Liquor Bottle Sizes Big Secret: दुनिया में शराब के शौकीन लगभग समाज के हर तबके के लोग हैं. सभी की जरूरत और शराब पीने की खुराक अलग होती है. इन सभी शौकीनों के लिए भारत में 750ml, 375ml, 180ml और 90ml की शराब की बोतलों का प्रचलन हैं, लेकिन आपको बता दें दुनिया भर में शराब की कंपनियां ज्यादातर देशों नें 750ml की बाटल में ही शराब बेंचती हैं. यहां हम आपको बताएंगे आखिर शराब की बोतल का 750ml का पैमानी ही क्यों रखा गया और भारत में बाटलों की इतनी बिरायटी क्यों रखी गई है.


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दुनिया भर की 750ml का पैमाना
दुनिया भर में पहले शराब को बैरल्स में रखा जाता था. 18वीं शताब्दी आते-आते इसे कांच की बोतलों में रखने की सहमती बन गई. उन दिनों बॉटल्स बनाने के लिए 'ग्लास ब्लोइंग' तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. इसमें लोहे की पाइप की मदद से र्गम कांट में फूंक मारी जाती थी. इसमें पाया गया कि सामान्य तौर पर एक सामस में बोतल 650 से अधिकतम 800 एमएल साइज तक ही फूलती थी. बाद में इस बात पर सहमती बनी की बोतल का आदर्श साइज 750ml का होगा.


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भारत में बॉटल्स की बिरायटी
भारत में पूरी बोतल या खम्भा, हाफ बोतल यानी अद्धा, क्वार्टर यानी पव्वा और मिनिएचर यानी बच्चा साइज की शराब की बोतले प्रचलित हैं. इनमें क्रमश: 750ml, 375ml, 180ml और 90ml शरबा की मात्रा आती है. कुछ शरबा कंपनिया 50ml की बॉटल में भी शराब बेंचती है. अब सवाल उठता है की जब दुनियाभर में ज्यादातर देशों में शरबा की बॉटल का आदर्श साइज 750ml है तो भारत में इतने विकल्प क्यों? इस सवाल का उत्तर है उत्तर है मार्केटिंग और शौक.


शराब कंपनियों का मार्केटिंग स्टेटजी
भारत में कंपनियों इस बात का ध्यान दिया कि देश में सभी तबके के लोग हैं. अगर वो शरबा पीते हैं तो उन्हें उनके बजट में शरबा उपलब्ध कराई जाए. कंपनिया ये नहीं चाहती थीं कि बॉटल का विकल्प न होने कारण उन्हें खाटा सहना पड़े. उन्होंने प्रयोग के तौर पर 750ml के अलावा 375ml, 180ml और 90ml की बॉटल में शराब बेचना शुरू किया और वो इस आइडिया में कामयब हो गए. इसके बाद से भारत में ये प्रचलन में आ गया.


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शौकियां लोगों का विकल्प देने के लिए
इसके अलावा कई मार्केंटिंग के जानकार ये भी मानते है कि ज्यादातर लोग जो आम तौर पर शराब नहीं पीते, लेकिन वो शौकिया तौर पर पीना चाहते हैं. ऐसे में वो 750ml की बोतल लेने से केवल इस लिए पीछे हट जाते थे कि कहीं ज्यादा खरीद लेने से इसकी लत न लग जाए. इस कारण कंपनियों ने उनके लिए कम मात्रा में विकल्प दिए, जिससे सेल बढ़ गई.


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