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कब है परिवर्तिनी एकादशी, इस दिन भगवान विष्णु क्यों बदलते हैं करवट? जानें यहां

Parivartini Ekadashi 2024: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु शयनकाल के दौरान करवट बदलते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है.

 

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एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. आइए पंडित सच्चिदानंद त्रिपाठी से जानते हैं कि इस साल परिवर्तिनी एकादशी कब है और इस दिन भगवान विष्णु करवट क्यों बदलते हैं.

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पंडित सच्चिदानंद त्रिपाठी के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयनकाल में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. इस दिन श्री हरि की पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

कब है परिवर्तिनी एकादशी

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कब है परिवर्तिनी एकादशी

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 13 सितंबर को रात 10:30 बजे से शुरू होगी. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 14 सितंबर को रात 8:41 बजे समाप्त होगी. 

परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु क्यों बदलते हैं करवट?

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परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु क्यों बदलते हैं करवट?

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें परिवर्तिनी एकादशी से जुड़ी एक कथा सुनाई थी. उन्होंने कहा था, त्रेतायुग में मेरा एक भक्त था जिसका नाम असुरराज बलि था. वह राक्षस कुल का था, लेकिन उसकी मुझ पर गहरी आस्था थी.

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श्री कृष्ण ने बताया कि वह प्रतिदिन पूजा-पाठ करता था और यज्ञों के माध्यम से ब्राह्मणों को दान देता था. लेकिन समय के साथ उसे अपनी शक्ति का अहंकार हो गया और उसने इंद्रलोक पर आक्रमण कर उसे जीत लिया. इंद्र और अन्य देवताओं को इंद्रलोक छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

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इससे देवता चिंतित हो गए और वैकुंठ धाम पहुंचकर मेरी स्तुति की, जिससे मेरी नींद में खलल पड़ा और मैंने करवट बदली. मैंने देवताओं से कहा कि चिंता मत करो, मैं जल्द ही इसका समाधान करूंगा. इसके बाद मैंने वामन का रूप धारण किया और बलि के पास पहुंचा. मैंने उनसे तीन पग जमीन मांगी और वह तुरंत तैयार हो गया. फिर मैंने एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग माप लिया. मैंने बलि से तीसरे पग के लिए जगह मांगी तो उसने अपना सिर आगे कर दिया. मैंने अपना कदम उसके सिर पर रखा और वह पाताल लोक चला गया.

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श्री कृष्ण ने बताया कि इसके अलावा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर मैंने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया था. इस तरह मैंने देवताओं को उनका इंद्र लोक वापस दिलवाया. यह कथा हमें बलि की उदारता और भगवान विष्णु की कृपा की याद दिलाती है.