मध्य प्रदेश के निकायों में होने जा रहा बड़ा बदलाव, 3 चौथाई बहुमत, 3 साल के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव
MP News: मध्य प्रदेश के नगरीय निकायों में एक बड़ा बदलाव होने वाला है, मोहन सरकार मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43-क में बड़ा संशोधन करने वाली है.
मध्य प्रदेश के नगर पालिका अधिनियम में मोहन सरकार बड़ा संशोधन करने वाली है. यह संशोधन नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के लिए राहत भरा होने वाला है. इस बदलाव की वजह मुरैना जिले के बानमोर नगरीय निकाय की अध्यक्ष गीता जाटव के खिलाफ पार्षदों की तरफ से पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव है. जिसके चलते अब नगरीय प्रशासन विभाग ने बड़े बदलाव की तैयारी की है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि मोहन सरकार यह संशोधन क्यों कर रही है.
मुरैना जिले की बानमोर निकाय का मामला
दरअसल, बानमोर नगरीय निकाय की अध्यक्ष गीता जाटव के खिलाफ पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जबकि वह सत्ताधारी दल बीजेपी से ही अध्यक्ष हैं, लेकिन अविश्वास कारण यह है कि कुछ पार्षद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए और अब इन्हीं पार्षदों ने मिलकर अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है. जिससे बीजेपी के लिए दौहरी समस्या खड़ी हो गई है. इसलिए राज्य सरकार अब इस मामले में ही संसोधन करने की तैयारी कर ली है. मोहन मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43-क में बड़ा संशोधन करेगी. इस संसोधन से अविश्वास प्रस्ताव के नियम बदल जाएंगे.
3 चौथाई बहुमत जरूरी
इस संसोधन में सबसे अहम बात यह होगी कि अब नगर पालिका-परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ तभी अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकेगा जब 3 चौथाई पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ हो. इससे पहले दो तिहाई पार्षद ही अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे, लेकिन इस संसोधन के बाद यह नियम बदल जाएगा.
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3 साल से पहले नहीं आएगा अविश्वास प्रस्ताव
सबसे अहम बदलाव यह होगा कि अब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तीन साल से पहले नहीं लाया जा सकेगा. यानि जब तक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष एक बार चुने जाने के बाद जब तक अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर लेते तब तक उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं आएगा. अब तक दो साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था. ऐसे में सरकार का यह संसोधन अध्यक्षों के लिए ऑक्सीजन साबित होगा. बताया जा रहा है कि इस संसोधन का पूरा मसौदा तैयार हो गया है, मोहन कैबिनेट की तरफ से मंजूरी मिलने के बाद यह संसोधन लागू हो जाएगा.
महापौर पर लागू नहीं होगा नियम
हालांकि मप्र नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43-क में होने वाला यह संसोधन प्रदेश के 16 नगर निगमों के महापौरों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि महापौर सीधे जनता से चुनकर आए हैं, ऐसे में उनके खिलाफ यह लागू नहीं होगा. केवल कुल पार्षदों में से छठवें भाग के बराबर पार्षद एक साथ खिलाफ होकर अगर किसी महापौर की शिकायत कलेक्टर से करते हैं तो फिर कलेक्टर ही महापौर को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है.
दरअसल, मध्य प्रदेश में जुलाई 2022 में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे. ऐसे में लगभग सभी जगहों पर अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के कार्यकाल के 2 साल पूरे हो चुके हैं. ऐसे में कई निकायों में अब अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में पार्षद हैं, लेकिन इस बदलाव के बाद बीजेपी स्थिति को काबू में कर सकती है. क्योंकि प्रदेश के ज्यादातर निकायों में बीजेपी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष है. ऐसे में इस बदलाव के जरिए बीजेपी अंतकर्लह को खत्म करने की कोशिश में जुटी है.
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