क्या किसी अधिवक्ता को आरटीआई लगाकर जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है? मध्य प्रदेश में इस तरह के दो मामले सामने आए हैं जहां लोक सूचना अधिकारियों ने इस आधार पर जानकारी देने से मना कर दिया कि आरटीआई आवेदन लगाने वाले पेशे से अधिवक्ता है.
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रीवा: क्या किसी अधिवक्ता को आरटीआई लगाकर जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है? मध्य प्रदेश में इस तरह के दो मामले सामने आए हैं जहां लोक सूचना अधिकारियों ने इस आधार पर जानकारी देने से मना कर दिया कि आरटीआई आवेदन लगाने वाले पेशे से अधिवक्ता है. राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस मामले में स्पष्ट किया कि अधिवक्ता होने के आधार पर जानकारी को रोकना गैरकानूनी है. साथ ही जानकारी रुकने वाले अधिकारी के खिलाफ 15000 का जुर्माना लगा दिया है.
दरअसल अधिवक्ता होने के नाम पर जानकारी रोकने का ताजा मामला रीवा के ग्राम पंचायत बहुरीबांध के सचिव योगेंद्र शुक्ला का है. सचिव शुक्ला ने आरटीआई आवेदक कृष्णेंद्र शुक्ला जो पेशे से वकील है. उन्हें आरटीआई के तहत इस आधार पर जानकारी देने से मना कर दिया क्योंकि वे अधिवक्ता है. आवेदक कृष्णेंद्र शुक्ला ने गांव में निर्माण कार्य की जानकारी मांगी थी. ग्राम पंचायत के सचिव ने वल्लभ भवन के राजस्व विभाग के एक लोक सूचना अधिकारी के पत्र का हवाला देते हुए यह कहा कि "आरटीआई के तहत जानकारी कोई भी व्यक्ति ले सकता है लेकिन एडवोकेट नागरिक शब्द की परिभाषा में नहीं आता है. एडवोकेट जो कि बार काउंसिल से पंजीकृत होने पर विधिक व्यवसाय करते हैं, इसलिए अधिवक्ता को जानकारी नहीं दिया सकती है.
अधिवक्ता होने के आधार पर RTI में जानकारी रोकना गैरकानूनी है। जानकारी रोकने वाले अधिकारी के उपर ₹15000 का जुर्माना लगाया गया है।
Illogical & illegal to withhold information under RTI Act on grounds of applicant being an advocate. A penalty of ₹ 15000 imposed on the PIO. pic.twitter.com/GZd0Lmfqqr— Rahul Singh (@rahulreports) September 16, 2022
मामला जब राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के सामने पहुंचा तो सिंह ने इस प्रकरण में ग्राम पंचायत के सचिव और जनपद पंचायत के कार्यपालन अधिकारी दोनों को सुनवाई में तलब कर लिया. आयोग में सुनवाई के दौरान भी ग्राम पंचायत सचिव अपनी इस बात पर अडिग रहे कि अधिवक्ता आरटीआई आवेदक पेशे से अधिवक्ता है और इसीलिए उनको जानकारी नहीं दी जा सकती है. जब आयुक्त सिंह ने इसका कानूनी आधार पूछा तो सचिव ने वल्लभ भवन मंत्रालय के राजस्व विभाग मे लोक सूचना अधिकारी राजेश कुमार कौल का जारी पत्र का हवाला दिया. जिसमें कौल ने लखनऊ के एक अधिवक्ता रूद्र प्रताप सिंह को जानकारी देने से इस बात पर इंकार किया कि वे विधिक व्यवसाय करते हैं और अधिवक्ता हैं और एडवोकेट नागरिक शब्द की परिभाषा में नहीं आता है.
सभी नागरिकों को है जानकारी लेने का अधिकार
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा तीन के तहत भारत के सभी नागरिकों को जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है. व्यवसाय या वर्ग के आधार पर जानकारी से वंचित रखना गैरकानूनी है. सिंह यह भी स्पष्ट किया कि जानकारी को रोकने का प्रावधान अधिनियम की धारा मात्र 8 और 9 में ही उपलब्ध है.
सचिव के खिलाफ़ अनुशासनिक कार्रवाई
सुनवाई के दौरान ग्राम पंचायत सचिव का एक और झूठ पकड़ा गया उन्होंने अपने प्रथम अपीलीय अधिकारी जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को यह लिखित में दिया कि उन्हें आरटीआई आवेदन प्राप्त नहीं हुआ था. आयोग ने जब इस मामले में जांच की तो पता चला कि बकायदा डाक विभाग के माध्यम से रजिस्टर्ड पोस्ट ग्राम पंचायत सचिव के कार्यालय में डिलीवर हुई. जिसके ट्रैक रिकॉर्ड के प्रति भी आयोग के समक्ष उपलब्ध हो गई और उससे यह स्पष्ट हो गया कि आरटीआई आवेदन रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से ग्राम पंचायत सचिव के कार्यालय में प्राप्त की गई थी. इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि झूठा कथन करके ग्राम पंचायत सचिव ने प्रथम अपीलीय अधिकारी को प्रथम अपीलीय प्रक्रिया को गलत ढंग से प्रभावित करने की कोशिश की है. प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने एवं आयोग के समक्ष असत्य कथन करके सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन किया गया है. सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने विकास आयुक्त पंचायत एवं ग्रामीण विकास को आदेशित किया है की प्रकरण में दोषी ग्राम पंचायत सचिव के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई करना सुनिश्चित करें.