Kabir Ke Dohe: संत कबीर ने सदियों पहले कई ऐसी बातें अपने दोहे के जरिए बता दी हैं, जो हमें जीवन में सही राह अपनाने में मदद करती हैं. पढ़िए कबीर के 8 चुनिंदा दोहे, जो जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं. साथ ही परेशानियों के समय में सही फैसला लेने की ताकत देते हैं.
Kabir Ke Dohe: कबीर दास के दोहो में जीवन की सच्चाई और और समाज को आईना दिखाने वाली कई बातें छिपी हुई हैं. आज उनके चुनिंदा दोहे पढ़िए वो भी अर्थ के साथ, जो जीवन में आगे बढ़ने और सही फैसला लेने की ताकत देंगे.
दोहा- ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।
अर्थ- 'हमेशा ऐसी भाषा बोलने चाहिए जो सामने वाले को सुनने से अच्छा लगे और उन्हें सुख की अनुभूति हो और साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव हो.'
दोहा- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
अर्थ- 'कई लोगों को अपने बड़े होने या अपने गुणों पर बड़ा घमंड होता है,लेकिन जब तक व्यक्ति में विनम्रता नहीं होती उसके इन गुणों का कोई फायदा नहीं हैं. जिस प्रकार खजूर का पेड़ बहुत बड़ा होता है लेकिन उससे न तो किसी व्यक्ति को छाया मिल पाती है और न ही उसके फल किसी के हाथ आते हैं.'
दोहा- तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई, सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
अर्थ- 'लोग रोजाना अपने शरीर को साफ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ नहीं करता. जो इंसान अपने मन को भी साफ करता है, वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है.'
दोहा- जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय, यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
अर्थ- 'आपका मन हमेशा शीतल होना चाहिए. अगर आपका मन शीतल है तो इस दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं बन सकता.'
दोहा- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ- 'शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है. यदि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.'
दोहा- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ- 'बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ कर संसार में कितने लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन सभी विद्वान न हो सके. यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले,तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.'
दोहा- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ- 'पहले गुरु को प्रणाम करूंगा, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है.'
दोहा- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ- 'अगर व्यक्ति अपने मन के अंदर झांक कर देखे तो वह पाएगा कि उससे बुरा कोई नहीं है.यहां वह कहना चाहते हैं कि बुराई सामने वाले में नहीं बल्कि हमारे नजरिए में होती है.'
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