॉडी इलेक्शन के मायने गुजरते वक्त के साथ काफी बढ़ गए हैं. इसके वजह ये है कि सियासी दलों को पता चल जाता है कि उनकी बात आम जनता तक कितनी पहुंची. सरकार अपनी उपलब्धि जनता तक पहुंचाती है, वहीं विपक्ष सरकार की असफलता. गांव और शहरों का मिजाज़ क्या है कि ये इन चुनावों से पता चल जाता है. योजनाएं जो बनाई गईं हैं वो जनता तक कितनी पहुंची और वोट में कितनी तब्दील हुई. वहीं विपक्ष के आरोपों में कितना दम है वो भी आम जनता बता देती है.
मध्यप्रदेश की स्थिति छत्तीसगढ़ से अलग जरूर है.यहां पंचायत और निकाय दोनों ही चुनाव कानूनी दावपेंच में फंसे हैं. लेकिन उम्मीद है कि 2022 में ये पेंच सुलझे और मध्यप्रदेश में गांव और शहर की सरकार बनें और जब ऐसा होगा सियासी गर्माहट और भी बढ़ जाएगी. कुल मिलाकर साल 2022 दोनों सूबे की सियासत को एक नया रंग देगा. और 2023 की चुनावी तैयारियों को नई धार.