पुराने समय से बाजार में व्यापार कर रहे व्यापारी आज भी दीपावली पर बहीखाते की पूजा जरूर करते है लेकिन अब अपने व्यापार का हिसाब किताब बहीखाते में नहीं बल्कि कम्प्यूटर डेटा में फीड करते है.
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रतलाम: हाथों से पूरे साल का हिसाब लिखे जाने वाले लाल रंग के बहीखाते की भले ही आज भी दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन में पूजा की जाती हो लेकिन इस लाल रंग के बहीखाते का अब चलन खत्म हो गया है. इसकी जगह अब आधुनिक बहीखाते कम्प्यूटर और लैपटॉप ने ले ली है. इस वजह से बहीखाते बनाने का काम भी अब बन्द होने की कगार पर है.
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करीगर भी खत्म होने की कगार पर
बहीखाता बनाने वाले कारीगर भी अब खत्म होते जा रहे है. दुकानों पर बिकने के लिए कुछ चुने कारीगरों से सिर्फ दीपावली पर पूजन के लिए बहीखाते तैयार किये जाते है. ये बहीखाते दुकानों में लाल कवर में सफेद धागों के साथ लिपटे सजे हुए तैयार जरूर है लेकिन खुद दुकानदार बताते है कि कैसे समय के साथ इन बहीखातों का चलन इतना कम हो गया कि पुराने व्यापार के मुकाबले आज सिर्फ 10 प्रतिशत ही बहीखाते भी बमुश्किल बाज़ारो में बिक पाते है.
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महीनों का काम मिनटों में हो जाता
पुराने समय से बाजार में व्यापार कर रहे व्यापारी आज भी दीपावली पर बहीखाते की पूजा जरूर करते है लेकिन अब अपने व्यापार का हिसाब किताब बहीखाते में नहीं बल्कि कम्प्यूटर डेटा में फीड करते है. सालों से व्यापार कर रहे व्यापारी बताते है कि पहले जो काम महीनों में होता था अब वही हिसाब मिनटो में हो जाता है. वही जो सीए पूरा हिसांब मेंटेन करते है उनके लिए भी काम आसान हो गया है और यदि कोई ऑडिट होता है तो भी सभी हिसाब तुरंत मिल जाता है इसलिए अब लिखने वाले बहीखाते खत्म हो चुके है.
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