ददन विश्वकर्मा/भोपाल: स्टार प्रचारक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को राहत दी है. फैसले के बाद कमलनाथ वापस स्टार प्रचारक की श्रेणी में आ गए हैं. चूंकि प्रचार खत्म हो चुका है, लिहाजा इस फैसले से कांग्रेस को कोई विशेष फायदा होने वाला नहीं है. यह बात जरूर है कि कांग्रेस पार्टी और कमलनाथ इसे अपनी जीत के तौर पर देख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कमलनाथ के बेटे और छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ ने लिखा कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं. 



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क्या है मामला?
मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को 28 सीटों पर उप चुनाव होना है. इसके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही रैलियां और प्रचार कर रहे थे. कमलनाथ भी डबरा में प्रचार करने पहुंचे थे. इस दौरान मंच से उन्होंने इमरती देवी को आइटम कहा था. उनका यह वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. जिसे लेकर सत्ता दल बीजेपी चुनाव आयोग पहुंच गया था और उनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ विवादित बयानबाजी की शिकायत दर्ज करवाई थी.


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इसके बाद क्या हुआ था?
इमरती देवी पर किए गए आपत्तिजनक बयान की शिकायत भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव आयोग में की थी. इसके बाद
चुनाव आयोग ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का स्टार प्रचारक का दर्जा वापस ले लिया गया था. चुनाव आयोग के आदेश को कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम में चैलेंज किया था. जिस पर सोमवार को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है किसी पार्टी का नेता कौन हो, तय करने का अधिकार चुनाव आयोग को कैसे? यह सवाल उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगा दी.


अब क्या होगा?
हालांकि चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है और अब कोई भी स्टार प्रचारक प्रचार नहीं कर सकता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए इस फैसले से कमलनाथ और उनके समर्थक राहत की सांस ले सकते हैं क्योंकि जिस आरोप को लेकर उनसे स्टार प्रचारक का तमगा छीना गया था वह इस फैसले से वापस मिल गया है. आरोप भी खत्म हो गया है. पार्टी लिहाज से यह एक सैद्धांतिक जीत है. क्योंकि कमलनाथ की शिकायत बीजेपी ने चुनाव आयोग से की थी. 


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क्या होता है स्टार प्रचारक का दर्जा?
चुनाव में प्रचार के लिए पार्टियां स्टार प्रचारक तय करती हैं. ये स्टार प्रचारक पार्टी के बड़े-बड़े नेता होते हैं. इनकी रैलियों और सभाओं का खर्च पार्टी वहन करती है. यानी पार्टी प्रत्याशी के प्रचार के खाते में यह पैसा नहीं जुड़ता है. अगर स्टार प्रचारक का दर्ज छिन जाए तो वो नेता जहां भी प्रचार करेगा उसका खर्च पार्टी की बजाय प्रत्याशी के खाते में गिना जाएगा. इसका सीधा असर प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की राशि पर पड़ता है. क्योंकि प्रचार के लिए हर प्रत्याशी को चुनाव आयोग एक सीमित खर्च की अनुमति देता है. 


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