बॉम्बे HC का बड़ा फैसला: माता-पिता साथ रहते हों या नहीं, संतान की सड़क हादसे में मौत पर मुआवजे के हकदार
Bombay High Court Judgement: मोटर वीइकल एक्ट से जुड़े मामले में फैसला सुनाते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग या पैतृक स्थान पर रहने वाले माता-पिता, संतान की आकस्मिक मृत्यु पर मुआवजे के हकदार हैं.
Bombay High Court News: अगर किसी व्यक्ति की मौत सड़क हादसे में हो जाती है तो उसके माता-पिता मुआवजे का दावा कर सकते हैं. चाहे माता-पिता अलग रहते हों या अपने पैतृक स्थान पर, वे मुआवजे के हकदार होंगे. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उन्हें मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत 'आश्रित' माना जाएगा.
जस्टिस अरुण पेंडेकर की सिंगल बेंच ने बीमा कंपनी - बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड की दलील को खारिज कर दिया. बीमा कंपनी का कहना था कि इस मामले में मृतक के माता-पिता उसके पैतृक स्थान पर रहते थे, इसलिए उन्हें आश्रित नहीं कहा जा सकता, और वे मुआवजे के लिए दावा दायर नहीं कर सकते.
'पुत्र पर निर्भर है पिता, कर सकता है दावा'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जज ने फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का हवाला दिया. जो मृत हिंदू व्यक्ति की संपत्ति को विरासत में पाने के लिए कुछ 'वर्गों' का प्रावधान करता है और कुछ रिश्तेदारों या व्यक्तियों को उक्त संपत्तियों पर दावा करने से बाहर रखता है.
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HC बेंच ने कहा, 'मृतक पुत्र का पिता हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत श्रेणी-I का उत्तराधिकारी नहीं है. मृतक का पिता श्रेणी-II का उत्तराधिकारी है. हालांकि, मृतक का पिता जो श्रेणी-II का उत्तराधिकारी है, वह अपने पुत्र पर निर्भरता के कारण मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा करने का हकदार है.'
माता-पिता के अलग रहने वाली दलील खारिज
बेरोजगार विधवा की निर्भरता की सीमा उसकी उम्र के कारण सबसे अधिक होगी. जज ने कहा कि नाबालिग बच्चों की निर्भरता विधवा से कम, लेकिन माता-पिता से अधिक होगी. जज ने कहा, 'मृतक के माता-पिता की बुजुर्ग अवस्था के कारण विधवा और बच्चों की तुलना में उन पर कम निर्भरता होगी. कोई अन्य आश्रित भी दावा दायर कर सकता है और दावेदार की निर्भरता ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित की जाने वाली तथ्यात्मक बात होगी.'
अदालत ने कहा कि बीमा कंपनी की यह दलील कि मृतक के माता-पिता दावा दायर नहीं कर सकते, क्योंकि वे मृतक से अलग अपने पैतृक गांव में रह रहे थे, इसलिए वे मृतक पर आश्रित नहीं थे, स्वीकार नहीं की जा सकती.
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बीमा कंपनी नहीं देना चाहती थी मुआवजा
बीमा कंपनी ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के आदेश को चुनौती दी थी. जिसमें मृतक की विधवा, उसके दो बच्चों और उसके बुजुर्ग माता-पिता को 14,14,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था. मृतक की मृत्यु 31 जुलाई, 2010 को हुई थी. उसे एक तेज रफ्तार ऑटोरिक्शा ने टक्कर मार दी थी. उसे गंभीर चोटें आईं थीं और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. उसकी मौत के तुरंत बाद, उसके परिवार ने मुआवजे की मांग करते हुए दावा याचिका दायर की और MACT ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया.