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ओपी तिवारी/सूरजपुर: जहां एक ओर आज पूरा देश असत्य पर सत्य की जीत का त्योहार दशहरा रावण दहन करके मना रहा है. वहीं सूरजपुर जिले का एक तबका पिछले कई वर्षों से रावण दहन का विरोध कर रहा है और इस परंपरा को बंद करने के लिए कलेक्टर से लेकर राष्ट्रपति तक लिखित मांग कर चुका है.
दरअसल सूरजपुर जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां के आदिवासी अपनी अलग रीति-रिवाज और परंपरा के लिए जाने जाते हैं. जिले में एक आदिवासी वर्ग ऐसे भी हैं, जो रावण को अपना इष्ट देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं. यही वजह है कि यह समाज पिछले कई सालों से रावण दहन का विरोध कर रहा है और कलेक्टर, राज्यपाल और राष्ट्रपति तक से लिखित ज्ञापन सौंपकर पूरे देश में रावण दहन की परंपरा को बंद करने की मांग की है.
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विश्व के सबसे बड़े ज्ञानी थे
आदिवासियों की मानें तो उनके अनुसार रावण उनका इष्ट देवता होने के साथ विश्व के सबसे बड़े ज्ञानी भी है. वे रावण दहन के विरोध पर संविधान के अनुच्छेद 153 और 198 की भी बात करते हैं. उनके अनुसार इस अनुच्छेद में यह साफ तौर पर लिखा गया है कि हर व्यक्ति को अपने परंपरा के अनुसार अपना धर्म मानने की आजादी है. यह आदिवासी समाज पिछले कई वर्षों से शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांग रहा है लेकिन मांग ना पूरी होने की स्थिति में अब वह आंदोलन की बात कर रहे हैं.
आदिवासियों को बहलाया
वहीं स्थानीय लोगों के अनुसार सभी आदिवासी रावण दहन का विरोध नहीं करते हैं, बल्कि कुछ अज्ञानी लोग हैं जो अपना निजी स्वार्थ साधने के लिए भोले-भाले आदिवासियों को बहला-फुसलाकर गुमराह कर रहे हैं.
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बता दें कि धर्म एवं परंपरा को लेकर बहस कोई नई बात नहीं है, लेकिन इन आदिवासी समूहों के द्वारा रावण दहन पर पाबंदी की मांग ने एक नई बहस की शुरुआत कर दी है, अब देखने वाली बात यह होगी कि इस बहस का नतीजा क्या निकलता है?