आकाश द्विवेदी/भोपाल: मध्य प्रदेश में साल के अंत में विधानसभा के चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Elections) होने हैं और राज्य में विधानसभा चुनाव को देखते हुए सभी दलों की नजर आदिवासियों पर है. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पूरे देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी है. इस वजह से राज्य के आदिवासी संगठन JAYS की काफी चर्चा हो रही है. अब जयस को लेकर एक बहुत बड़ी खबर आई है.


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जयस के नेताओं ने दिया एकजुटता का संदेश
प्रदेश के आदिवासी संगठन जयस के दो गुट एकजुट हो गए. जयस आदिवासी संगठन के गुटों में समझौता हुआ. खलघाट में जयस के सभी सदस्यों की हुई बैठक. हीरालाल अलावा, विक्रम अछालिया, महेंद्र कन्नौज ने हाथ मिलाया है. बता दें कि हीरालाल अलावा, विक्रम अछालिया और महेंद्र कन्नौज जयस के संस्थापक सदस्य हैं. धार के खलघाट में जयस के नेताओं ने दिया एकजुटता का संदेश.


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50 आदिवासी बाहुल्य सीटों पर जयस का असर
जयस का कहना है कि आदिवासियों के मामले में गैर आदिवासी फैसला नहीं लेंगे. गौरतलब है कि आदिवासी सीटों पर जयस का बड़ा प्रभाव है. करीब 50 आदिवासी बाहुल्य सीटों पर जयस का असर है. जयस ने 2023 विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.


बता दें कि मालवा निमाड़ में जयस तकरीबन डेढ़ दर्जन आदिवासी आरक्षित सीटों पर एक्टिव हैं. यही वजह है कि बीजेपी का 2018 में खेल बिगड़ गया था. गौरतलब है कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र में अच्छी खासी आदिवासियों की संख्या है और जयस की बात करें तो यह मुख्य रूप से आदिवासियों का संगठन है और 2018 के मुकाबले 2023 आते-आते जयस पहले से ज्यादा मजबूत हुई है. इसी के चलते अभी हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में जयस के कई प्रत्याशी चुनाव जीत थे तो इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में जयस खासकर मालवा-निमाड़ में गेमचेंजर साबित हो सकती है.चूंकि मालवा निमाड़ को सत्ता की राह कहा जाता है. इसलिए जयस राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों का खेल भी बिगाड़ सकती है.