विश्व दिव्यांग दिवसः मेहनत और हुनर से रचा इतिहास, सीएम, पीएम भी हैं सत्येंद्र सिंह लोहिया के मुरीद
70 प्रतिशत दिव्यांग की कैटेगरी में आने वाले दोनों पैरों से दिव्यांग सत्येंद्र सिंह ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाकर दिखाया.
ग्वालियर: जब मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है कुछ ऐसी ही कहानी ग्वालियर के रहने वाले सत्येंद्र सिंह लोहिया की है. जिन्होंने अपनी मेहनत और हुनर के दम पर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है. ग्वालियर के एक छोटे से गांव में जन्मे सत्येंद्र बचपन से ही दिव्यांग है, लेकिन उनके सपने बड़े है.
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यही वजह है कि उन्होंने परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने के बजाय पैरा स्वीमर बनने का फैसला किया. इसके बाद से सत्येंद्र अपने हुनर और मेहनत के बलबूते ढेरों पदक अपने नाम कर चुके हैं और आज एक अंतरराष्ट्रीय पैरा स्वीमर हैं. लोहिया के पिता एक सिक्योरिटी गार्ड है.
यह उपलब्धि पाने वाले एशिया के पहले पैरा स्वीमर
लोहिया ने 24 जून 2018 को 12 घंटे 24 मिनट में तैरकर इंग्लिश चैनल पार किया था, जो कि एक रिले इवेंट था. इस इवेंट के लिए उनका नाम एशियाई लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ. अमेरिका में 18 अगस्त 2019 को इन्होंने 11 घंटे 34 मिनट में कैटरीना चैनल पार किया. जिसके साथ ही सत्येंद्र टीम इवेंट में इस चैनल को पार करने वाले पहले एशियाई दिव्यांग तैराक बन गए.
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हासिल कर चुके हैं इतनी उपलब्धियां
सत्येंद्र सिंह ने 7 नेशनल पैरा तैराकी चैंपियनशिप में भाग लेकर देश के लिए 24 पदक हासिल किए हैं. इसके साथ तीन अंतरराष्ट्रीय पैरा तैराकी चैंपियनशिप में देश के लिए एक गोल्ड मेडल के साथ कुल 4 पदक हासिल किए हैं.
सीएम, पीएम भी कर चुके हैं सम्मानित
सत्येंद्र सिंह को साल 2014 में मध्य प्रदेश की तरफ से सर्वोच्च खेल सम्मान 'विक्रम अवार्ड' से नवाजा गया. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनसे मुलाकात की और उनकी जमकर तारीफ भी की थी. इसके बाद 3 दिसंबर 2019 को उपराष्ट्रपति द्वारा सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग खिलाड़ी का राष्ट्रीय अवॉर्ड भी इनके नाम दर्ज है. सत्येंद्र को पीएम नरेंद्र मोदी भी सम्मानित कर चुके है.
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कमजोरी को बनाया ताकत
70 प्रतिशत दिव्यांग की कैटेगरी में आने वाले दोनों पैरों से दिव्यांग सत्येंद्र सिंह ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाकर दिखाया. अंतरराष्ट्रीय पैरा स्वीमर सत्येंद्र सिंह लोहिया दिव्यांग युवा खिलाड़ियों का प्रेरणा स्रोत है जो अपनी शारीरिक कमजोरी से हार मान कर घर बैठ जाते है, जो यह सोचने लगते हैं कि हम शारीरिक कमजोरी की वजह से कुछ नहीं कर सकते.
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