Khandwa News: मध्य प्रदेश अपनी संस्कृति के अनूठे रंगों के लिए जाना जाता है. इन्हें अनूठे रंगों में हमारी अलग-अलग अनोखी परंपराएं भी हैं, जो समाज को संदेश देती हैं. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है झूठे पत्तलों की बोली लगाने की परंपरा. निमाड़ अंचल के खंडवा जिले में हर साल गणगौर पर्व पर अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. इस परंपरा के तहत लोग 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक की बोली जूठे पत्तलों को उठाने के लिए लगाते हैं. 


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गणगौर पर्व की अनूठी परंपरा
MP के खंडवा जिले में निमाड़ अंचल का सबसे बड़ा लोकपर्व गणगौर का उत्साह अपने चरम पर है. हर ओर शिव और पार्वती की आराधना करते श्रद्धालुओं का सैलाब नजर आ रहा है. गणगौर उत्सव के दौरान शहर के एक खास भंडारे का अपना महत्व है. यहां सब मिलकर एक साथ भोजन करते हैं. इसके बाद भंडारे में जूठी पत्तल उठाने के लिए बोली लगती है.


100 साल से चली आ रही परंपरा
खंडवा के गुरवा समाज में 100 साल से माता के भंडारे में जूठी पत्तल उठाने की बोली लगने की परंपरा चली आ रही है. यह बोली 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक जाती है.


भेदभाव खत्म करने के लिए है ये रिवाज
इस अनोखी परंपरा को लेकर गुरवा समाज के लोग और बुजुर्ग बताते हैं कि समाज मे समानता का भाव बना रहे, इसके लिए समाज के बुजुर्गों ने यह परंपरा शुरू की थी. ये आज भी जारी है.  युवा इसे अगली पीढ़ी के लिए आगे ले जा रहे हैं. बुजुर्ग बताते हैं कि समाज में छोटे-बड़े और अमीर-गरीब का भेदभाव खत्म करने के लिए यह व्यवस्था की गई थी, जो आज भी जारी है. इसमें माता के प्रसाद के रूप में भोजन करने वाले की जूठी पत्तल उठाना माता के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव दर्शाता है.


रणुबाई और धणीयर राजा की होती है पूजा
गणगौर पर्व पर पार्वती स्वरूप रणुबाई और शिव रूपी धणीयर राजा की पूजा-अर्चना की जाती है. श्रद्धालु रणुबाई को बेटी मानते हैं. बाड़ी से जवारे घर लाने के बाद कई श्रद्धालु रणुबाई से बेटी की तरह एक दिन और रुकने की मनुहार करते हैं. सामूहिक रूप से रथ बौड़ाने यानी रुकने की मनुहार भी होती है. निमाड़ में इसकी छटा दिवाली से कम नहीं होती. इस पर्व में शामिल हर चेहरे पर खूब उत्साह नजर आता है. महिलाएं गणगौर के भजन भी गाती हैं. वसंत ऋतु के आगमन पर शिव और पार्वती के विवाह के उत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है.


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दरअसल, इस पर्व का आगाज होली के बाद होता है. होली की राख से 5 तपे हुए कंकड़ लेकर गौरी की स्थापना की जाती है. साथ ही होली की राख में गेहूं मिलाकर माता की मूठ रखी जाती है, यानी कि स्थापना की जाती है. इसके बाद बांस की टोकनी में मिट्टी डालकर गेहूं बोए जाते हैं और परंपरागत स्थानों पर बाड़ी बोई जाती है. इसे 8 दिनों तक सींचा जाता है. इसके बाद दर्शन के लिए इन बाड़ियों को खोला जाता है और फिर श्रद्धालु जवारों को रथ में रखकर अपने घर ले जाते हैं. मान मनुहार कर जिन श्रद्धालुओं ने मां पार्वती रूपी रणुबाई को बेटी मानकर रोका था, उन्हें सार्वजनिक भंडारे और सुख-समृद्धि की कामना के साथ जवारों का विसर्जन कर दिया जाता है.


इनपुट- खंडवा से प्रमोद सिन्हा की रिपोर्ट, ZEE मीडिया