मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक हमेशा निर्णायक भूमिका में रहा हैं.
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भोपालः मध्य प्रदेश की राजनीति में अब आदिवासी वर्ग को एक बार फिर साधने की कवायत शुरू हो गई है. हाल ही में हुई बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में आदिवासी वर्ग को लेकर बीजेपी में जमकर मंथन हुआ. जिसको लेकर बीजपी ने अब तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. तो वहीं कांग्रेस भी इस वर्ग पर अपने पकड़ बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है.
बीजेपी चलाएगी अभियान
बीजेपी कार्यसमिति में हुई बैठक में अनुसचितजाति और अनुसूचित जनजाति को जोड़ने की प्लानिंग के बाद अब अब भाजपा जनजातीय समाज में प्रचलित रामायण पर आधारित लीलाएं जैसे शबरी लीला, निषाद राज लीला और रामायणी लीलाओं का मंचन करने की तैयारी में जुटी है. ताकि इस बड़े वोट बैंक को अपनी तरफ किया जा सके. बीजेपी जल्द ही इस योजना पर काम शुरू करेगी. जिसकी शुरूआत प्रदेश के आदिवासी अंचलों से की जाएगी.
आदिवासी समाज से जुड़ी आधारित लीलाओं पर बीजेपी के प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि भाजपा हर वर्ग को समाज की जड़ों से जोड़ने का काम करती है, देश में जिस तरह अंग्रेजों, मुगलों, तुर्को ने विभाजन का काम किया है कांग्रेस उसी काम को आगे बढ़ा रही है. लेकिन बीजेपी आदिवासी समाज के हित में काम करती है.
पीसी शर्मा ने कांग्रेस ने कमलनाथ को बताया आदिवासी हितेषी
आदिवासियों को साधने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है. कांग्रेस भी इस वर्ग पर पकड़ मजबूत करने में लगी है. कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कांग्रेस पार्टी को आदिवासियों का हितेषी बताया. इतना ही नहीं पीसी शर्मा ने कमलनाथ को आदिवासियों का बड़ा हितेषी बताते हुए कहा कि कमलनाथ पिछले जन्म में आदिवासी रहें होंगे. आदिवासियों के सबसे बड़े हितेषी है कमलनाथ. बीजेपी केवल झूठ बोलकर आदिवासियों को बहकाना चाहती है. लेकिन भाजपा का इन झूठ की लीलाओं से कोई काम नहीं चलेगा. अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सभी सीटें जीतेंगी!
दरअसल, पिछले दिनों भाजपा प्रदेश प्रभारी और भाजपा नेताओं के बीच हुई बैठक में जनजातीय वर्ग को भाजपा से जोड़ने का प्लान तैयार किया गया था!, प्रदेश का सियासी इतिहास रहा है की जनजाति वर्ग का झुकाव जिस पार्टी की तरफ रहता है, प्रदेश में सरकार उसी की बनती है. 2018 में बीजेपी की इस वोटबैंक पर पकड़ ढीली हुई थी जिसका नुकसान विधानसभा चुनाव में उठना पड़ा था. ऐसे में बीजेपी प्रदेश सरकार में अनुसूचित जनजाति वर्ग के नेताओं को पर्याप्त स्थान दिया है. शिवराज सरकार में विजय शाह, मीना सिंह, बिसाहूलाल सिंह, प्रेम सिंह पटेल, रामकिशोर कांवरे मंत्री पद पर है. ये सभी नेता आदिवासी वर्ग से आते हैं. इसके अलावा इसी वर्ग से आने वाले फग्गन सिंह कुलस्ते मोदी सरकार में मध्य प्रदेश का नेतृत्व करते हैं.
क्यों अहम है आदिवासी
प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए 47 विधानसभा सीटें तो 6 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं. जबकि सामान्य वर्ग की भी 31 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोट हार-जीत में निर्णायक भूमिका में रहता है. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोट बैंक राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम होता क्योंकि आदिवासी वोट जिस करवट बैठ जाता है सरकार उसी दल की बनती है.
आदिवासी वोटबैंक को वापस पाने की कोशिश में बीजेपी
पिछले कुछ सालों में आदिवासी वोट तेजी से बीजेपी की तरफ मुड़ा है. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली जिसके चलते प्रदेश में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने में सफल हुई थी. लेकिन सिंधिया की बगावत से सरकार गिर गयी. लेकिन बीजेपी अपने इस वोटबैंक को फिर से मजबूत करना चाहती है तो कांग्रेस भी इस वोट बैंक पर पकड़ मजबूत बनाए रखने में जुटी है.
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