नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को वित्त वर्ष 2021-22 का केंद्रीय बजट पेश करेंगी, वह ऐसे समय में यह बजट पेश करने जा रही हैं, जब पिछले करीब दो महीने से पंजाब और हरियाणा के किसान नए कृषि कानूनों को लेकर विरोध कर रहे हैं. ऐसे में सबकी निगाहें इस बात पर लगी होंगी कि सरकार किसानों को लेकर बजट में किस तरह के प्रावधान करती है.


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दरअसल, मौजूदा केंद्र की बीजेपी सरकार अपना एक तिहाई कार्यकाल पूरा कर चुकी है. इसके अलावा कोविड-19 महामारी के संकट के बाद देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सामान्य वित्त वर्ष की मजबूत संभावना बन रही है. इस स्थिति में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट सरकार के एजेंडा को आगे बढ़ाने में सबसे अहम योगदान कर सकता है, क्योंकि इस बजट के जरिये सरकार जो दिशा और लक्ष्य तय करेगी उसे हासिल करने का उसके पास वक्त होगा.


किसानों की योजनाओं में फंड का इजाफा होने की उम्मीद
कयास लगाए जा रहे हैं कि नए कृषि कानूनों को लेकर हो रहे विरोध को देखते हुए सरकार किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ उपायों की घोषणा कर सकती है. बता दें कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि सरकार का कृषि और इससे जुड़े सेक्टर पर फोकस बने रहने की उम्मीद है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र की बुनियादी ढांचे से जुड़ी तमाम योजनाओं के लिए अतिरिक्त फंड के आवंटन से भी कृषि क्षेत्र की तस्वीर में बदलाव देखने को मिल सकता है.


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बढ़ सकती है पीएम किसान सम्मान निधी की राशि
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह तीसरा बजट है. ऐसे में किसानों को उनसे ज्यादा उम्मीदें हैं. किसान इस आस में हैं कि कोरोना महामारी के बाद वित्त मंत्री कृषि क्षेत्र के लिए कुछ खास ऐलान करेंगी. पीएम किसान सम्मान निधी योजना की रकम को लेकर चल रहीं मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इसमें इजाफा भी हो सकता है. अभी इस स्कीम के तहत किसान को सालाना 6,000 रुपये मिलते हैं, लेकिन मौजूदा राजनीति परिदृष्य में पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के चलते किसानों की उम्मीद है भी है कि सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी कर सकती है.


क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यूनिवर्सल इनकम के रूप में सभी किसानों की सीधे नकदी हस्तांतरण से फायदा नहीं हो सकता है. इसे लक्षित बनाने से फायदा होगा. सरकार कृषि बजट में आधे से अधिक राशि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत खर्च कर रही है. इसलिए इसका बेहतर उपयोग जरूरी है. किसानों को बेहतर उत्पादन के लिए प्रोत्साहन और फसलों के विविधिकरण के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर दोनों की एक समग्र नीति काम कर सकती है. बेहतर होगा कि जहां जिन फसलों के लिए एमएसपी घोषित किया गया है, उनकी अधिकतम खरीद सुनिश्चित की जाए और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दी जाने वाली वित्तीय राशि गैर एमएसपी फसलों के लिए दी जाए. उसके चलते किसानों को इन फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है.


इन क्षेत्रों में किसान को बजट से उम्मीद
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक सरकार का ज्यादा फोकस फसलों पर रहा है, लेकिन सरकार को अपने इस फोकस में बदलाव करते हुए पशुपालन, डेयरी पर बजटीय प्रावधान को बढ़ाना चाहिए, क्योंकि कृषि जीडीपी में इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है और किसानों की आय के लिए यह क्षेत्र बड़े स्रोत के रूप  में उभर रहे हैं. ऐसे में किसानों को भी उम्मीद है कि इन क्षेत्रों को भी बजटीय प्रावधानों में महत्व मिल सकता है.


बढ़ सकता है कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज का लक्ष्य
केंद्र सरकार हर साल कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज का लक्ष्य बढ़ाती रही है. ऐसे में इस बार भी 2021-22 के लिए इस लक्ष्य को बढ़ाकर 19 लाख करोड़ रुपये तक किया जा सकता है. दरअसल, सरकार ने बजट में कृषि कर्ज को लेकर अब तक जो भी लक्ष्य रखे हैं, कर्ज वितरण उनसे ज्‍यादा ही रहा है. वित्‍त वर्ष 2017-18 में किसानों को 11.68 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया, जबकि बजट में 10 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य ही रखा गया था. इसी तरह वित्‍त वर्ष 2016-17 में 10.66 लाख करोड़ रुपये क्रॉप लोन बांटा गया था. यह 9 लाख करोड़ रुपये के बजटीय लक्ष्य से कहीं ज्‍यादा था. दरअसल, कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कर्ज जरूरी है. संस्थागत स्रोतों से कर्ज आसानी से मिलने पर किसानों को महाजनों और सूदखोर से कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे उन्‍हें ज्‍यादा ब्याज भी नहीं चुकाना पड़ता. ऐसे में किसानों को उम्मीद है कि सरकार कृषि कर्ज का लक्ष्‍य बढ़ा सकती है.


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