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नई दिल्ली: साल 2023 में मकर संक्रांति (Makar sankranti) 14 जनवरी को है, और इसके ठीक एक दिन पहले 13 जनवरी को लोहड़ी (Lohri 2023) का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन नई फसलों की पूजा होती है और आग जलाकर गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि को अर्पित किया जाता है. इसके बाद सभी लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं, और पारंपरिक गीत को गाते हैं. लोहड़ी पर्व की परंपरा को समझने को लिए उसके अर्थ को समझना होगा. ये तीन अक्षरों से मिलकर बना है. पहला ल जिसका अर्थ है लकड़ी, ओह का अर्थ है सूखे उपले, और ड़ी का अर्थ रेवड़ी से है. इसलिए लोहड़ी पर उपलों और लकड़ी की मदद से अग्नि जलाई जाती है. अब अग्नि क्यों जलाई जाती है, आइये जानते हैं, इसका महत्व....
लोहड़ी के पर्व में अग्नि का महत्व
दरअसल लोहड़ी का पर्व सूर्य और अग्नि को समर्पित है. इस पर्व पर लोग नई फसलों को अग्निदेव को समर्पित करते हैं. शास्त्रों की माने तो अग्निदेव और सूर्य को फसल समर्पित कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. मान्यता है कि लोहड़ी के पर्व के माध्यम से नई फसल का भोग सभी देवताओं तक पहुंचता है. अग्निदेव से आने वाले अच्छे समय और अच्छी फसल की कामना की जाती है.
लोहड़ी का धार्मिक महत्व
वैसे तो लोहड़ी का त्योहार प्रकृति की पूजा के लिए है. लेकिन पंजाब में इस पर्व का धार्मिक महत्व भी है. लोहड़ी की शाम को सात बार इसकी परिक्रमा की जाती है. साथ ही तिल, गुड़, चावल, मक्के की आहुति भी दी जाती है. जिसे तिलचौली कहते हैं. धार्मिक मान्यता ये है कि जिसके घर खुशियों का मौका आया हो, लोहड़ी उसी के घर जलाई जाएगी. इस अवसर पर लोग मिठाई बांटकर खुशियां मनाते है.
लोहड़ी का सामाजिक महत्व
धार्मिक महत्व के अलावा लोहड़ी का सामाजिक महत्व भी है. इस दिन लोक गीत भी गाए जाते हैं. लोग दुल्ला भट्टी के गीत गाते हैं. कहते हैं कि अकबर के शासनकाल में दुल्ला भुट्टी एक लुटेरा था, वो हिंदू लड़की को गुलाम के तौर पर बेचे जाना का विरोधी था. ऐसे में वो लड़कियों को बचाकर हिंदू लड़कों से शादी करा देता था. गीतों में उसी का आभार व्यक्त किया जाता है. इस दिन महिला पारंपरिक कपड़ों को पहनती है तो लड़के लोहड़ी पर भांगड़ा करते है.