Mughal Era Zeenat Mahal Haveli: हिन्दुस्तान पर कई सालों तक शासन करने वाले अलग-अलग मुगल बादशाहों ने अपने-अपने शासनकाल में कई इमारतों का निर्माण करवाया. कई इमारतों को भारत सरकार का संरक्षण आज भी प्राप्त है. जैसे कुतुब-मीनार, दिल्ली और आगरा का लाल किला, ताज महल, फतेहपुर सीकरी.. ऐसी ही तमाम इमारते हैं, जो आज भी मुगलिया सल्तनत का इतिहास बयां करती हैं. हर मुगल शासक को दिल्ली से बेहद लगाव था. यहां भी ऐतिहासिक इमारतों की भरमार है. कुतुब-मीनार और लाल किला इनमें से प्रमुख हैं. कुछ ऐसी भी इमारते हैं जो आज खंडहर हो चुकी हैं और इनमें अब भूतों का बसेरा है.


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आज हम आपको एक ऐसी ही इमारत के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां अंधेरी रात में भी दीवाली सी रोनक होती थी. हम बात कर रहे हैं दिल्ली के महरौली में बनी जीनत महल हवेली के बारे में. इस हवेली का इतिहास बेहद रोचक है. लेकिन आज के तारीख में यह खंडहर में तब्दील हो चुकी है और गिनती के लोग ही इस इमारत के इतिहास से वास्ता रखते हैं.


इस इमारत को आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने बनवाया था. बहादुर शाह जफर अपनी बेगम जीनत महल से बेइंतहा मोहब्बत करता था. ये हवेली भी उसने जीनत महल के लिए ही बनवाई थी. जीनत महल के वहां कदम रखते ही चारों तरफ उजाला हो जाता था. हर तरफ शहनाई की गूंज सुनाई देने लगती थी. मनोरंजन का चाक-चौबंद इंतजाम होता था.


बहादुर शाह जफर ने जीनत महल से 1840 में निकाह किया था. निकाह के चार साल बाद यह हवेली बनकर तैयार हो गई थी. जीनत महल से मिलने बहादुर शाह जफर इसी हवेली में जाया करता था. 1886 में जीनत महन की मौत हो गई. यहीं से इस हवेली के बुरे दिन शुरू हो गए. जीनत के जाने के बाद इस हवेली का किसी ने ध्यान नहीं दिया. खंडहर में तब्दील होती हवेली पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया. कहा जाता है कि अंग्रेजों ने अनगिनत लाशें इस हवेली में फेंकी थी. तब से इसे भूतिया हवेली भी कहा जाता है.


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