Social Media पर लिखने से पहले जान लें ये नियम, वरना हो सकती है परेशानी, Freedom of Speech की हैं ये सीमाएं
सोशल मीडिया के इस युग में लोगों को खुलकर अपने विचार रखने और उन्हें दुनिया के सामने साझा करने की ताकत मिली हुई है. हालांकि कई बार देश में `बोलने की आजादी` (Freedom of Speech)के अधिकार की आड़ में लोग जाने-अनजाने कानून का उल्लंघन कर बैठते हैं.
नई दिल्लीः फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ मुंबई के बांद्रा कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका में आरोप लगाया गया था कंगना रनौत अपने बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए हिंदू और मुस्लिम कलाकारों के बीच फूट डालने का प्रयास कर रही हैं. जिसके बाद बांद्रा कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत पुलिस को कंगना के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्देश दिया था.
कोर्ट के निर्देश पर मुंबई पुलिस ने कंगना रनौत के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 ए, धारा 295 ए, धारा 124 ए और धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया था. आइए जानते हैं कि क्या हैं ये आईपीसी की धाराएं और इन धाराओं के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को कितनी सजा मिल सकती है-
धारा 153 एः आईपीसी की धारा 153 ए उन लोगों के खिलाफ लगायी जाती है, जिन पर विभिन्न समुदायों के बीच धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर नफरत फैलाने का आरोप होता है. इस धारा के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम 3 साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं.
धारा 295एः यह धारा उन लोगों के खिलाफ लगायी जाती है, जिन पर भारत के किसी नागरिक की धार्मिक भावनाओं, मान्यताओं को जानबूझकर आहत करने का आरोप लगता है. इस धारा के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम तीन साल या जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है.
धारा 124एः यह धारा देशद्रोह के आरोप में लगायी जाती है. यदि कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर या कोई निशान बनाकर समाज में नफरत कोशिश करता है, या फिर भारत सरकार द्वारा बनाए गए कानून का विरोध करता है तो, उसके खिलाफ धारा 124ए के तहत मामला दर्ज किया जाता है. इस धारा के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम तीन साल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. यदि दोषी के कृत्य से देश के सामने सुरक्षा का संकट पैदा होता है तो दोषी को आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती है.
धारा 34: यदि कोई अपराध कई लोगों द्वारा एक ही उद्देश्य के लिए किया गया हो तो उसमें हर व्यक्ति अपराध के लिए ऐसे जिम्मेदार होता है जैसे कि वह अकेले उसके द्वारा किया गया हो. ऐसे मामले में आरोपियों के खिलाफ धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया जाता है.
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सोशल मीडिया पर लिखते हुए रखें इन बातों का ध्यान
सोशल मीडिया के इस युग में लोगों को खुलकर अपने विचार रखने और उन्हें दुनिया के सामने साझा करने की ताकत मिली हुई है. हालांकि कई बार देश में 'बोलने की आजादी' (Freedom of Speech)के अधिकार की आड़ में लोग जाने-अनजाने कानून का उल्लंघन कर बैठते हैं. इसलिए हम यहां बता रहे हैं कि बोलने की आजादी के अधिकार के तहत हमारे क्या अधिकार हैं इसकी क्या सीमा है.
संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत देश के नागरिकों को बोलने की आजादी का अधिकार मिला हुआ है. जिसके तहत लोग अपने विचार साझा करने के लिए स्वतंत्र हैं.
यह कानून देश के सभी नागरिकों पर लागू होता है. जिसमें लोगों को किसी भी मुद्दे पर अपने विचार या ओपिनियन साझा करने का अधिकार मिला हुआ है. फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत ही प्रेस की आजादी, जानकारी पाने का अधिकार (Right of Information) आते हैं.
Freedom of Speech के अधिकार की ये हैं सीमाएं
हालांकि ऐसा नहीं है कि बोलने की आजादी के अधिकार के तहत कोई नागरिक कुछ भी बोल सकता है. इस पर नियंत्रण के लिए सरकार की तरफ से कानून बनाए गए हैं. जिनके तहत देश की संप्रभुत्ता और अस्मिता की सुरक्षा, मित्र देशों से अच्छे संबंधों, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए, कोर्ट की अवमानना को रोकने के लिए और समाज में नैतिकता बनाए रखने के लिए सरकार की तरफ से बोलने की आजादी के अधिकार को नियंत्रित करने के लिए कुछ कानून भी बनाए गए हैं. इनके साथ ही बोलने की आजादी के अधिकार में मानहानि, लोगों को अपराध करने के लिए उकसाने से रोकने और देशद्रोह को रोकने के लिए भी कानून का प्रावधान किया गया है. जिनके उल्लंघन पर सख्त सजा का प्रावधान भी किया गया है.
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