Maharashtra Politics: महाराष्‍ट्र के महासमर में विपक्षी महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए (शरद पवार-उद्धव ठाकरे-कांग्रेस) ने 85-85-85 का फॉर्मूला निकालते हुए सभी को बराबर सीटें दी हैं. 288 में से बाकी बची सीटें छोटे दलों के लिए छोड़ दी गई हैं. यानी वोटों का बंटवारा नहीं रुके इसके प्रयास किए जा रहे हैं और छोटे-छोटे दलों को भी जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. ये सब तो सियासी रूप से ठीक है लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे-यूबीटी) को अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
  
मराठवाड़ा का रण
दरअसल पार्टी के बंट जाने के बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) 20 नवंबर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नए चुनाव चिह्न के साथ लड़ रही है. ऐसे में मराठवाड़ा में पार्टी के तीन विधायक नए चुनाव चिह्न को लोकप्रिय बनाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हैं और अपने अभियान के तहत किसानों के मुद्दे भी उठा रहे हैं. अविभाजित शिवसेना ने 2019 के विधानसभा चुनाव में मराठवाड़ा क्षेत्र में 12 सीट जीती थीं. यानी पार्टी को अपने चुनाव चिन्‍ह को पॉपुलर बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है.


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जून 2022 में पार्टी के विभाजन के बाद, तीन विधायक उदयसिंह राजपूत (कन्नड), कैलास पाटिल (धाराशिव-कालंब) और डॉ. राहुल पाटिल (परभणी), उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के साथ बने रहे और पार्टी ने उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मैदान में उतारा है.


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मशाल Vs तीर और कमान
वर्ष 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों के एक गुट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था जिसके बाद पार्टी बंट गई. ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) को बाद में ‘मशाल’ चुनाव चिह्न आवंटित किया गया, जबकि मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने मूल ‘तीर और कमान’ चुनाव चिह्न बरकरार रखा.


राजपूत ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान ठाकरे द्वारा किए गए कार्यों के कारण लोगों में उनकी छवि अच्छी है. उन्होंने कहा, ‘‘हम अब कन्नड में अपने चिह्न ‘मशाल’ के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए आक्रामक तरीके से काम कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा कि वह अपने अभियान में किसानों की समस्याओं को भी उठाएंगे. राजपूत ने यह भी दावा किया कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारना चाहिए.


राहुल पाटिल ने कहा कि इस बार अच्छी बात यह है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब उनके साथ नहीं है. उन्होंने दावा किया, ‘‘यह सरकार भ्रष्ट है और हम इन चीजों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आक्रामक तरीके से काम कर रहे हैं.’’ परभणी के उम्मीदवार ने कहा कि इस निर्वाचन क्षेत्र में सोयाबीन की खरीद एक ज्वलंत मुद्दा है. उन्होंने कहा कि 2.80 लाख हेक्टेयर में यह फसल उगाई जाती है और खरीद के लिए सिर्फ आठ केंद्र हैं. विधायक ने कहा, ‘‘ऐसे में तो मेरे निर्वाचन क्षेत्र में पूरे सोयाबीन की खरीद में 10 साल लग जाएंगे.’’


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उन्होंने दावा किया कि किसानों के मुद्दे सत्तारूढ़ दलों के पतन का कारण बनेंगे.


विधायक कैलास पाटिल ने दावा किया कि पहले भाजपा उनकी (अविभाजित) पार्टी के साथ थी, लेकिन केवल कागजों पर और उसके नेताओं ने उनके खिलाफ काम किया.


उन्होंने कहा, ‘‘अब वे कागज पर भी हमारे साथ नहीं हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में, हम लोगों को अपने चुनाव चिह्न ‘मशाल’ के बारे में बताने में सफल रहे. हम अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के बीच अपने चुनाव चिह्न के बारे में जागरुकता भी फैला रहे हैं.’’ विधायक ने सोयाबीन के लिए अपर्याप्त खरीद केंद्रों का मुद्दा भी उठाया, जो उनके निर्वाचन क्षेत्र में उगाई जाने वाली एक प्रमुख फसल है. उन्होंने कहा कि निजी खरीद केंद्रों पर फसल सस्ते दाम पर बेचनी पड़ रही है.


(इनपुट: एजेंसी भाषा)