बच्चे की तरह चहक उठे शायर एवं पद्मश्री बशीर बद्र, 46 साल बाद मिली पीएचडी की डिग्री
जैसे ही बशीर बद्र सहाब को डिग्री मिली उसके बाद उनके चेहरे की भावभंगिमा बेहद मासूमिसत से सराबोर थी.
भोपाल: अलहदा लहजे के शायर एवं पद्मश्री बशीर बद्र को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से 46 साल बाद पीएचडी की डिग्री मिली है. डिग्री मिलने पर वह किसी मासूम की तरह चहक उठे और डिग्री को सीने से लगा लिया. वो भी तब जब बशीर बद्र की तबीयत आजकल नासाज है और यादाश्त भी कमजोर हो गई है. जहन में ये सवाल आना लाजमी है कि उम्र के इस पड़ाव में पीएचडी की डिग्री कैसे? दरअसल बशीर बद्र ने डॉक्टेरेट की उपाधि तो साल 1973 में ही हासिल कर ली थी, लेकिन व्यस्तता और व्यकितगत कारणों की वजह से कभी AMU डिग्री लेने नहीं आ सके. इतन सालों बाद आखिरकार AMU ने PHD की डिग्री उनके घर भिजवा दी.
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डिग्री मिलते ही मासूमियत के साथ लगे लिया गले
जैसे ही बशीर बद्र सहाब को डिग्री मिली उसके बाद उनके चेहरे की भावभंगिमा बेहद मासूमिसत से सराबोर थी. डिग्री को गले से लगा लिया. मानों यादो के झरोखों से जिंदगी के किताब से एक पन्ना जो कही खो गया था. वो आंखों के सामने आकर पुरानी यादों को ताजा कर रहा हो.
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शायरी से आसमान की बुंलदियों तक
1969 में बशीर बद्र ने एएमयू से पोस्ट ग्रेजुएट की उपाधि ली. शायर बशीर बद्र ने मेरठ कॉलेज के उर्दू विभाग में 12 अगस्त 1974 को बतौर लेक्चरर ज्वाइन किया था, यहां वह साल 1990 तक रहे. इसके बाद साल दर साल बशीर बद्र अपनी शायरी से आसमान की बुंलदियों को छुते चले गए.
बशीर बद्र के कुछ शेरों पर नज़र डालते हैं.
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
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