महाकाल मंदिर के समान है इस मंदिर की महिमा, राजा विक्रमादित्य ने बहन के लिए कराया था निर्माण
मंदिर में लगे पुरातत्व विभाग के शिलालेख में यह जानकारी बताई गई है कि इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था.
मनोज जैन/शाजापुरः सावन का महीना का हिंदू धर्म के लिहाज से सबसे पवित्र महीना माना जाता है. खास बात यह है कि सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. ऐसे में इस महीने में भगवान शंकर के मंदिरों में जमकर भक्तों की भीड़ उमड़ती है. आज हम आपको भगवान शंकर के ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपनी बहन के लिए करवाया था.
शाजापुर जिले में बना है यह मंदिर
दरअसल, उज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था. किंवदंती है कि उन्होंने अपनी बहन सुंदरा से किए गए एक वादे के तहत शाजापुर जिले के सुंदरसी गांव में एक मंदिर का निर्माण करवाया था जो महाकाल मंदिर की तरह ही दिखता है. कालीसिंध नदी के तट पर छोटी अवंतिका नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध इस मंदिर में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, खास बात यह है कि इस मंदिर को लेकर एक कहानी भी है.
राजा विक्रमादित्य ने कराया था मंदिर का निर्माण
वैसे तो यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. मंदिर में लगे पुरातत्व विभाग के शिलालेख में यह जानकारी बताई गई है कि इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था. किदवंती के अनुसार ऐसा बताते हैं कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी बहन सुंदरा को वचन दिया था कि मैं तुम्हारी शादी ऐसी जगह करूंगा जहां पर अवंतिका के जैसा तीर्थ क्षेत्र नगर बसा हों और जिस नगर में अवंतिका जैसे मंदिरों की सभी सुविधाएं मौजूद होगी.
बहन के लिए बसाया सुंदरगढ़ नगर
राजा ने अपने इसी वचन को पूरा करने के लिए कालीसिंध नदी के तट पर सुंदरगढ़ नाम से एक नगर बसाया. इसी सुंदरगढ़ नगर को अब को अब सुंदरसी कहा जाता है. राजा विक्रमादित्य ने कालीसिंध नदी के तट पर बसे सुंदरगढ़ में भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और इसके चारों तरफ काल भैरव, नवग्रह, बड़े गणेश, चिंताहरण गणेश, गोपाल मंदिर, बाबा की कुटिया सहित अन्य मंदिरों का निर्माण भी कराया. मंदिर के निर्माण के बाद राजा विक्रमादित्य ने अपनी बहन सुंदरा का विवाह कराया था.
शिप्रा नदी से आता था जल
मान्यता है कि मंदिर के गर्भ गृह में एक गुफा है जिससे सुंदराबाई को स्नान करने के लिए उज्जैन से शिप्रा नदी का जल लाने के लिए इस गुफा का निर्माण कराया गया था. इसके बाद तपस्वी साधु-संतों के द्वारा बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए इस गुफा के रास्ते से हो करके शिप्रा तट पर निकलते थे और उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन साधु संतों के द्वारा किया जाता था. आज यहां पर गुफा का गर्भ गृह वाला भाग तो सही है लेकिन अंदर से इस गुफा का हिस्सा बंद कर दिया गया है, आज भी यहां पर कई जीवंत समाधिया हैं.
दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त, बन सकता है पर्यटन क्षेत्र
अनुपम सौंदर्य की गाथा गा रहा कालीसिंध नदी के तट बसा यहां मंदिर मानों प्रकृति ने अपनी छटा बिखेरते हुए इस मंदिर का श्रृंगार किया हो चारों ओर हरियाली से ओतप्रोत यहां मंदिर अपनी अलग ही छटा दर्शाता है. खास बात यह है कि स्थानीय लोग इस मंदिर की महिमा उज्जैन के बाबा महाकाल मंदिर की तरह ही मानते हैं. नदी के तट पर बसे इस मंदिर पर शासन और प्रशासन के द्वारा अगर ध्यान दिया जाए तो निश्चित ही यहां पर्यटन क्षेत्र बन सकता है. नदी के तट पर बसे इस मंदिर पर शासन और प्रशासन के द्वारा अगर ध्यान दिया जाए तो निश्चित ही यहां पर्यटन क्षेत्र बन सकता है. प्रशासन के द्वारा यहां पर पर्यटक की दृष्टि से कार्य योजना तैयार करके निर्माण कार्य करवाना चाहिए ताकि इस मंदिर को पर्यटक स्थल की श्रेणी में लाया जा सके.
मंदिर की प्रमुख विशेषताएं
इस मंदिर की कुछ खास विशेषताएं भी हैं. मंदिर में गणेश मंदिर, नवग्रह, राम दरबार, सूर्यकुंड, गुफा, हनुमान मंदिर, काल भैरव, माता मंदिर भी बना हुआ है जिससे भक्तों को एक ही स्थान पर सभी भगवानों के दर्शन हो जाते हैं. इसके अलावा यह मंदिर चारों और परकोटा से घिरा हुआ है. जिससे इसकी सुंदरता देखने लयाक बनती है. फिलहाल सावन के महीने में इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है. जबकि सोमवार के दिन यहां विशेष पूजन होती है.
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