नई दिल्ली: भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 70वीं पुण्यतिथि है. सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर को 1875 में हुआ था. पटेल गुजरात के खेड़ा जिले में पैदा हुए थे. उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. किसान परिवार में जन्मे पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए याद किए जाते हैं. वह नवीन भारत के निर्माता व राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया. 


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सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की. आर्थिक तंगी ऐसी थी कि स्कूली शिक्षा के बाद पढ़ न सके और किताबें लेकर घर पर ही जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में लग गए. मेहनत और लगन का परिणाम यह रहा कि इस परीक्षा में सरदार पटेल ने सर्वाधिक अंक प्राप्त किए. वह 36 साल की उम्र में वकालत की पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए. उनके कठोर व्यक्तित्व में संगठन कुशलता, राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट निष्ठा थी.


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उन्होंने जिस असीम उत्साह और अदम्य साहस से एक नए-नए जन्में गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक पटल पर उन्होंने अपना अमिट स्थान बना लिया. सरदार पटेल राजनीतिक जीवन के साथ ही निजी जीवन में भी काफी मजबूत शख्सियत थे. आज आपको उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे ही किस्से आपको बता रहे हैं, जिन्हें पढ़कर आप समझ जाएंगे कि सरदार के इरादे कितने अटल, शख्सियत कितनी मजबूत और राजनीतिक सूझबूझ कितनी परिपक्व थी...


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पत्नी की मृत्यु की सूचना मिलने पर भी नहीं छोड़ा कर्तव्य
सरदार पटेल ने अपनी जिंदगी में सबकुछ कठिन परिश्रम, लगन और जीतोड़ मेहनत से हासिल किया था. इसलिए अपने काम के प्रति उनका समर्पण बहुत पवित्र था. उनके जीवन में एक ऐसा वाकया भी आया, जब वह कोर्ट में बहस कर रहे थे और तभी उन्हें अपनी पत्नी की मौत की खबर मिली. बात 1909 की है जब उनकी पत्नी झावेर बा मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थीं. इलाज के दौरान उनका निधन हो गया. पटेल उस समय कोर्ट में एक मुकदमे में जिरह कर रहे थे. एक व्यक्ति ने बहस कर रहे सरदार को पर्ची पर लिखकर पत्नी के निधन की सूचना दी. उन्होंने पर्ची पढ़ा और मोड़कर जेब में रखते हुए बहस जारी रखी. जब कोर्ट में उनकी बहस पूरी हुई तभी वह अपनी स्वर्गीय पत्नी को देखने पहुंचे.''


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वल्लभ भाई पटेल को 'लौह पुरुष' की उपाधि किसने दी?
सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है. वह आजाद भारत के पहले गृहमंत्री थे. उस वक्त का भारत 562 रियासतों में बंटा था, या यूं कहें कि 562 टुकड़ों में. इन सभी टुकड़ों को एक साथ जोड़कर अखंड भारत बनाने की जिम्मेदारी सरदार वल्लभ भाई पटेल के कंधों पर थी. उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए सभी रियासतों का भारत में विलय कराया. सभी 562 रियासतों का विलय कर अखंड भारत बनाना उनकी महान उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से सरदार इसके प्रमुख शिल्पकाल थे. उनकी नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी.


वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि कैसे मिली?
बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्ल‍भ भाई पटेल ने किया था. उस वक्त प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी थी. वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया. आंदोलन को दबाने का भी प्रयास हुआ लेकिन पटेल की दृढ़ता के आगे अंग्रेज लाचार हुए और उन्हें किसानों की मांगें माननी पड़ीं. लगान को 30 से घटाकर 6 फीसदी कर दिया गया. इस आंदोलन की सफलता के बाद बारडोली की किसान महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को 'सरदार' कहा. गांधी जी ने 'लौह पुरुष' की उपाधि दी थी. इस तरह लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम  भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया.


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पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था जूनागढ़ का नवाब
कुल 562 रियासतों में जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर रियासतें ही ऐसी थीं जो भारत में विलय के पक्ष में नहीं थी. इनका भारत में विलय करवाना एक बड़ा काम था. सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ यह कर दिखाया. जूनागढ़ पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था. सरदार पटेल के लिए यह नाक का सवाल था क्योंकि यह रियासत उनके गृह राज्य गुजरात में पड़ती थी. उस वक्त जूनागढ़ का नवाब महाबत खान था. महाबत खान मुस्लिम लीग और जिन्ना के काफी नजदीक था. महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया और महाबत के फैसले को पाकिस्तान ने 13 सितंबर 1947 को स्वीकार कर लिया. हिन्दू बहुल जूनागढ़ की जनता ने इसका विरोध किया.


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''ऑपरेशन पोलो'' के सामने झुका हैदराबाद का निजाम
नवाब के इस फैसले से खुद सरदार पटेल भी नाराज हुए. उन्होंने भारतीय सेना को जूनागढ़ भेज दिया. सेना ने जूनागढ़ के दो बड़े प्रांतों मांगरोल और बाबरिवाड़ पर कब्जा जमा लिया. नवाब महाबत खान पाकिस्तान भाग गया. जूनागढ़ में जनमत संग्रह हुआ और 99 फीसदी जनता ने भारत के साथ विलय के पक्ष में मतदान किया. इसी तरह ''ऑपरेशन पोलो'' के तहत हैदराबाद के निजाम को भी पटेल ने झुकने पर मजबूर किया और 19 सितंबर 1948 को हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया. अगर सरदार आजाद भारत के पहले गृह मंत्री न होते तो शायद इस विशाल राष्ट्र की कल्पना मुमकिन न होती. भारत को वर्तमान अखंड स्वरूप देने के लिए देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा.


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