राजनांदगांव: कहते हैं कि महिला जो ठान ले उसे पूरा करने से कभी पीछे नहीं हटती, परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, मुसीबत चाहे कितनी भी हो, वो कभी हार नहीं मानती. अपनी मेहनत से वो मुकद्दर में मुकाम लिखना जानती है. इसी जज्बे और जुनून के साथ छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की रहने वाली फूलबासन यादव महिलाओं के लिए मिसाल बनी हैं.1969 में जन्मी फूलबासन यादव के बारे में किसने सोचा था कि एक दिन नायब कामों से वो फूल की तरह अपनी सुगंध बिखेरंगीं. उनकी मेहनत और लगन के लिए आज सारा देश उन्हें सलाम कर रहा है. वो 23 अक्टूबर को केबीसी के कर्मवीर स्पेशल शो में रेणुका के  साथ में हॉट सीट पर नजर आएंगी. ये कामयाबी उन्हें यूहीं नहीं मिली है. तो कैसे फूलबासन यादव ने तय किया संघर्ष से सफलता का सफर. जानते हैं इस रिपोर्ट में- 


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गरीबी में गुजरा फूलबासन का बचपन
फूलबासन यादव ने महज सातवीं तक की शिक्षा हासिल की है.उनका सारा जीवन गरीबी में ही बीता है. वो  बचपन में अपने मां-बाप के साथ चाय के ठेले पर कप धोने का काम करती थीं. जब घर में भोजन करने का समय आता तो माता-पिता कहते कि आज एक ही समय का भोजन मिलेगा. कई बार तो हफ़्तों खाना नहीं मिलता था. ग़रीबी के चलते कभी-कभी तो महीनों तक नमक नसीब नहीं होता और एक ही कपड़े में ही महीने निकल जाते  थे. 


समाज की सोच पर भारी पड़ी फूलबासन की मुहिम
12 वर्ष की उम्र में फ़ूलबासन भाई की शादी एक चरवाहे से करवा दी गई. उनके चार बच्चे हुए, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति जस की तस थी, अपने बच्चों को दो वक़्त का भोजन देने के लिए फूलबासन बाई दर दर अनाज मांगती लेकिन किसी एक ने नहीं सुनी, इन चुनौतियों के सामने उसने कभी समर्पण नहीं किया. विपरीत परिस्थिति को अवसर मानकर फूलबासन बाई ने प्रण लिया कि अब वे गरीबी, कुपोषण, बाल-विवाह से लड़ेंगी. उन्होंने दस बहनों का एक समूह बनाया जिसके तहत दो मुट्ठी चावल और हर हफ़्ते दो रुपए जमा करने की योजना बनाई लेकिन वक़्त अभी भी फूलबासन बाई से ख़फ़ा था. संगठन बनाने की यह मुहिम फूलबासन बाई के पति को पसंद नहीं आई और फिर समाजिक विरोध भी शुरू हो गया, लेकिन समाज को एक दिशा देने के उद्देश्य से निकली फूलबासन के संकल्प के आगे समाज के सारे ताने- बाने शून्य पड़ गए. 


महिलाओं के लिए मिसाल बनकर दिया रोजगार
महिलाओं की मदद से जल्द ही समिति ने बम्लेश्वरी ब्रांड नाम से आम और नींबू के अचार तैयार किए और छत्तीसगढ़ के तीन सौ से अधिक स्कूलों में उन्हें बेचा जाने लगा. जहां बच्चों को भोजन के साथ घर जैसा स्वादिष्ट अचार मिलने लगा. इसके अलावा उनकी संस्था अगरबत्ती, वाशिंग पावडर, मोमबत्ती, बड़ी-पापड़ आदि बना रही है जिससे दो लाख महिलाओं को स्वावलम्बन की राह मिली है. फुलबासन के मुताबिक अचार बनाने के इस घरेलू उद्योग में लगभग सौ महिला सदस्यों को अतिरिक्त आमदनी का एक बेहतर जरिया मिला और  तीन हजार रूपये प्रतिमाह तक कमा रही हैं. 


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 राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं फूलबासन
फूलबासन यादव को 2004-05 में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मिनीमाता अलंकरण से विभूषित किया गया. 2004-05 में ही महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से बचत बैंक में खाते खोलने और बड़ी धनराशि बचत खाते में जमा कराने के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए फूलबासन बाई को नाबार्ड की ओर से राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2006-07 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया. 2008 में जमनालाल बजाज अवार्ड के साथ ही जी-अस्तित्व अवॉर्ड और 2010 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में राष्ट्रपति  प्रतिभा देवी सिंह पाटील के हाथों स्त्री शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. यादव को सद्गुरू ज्ञानानंद एवं अमोदिनी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. 


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रचा कीर्तिमान
फुलबासन ने अपने 12 साल के सामाजिक जीवन में कई उल्लेखनीय कार्यों को महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से अंजाम दिया है. महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से गांव की नियमित रूप से साफ-सफाई, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण के लिए सोख्ता गढ्ढा का निर्माण, सिलाई-कढ़ाई सेन्टर का संचालन, बाल भोज, रक्तदान, सूदखोरों के खिलाफ जन-जागरूकता का अभियान, शराबखोरी एवं शराब के अवैध विक्रय का विरोध, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ वातावरण का निर्माण, गरीब एवं अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी फूलबासन  ने प्रमुख भूमिका अदा की है. आज लाखों महिलाओं का यह समूह राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए नए कीर्तिमान रच रहा है. 


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