मां समय नहीं देख सकती थी... जानिए क्या है मुंबई के राजाबाई टावर के बनने की कहानी
Mumbai Rajabai Clock Tower: मुबई यूनिवर्सिटी में मौजूद राजाबाई क्लॉक टावर की तस्वीरें आपने भी देखी होंगी. लंदन बिग बेन की तरह दिखने वाला इस 85 मीटर के टावर के बनने की कहानी बेहद अलग है. हाल ही में दिग्गज एक्टर ने आशीष विद्यार्थी ने भी इसको लेकर दिलचस्प बात बताई है.
Rajabai Clock Tower: अगर आपने 70, 80 और 90 की दहाइयों की फिल्में देखी हैं तो उनमें एक कॉमन चीज भी देखी होगी. वो ये कि जब भी कोई कोर्ट का फैसला आना होता था तो आपकी स्क्रीन पर एक क्लॉक टावर भी दिखाया जाता था. उस क्लॉक टावर को लेकर हाल ही में एक दिग्गज एक्टर आशीष विद्यार्थी ने एक इंटरव्यू के दौरान दिलचस्प बात बताई है. इंटरव्यू में जब उनसे मुंबई से जुड़े दिलचस्प सवाल पूछे जा रहे थे. इसी बीच एक सवाल के जवाब में मुंबई यूनिवर्सिटी का जिक्र होने लगा, इसी दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी में मौजूद इस टावर के बारे में दिलचस्प बात बताई.
विश्व धरोहर में हुआ शामिल
आशीष विद्यार्थी ने बताया कि मुंबई यूनिवर्सिटी में मौजूद यह क्लॉक टावर क्यों मशहूर है. उन्होंने बताया कि 70, 80 और 90 की दहाई में बनने वाली फिल्मों में जब भी कोर्ट का कोई फैसला आता था तो पहले इस टावर में घंटी बजाई जाती थी. मुंबई यूनिवर्सिटी में मौजूद इस टावर का नाम 'राजाबाई टावर' है. 'राजाबाई टावर' के बनने और नाम रखे जाने के पीछे भी दिलचस्प घटना है. मुंबई यूनिवर्सिटी के किला परिसर में मौजूद इस टावर की ऊंचाई 85 मीटर है और 2018 में इसको विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया गया था.
दिलचस्प है बनने की कहानी
मुंबई में मौजूद राजाबाई क्लॉक टावर को लंदन के बिग बेन की तर्ज पर जॉर्ज गिल्बर्ट स्कॉट ने डिजाइन किया था. इसकी आधारशिला 1869 में रखी गई थी और निर्माण का कार्य नवंबर 1878 में पूरा हुआ था. एक जानकारी के मुताबिक इसे बनाने में साढ़े 5 लाख रुपये का खर्च आया था. उस समय यह बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. हालांकि इसको बनाने के लिए लागत का एक ही शख्स ने दान में दिया था. जानकारी के मुताबिक ब्रोकर प्रेमचंद रॉयचंद जैन ने इस टावर के बनाने के लिए मोटी रकम दान में दी थी. प्रेमचंद रॉयचंद को बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज की स्थापना के लिए जाना जाता था. कहा जाता है कि उन्होंने ये शर्त रखी थी कि इस टावर का नाम उनकी मां 'राजाबाई' के नाम पर रखा जाए.
कहा जाता है कि प्रेमचंद रॉयचंद की मां देख नहीं सकती थी और वो जैन धर्म को मानती थी. जैन धर्म के मुताबिक शाम से पहले भोजन करना होता है. ऐसे में उन्हें समय देखने में दिक्कत होती थी. उनका कहना है कि उन्हें इस टावर बजने वाली घंटे से समय का अंदाजा हो जाता था.
इस टावर को अब आम पब्लिक के लिए बंद कर दिया गया है, क्योंकि कुछ लोगों यहां आकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने की कोशिश की है.