जिला कार्यालय के सामने युवक ने शुरू की भूख हड़ताल, इलाज नहीं मिलने से है परेशान
जिला कार्यालय के जिस गेट के सामने रवि कुमार प्रदर्शन कर रहा है, वहां से कार्यालय में कईं बड़े अधिकारी व नेता भी प्रवेश करते हैं. बावजूद इसके रविकुमार की आवाज प्रशासन के गलियारों में कहीं दबी हुई है.
राजनांदगांव/किशोर शिल्लेदारः छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य और न्याय व्यवस्था से परेशान, पैसों की तंगी में अपना गुजारा कर रहा एक युवक भूख हड़ताल पर बैठ गया है. हड़ताल में उसने अपने पोस्टर पर लिखा है, "भारत का असहाय लोकतंत्र, अंधेर नगरी चौपट राजा"
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मुझे उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. निजी और बड़े अस्पताल में इलाज कराने की मेरी हैसियत नहीं है. हाइकोर्ट में याचिका भी लगाई है, जो कि अब तक विचाराधीन है. इस वजह से मैं यहां भूख पड़ताल पर बैठा हूं. यह कहना है राजनांदगांव जिला कार्यालय के सामने भूख हड़ताल पर बैठे युवक रविकुमार का.
रीढ़ की हड्डी का करवाना है इलाज
जिले के रंगकठेरा गांव का रहने वाला युवक रविकुमार पिछले कुछ सालों से स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) में बीमारी से परेशान है. इलाज के लिए वह सरकारी अस्पताल गया, लेकिन वहां इलाज की सुविधा नहीं मिली. वह रायपुर के अम्बेडकर अस्पताल भी गया, जहां से उसे रायपुर एम्स में रेफर किया गया. लेकिन वहां से भी उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ा. अब प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने जितना पैसा उसके पास नहीं है.
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हाईकोर्ट में लगाई गुहार
इलाज नहीं होने से रवि ने स्थानीय कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक से गुहार लगाई. लेकिन प्रशासन और सत्ता के गलियारों में रवि की आवाज कहीं दब गई. फिर उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका तो दायर कर दी, लेकिन वह अब भी विचाराधीन ही है. रवि की स्पाइनल कॉर्ड की परेशानी भी लगातार बढ़ती जा रही है.
काम करना चाहता है रवि
जिले के छोटे से गांव से होने के बावजूद रवि ने पढ़ाई की और काम करने के काबिल बना. लेकिन रीढ़ की हड्डी में परेशानी की वजह से वह बेबस है और काम नहीं कर सकता. इसी मजबूरी में उसने जिला कार्यालय के सामने भूख हड़ताल करने का फैसला किया और अपने पोस्टर पर लिखा, भारत का असहाय लोकतंत्र, अंधेर नगरी चौपट राजा.
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अधिकारी गुजरते हैं जिस गेट से, वहीं बैठा है रवि
जिला कार्यालय के जिस गेट के सामने रवि कुमार प्रदर्शन कर रहा है, वहां से कार्यालय में कईं बड़े अधिकारी व नेता भी प्रवेश करते हैं. बावजूद इसके रविकुमार की आवाज प्रशासन के गलियारों में कहीं दबी हुई है. ऐसे में देखना महत्तवपूर्ण होगा कि नेता-अधिकारियों के इस दरवाजे पर रवि की गुहार कौन सुनता है?
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