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Chhattisgarh News: बैगा क्षेत्रो में नहीं पहुंची विकास की किरण, पीने को मजबूर हैं गड्ढों का दूषित पानी

Pendra News: छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में बैगा आदिवासियों की हालत बहुत खराब है. गौरेला जिले के ठाड़ पथरा, आमानाला, दुर्गाधारा क्षेत्र में रहने वाले बैगा आदिवासी शुद्ध पानी के लिए तरस रहे हैं. इनकी हालत ऐसी है जैसे ये पाषाण युग में जी रहे हों. उन्हें न तो पक्की सड़कें मिल रही हैं और न ही स्वच्छ पेयजल.

 

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बैगा आदिवासी कई सालों से मैकल पहाड़ से बहने वाली जलधारा के पास खोदे गए एक छोटे से गड्ढे का पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीण इस इलाके में कई जगहों पर नालो के किनारे और कहीं पहाड़ों के नीचे करीब 1 फीट गहरे छोटे गड्ढे खोदकर उन्हें पत्थरों से बांधकर इकट्ठा किया हुआ पानी पीते आ रहे हैं.

 

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बैगा आदिवासी जिन गड्ढों से पानी पीते हैं, उनमें गिरी हुई पत्तियां सड़ रही हैं, काई जमी हुई है. यानी बीमारी का खतरा है. लेकिन फिर भी बैगा आदिवासी इसी पानी को कपड़े से छानकर पीते हैं, ताकि उनका जीवन चल सके.

 

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गांव में हैंडपंप तो हैं लेकिन एक खराब है और दूसरे हैंडपंप से लाल पानी निकलता है जो पीने लायक नहीं है. इसलिए लोग मजबूरी में इसी तरह का पानी पीते हैं. बरसात के दिनों में जब नाले में पानी भर जाता है तो पानी कम होने के बाद लोग पास में ही गड्ढा खोदकर उसी पानी को पीते हैं.

 

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प्रदूषित पानी पीने से होने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक पीलिया के लक्षण कई बैगा आदिवासियों में देखे गए. बैगा आदिवासी भी जानते हैं कि पीने के पानी में अशुद्धता है लेकिन वे सालों से इसे पीते आ रहे हैं. अगर पहुंच मार्ग की बात करें तो सड़क नाम की कोई चीज नहीं है. बारिश में मिट्टी की सड़क का बुरा हाल हो जाता है. लेकिन कभी कोई अधिकारी नहीं आता और आता भी है तो व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होता.

 

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अति पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों जैसा विकास लाने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार ने मध्य प्रदेश के शासनकाल में आदिवासी विकास विभाग का गठन किया था. और पेंड्रा में परियोजना प्रशासक का कार्यालय स्थापित किया था, जो छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी लगातार काम कर रहा है. इस कार्यालय पर आदिवासियों के विकास के लिए योजनाएं बनाने और उनके क्रियान्वयन का ही जिम्मा था. लेकिन अब यह विभाग सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा हुआ है.

 

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इस मामले पर परियोजना प्रशासक और आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त से बात करने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं हो सकी. गौरेला चूंकि जनपद पंचायत का कार्यक्षेत्र है इसलिए जनपद पंचायत गौरेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने पानी की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे जल जीवन मिशन के माध्यम से पानी उपलब्ध कराने की बात जरूर की, लेकिन इस योजना का वहां कोई संकेत नहीं दिखा.

 

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सालों से बैगा और आदिवासी विकास के नाम पर करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती रही हैं. लेकिन इन बैगा आदिवासियों को इसका कितना फायदा मिला ये तस्वीरें बताती हैं. रिपोर्ट- दुर्गेश सिंह बिसेन