400 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर खंडवा के दादाजी मंदिर पहुंचा जत्था, तीन पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा
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400 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर खंडवा के दादाजी मंदिर पहुंचा जत्था, तीन पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा

1952 से लगातार गुरु पूर्णिमा के अवसर 400 किलोमीटर की पैदल रथ यात्रा कर दादाजी धूनीवाले के मंदिर पहुंचते हैं. यह जत्था एक महीने पहले अपने घर से निकलता है और गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मंदिर पहुंचता है.

400 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर खंडवा के दादाजी मंदिर पहुंचा जत्था, तीन पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा

प्रमोद सिन्हा/खंडवाः आस्था में बड़ी शक्ति होती है. आस्था की शक्ति का नजारा एक बार फिर देखने को मिला है, जहां छिंदवाड़ा के पांढुर्ना का जत्था 400 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके खंडवा के मशहूर दादाजी धूनीवाले के मंदिर पहुंचा है. 40 लोगों के इस जत्थे में महिला, पुरुष और बच्चे भी शामिल हैं. 

जत्थे में शामिल श्रद्धालुओं ने बताया कि वह लोग 1952 से लगातार दादाजी धूनीवाले का रथ पैदल खींचते हुए खंडवा पहुंचते हैं. तीन पीढ़ियों से चली आ रही ये परपंरा आज भी कायम है. श्रद्धालुओं का कहना है कि इसके पीछे दादाजी धूनीवालों के प्रति आस्था और अटूट विश्वास है, जो आज भी कायम है. बता दें कि खंडवा में अवधूत संत दादाजी धूनीवाले का मंदिर है. दादाजी मां नर्मदा के अनन्य भक्त थे और अपने साथ हमेशा धूनी जलाए रहते थे, इसलिए उनका नाम दादाजी धूनीवाले हो गया. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर साल देशभर से लाखों श्रद्धालु दादाजी धूनीवाले मंदिर में दर्शन करने आते हैं. 

ऐसे ही भक्तों में छिंदवाड़ा के पांढुर्ना के भक्तों का जत्था है, जो 1952 से लगातार गुरु पूर्णिमा के अवसर 400 किलोमीटर की पैदल रथ यात्रा कर दादाजी धूनीवाले के मंदिर पहुंचते हैं. यह जत्था एक महीने पहले अपने घर से निकलता है और गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मंदिर पहुंचता है. यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं का कहना है कि दादाजी की प्रेरणा से ही सबकुछ संभव हो जाता है. 

जत्थे में शामिल एक युवक ने बताया कि जब वह मात्र 3 महीने का था और पहली बार अपनी मां की गोद में दादाजी के मंदिर आया था, वह तब से लगातार पिछले 29 सालों से हर साल पैदल यात्रा कर मंदिर पहुंचता है. इस जत्थे में महिलाएं, बच्चे और व्यस्क भी हैं. पांढुर्ना से शुरू हुए इस जत्थे में बैतूल जिले के भक्त भी शामिल हैं. जत्थे में शामिल युवाओं का कहना है कि वह अपने बुजुर्गों की परंपरा का पालन कर रहे हैं और दादाजी के आशीर्वाद से ही उनका जीवन सफलतापूर्वक चल रहा है. 

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