मणिपुर में `नार्को-टेररिज्म` जातीय हिंसा की बड़ी वजहों में से एक, DNA की ये रिपोर्ट चौंका देगी
Manipur Violence: अब मणिपुर के पहाड़ों में बर्मा टीक वुड के पेड़ नहीं अफीम के पौधे नज़र आते हैं. दरअसल ज़्यादा कमाई के लालच में लोगों ने जंगल काट कर साफ़ कर दिए और वहां अफ़ीम की अवैध खेती शुरू कर दी.
Manipur Violence: संसद का मॉनसूत्र सत्र आज समाप्त हो गया. लोकसभा सचिवालय की तरफ से जो जानकारी दी गई है, उसके अनुसार इस सत्र में सिर्फ 45 प्रतिशत कामकाज ही हो सका. जरा सोचिए, किसी छात्र के इतने नंबर आते तो उसे Third Division पास कहा जाता. यानी इस मॉनसून सत्र में हमारे नेता भी बस passing marks ही ला सके हैं. और वो बस फेल होते होते बचे हैं. क्योंकि इस बार मॉनसून सत्र में कामकाज से ज्यादा हंगामा हुआ है और इस हंगामें की वजह थी मणिपुर और मणिपुर में जारी हिंसा.
20 जुलाई को मॉनसून सत्र की शुरुआत हुई थी. लेकिन इससे ठीक एक दिन पहले यानी 19 जुलाई को मणिपुर से महिलाओं के साथ बदसलूकी की कुछ ऐसी वीभत्स तस्वीरें सामने आ गईं. जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया. विपक्ष पहले से ही मणिपुर पर सरकार को घेर रहा था. लेकिन मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई हैवानियत का वीडियो सामने आने के बाद उसके प्रहार और आक्रामक हो गए. विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी से मणिपुर के मुद्दे पर जवाब देने की मांग शुरू कर दी. विपक्ष की ये मांग पूरी नहीं हुई तो कांग्रेस लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव ले आई.
तीन दिन तक विपक्ष के इस No confidence Motion पर चर्चा हुई. लेकिन जब कल प्रधानमंत्री मोदी ने चर्चा का जवाब देना शुरू किया तो विपक्ष ने उनका जवाब सुना ही नहीं. पीएम मोदी के मणिपुर मुद्दे पर जवाब देने से पहले ही विपक्ष वॉक आउट कर गया. यानी पहले तो पूरे सेशन में सिर्फ़ इसलिए हंगामा हुआ कि पीएम सदन में आएं और मणिपुर पर कुछ बोलें. लेकिन जब पीएम बोलने पहुंचे तो विपक्ष ने पूरा भाषण सुना ही नहीं.
हालांकि उन्होंने टीवी पर उनका ये भाषण जरूर सुना होगा. इसलिए सत्र समाप्त होने के बाद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी मीडिया के सामने आए और प्रधानमंत्री मोदी के सदन में दिए गए जवाब पर पलटवार किया. राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी मणिपुर को बचाना नहीं, जलाना चाहते हैं. राहुल गांधी पर सदन के अंदर भारत माता को लेकर अमर्यादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था. जिसके बाद उस शब्द को कार्रवाई से हटा दिया गया था. अब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर कुछ वैसे ही आरोप लगाए हैं. उन्होने कहा कि मणिपुर हिंसा पर पीएम मोदी हंस-हंस कर बोल रहे थे. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.
यानी मॉनसून सत्र भले ही समाप्त हो चुका है. लेकिन मणिपुर के नाम पर जारी सियासत अभी भी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है. मणिपुर पर विपक्ष के अपने सवाल हैं और सरकार की अपनी दलीलें हैं. लेकिन इस सियासत से दूर... हम आपको मणिपुर की एक ऐसी कड़वी सच्चाई के बारे में बताएंगे जिसे आप इस जातीय हिंसा की सबसे बड़ी वजह कह सकते हैं.
वैसे तो मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले को इस हिंसा की वजह बताया जा रहा है. खुद Home Minister अमित शाह ने लोक सभा में अपने बयान के दौरान ये बात मानी थी. लेकिन मणिपुर में आज जो कुछ भी चल रहा है, उसके पीछे एक और बड़ी वजह है. वो वजह है अफ़ीम और ड्रग्स का मायाजाल. मणिपुर का कुल AREA क़रीब 22 हज़ार 327 square kilometre है. इसमें भी 20,089 square kilometre इलाके में सिर्फ पहाड़ है. यानी मणिपुर के कुल AREA का 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्सा पहाड़ और जंगलों से ढंका है.
इन पहाड़ों के नीचे छिपी बहुमूल्य खनिज संपदा की वजह से ही मणिपुर को Jewel of India यानी भारत का गहना कहा जाता है. लेकिन अब ये ख़ूबसूरत पहाड़ गोलियों और बमों के धमाकों से गूंज रहे हैं. जबकि जंगल लालच की आग में जल कर राख होते जा रहे हैं. दरअसल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मणिपुर का अपना एक प्राचीन और समृद्ध इतिहास है. वर्ष 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो मणिपुर की सत्ता महाराज बोधचन्द्र के पास आ गई. 21 सितम्बर 1949 को महाराज बोधचंद ने भारत सरकार के साथ विलय कर लिया. जिसके बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का हिस्सा बन गया. हालांकि मणिपुर में जातीय हिंसा का इतिहास इससे भी पुराना है. मणिपुर में कई बार मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा हो चुकी है.
हालांकि इस बार हिंसा की वजह मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले को बताया जा रहा है. लेकिन EXPERTS के अनुसार इस हिंसा की एक और वजह है और वो वजह है NARCO TERRORISM. आज हम मणिपुर और NARCO TERRORISM के इसी कनेक्शन का DNA TEST करेंगे. एक वक्त था, जब मणिपुर की इन पहाड़ियों में दुनिया की सबसे बेहतरीन लकड़ी मिला करती थी. मणिपुर की पहाड़ियों में मिलने वाली burma teek wood नाम की इस लकड़ी को दुनिया की सबसे अच्छी इमारती लकड़ी माना जाता है. इस लकड़ी का इस्तेमाल अच्छी Quality के Furtinure बनाने के लिए होता है.
लेकिन अब मणिपुर के पहाड़ों में बर्मा टीक वुड के पेड़ नहीं अफीम के पौधे नज़र आते हैं. दरअसल ज़्यादा कमाई के लालच में लोगों ने जंगल काट कर साफ़ कर दिए और वहां अफ़ीम की अवैध खेती शुरू कर दी. आज मणिपुर के Remote Areas में मौजूद ये पहाड़ ड्रग्स के काले कारोबार का center point बन चुके हैं. इन पहाड़ों में आपको गिने चुने पेड़ ही नज़र आएंगे. क्योंकि लोगों ने जंगल साफ़ कर उन्हें खेतों में बदल दिया और अब वहां सिर्फ़ अफ़ीम की खेती होती है. इस अफीम ने मणिपुर को भारत के गहने की जगह sea of poppies में बदल दिया है.
आज मणिपुर में ड्रग्स तस्करों का international network सक्रिय है. ये तस्कर मणिपुर के इन पहाड़ी इलाक़ों से अफ़ीम ख़रीदकर उससे Heroin और brown sugar जैसे Drugs बनाते हैं. फिर उन्हे म्यांमार के रास्ते लाओस होते हुए दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंचा देते हैं. जानकारों के अनुसार ये पूरा कारोबार कई हज़ार करोड़ रुपये का है. इससे होने वाली कमाई का एक बड़ा हिस्सा भारत में आतंकवाद और अशांति फैलाने के लिए हो रहा है. इसे ही NARCO TERRORISM कहते हैं और जब N बीरेन सिंह की सरकार ने इस काले कारोबार पर रोक लगाने की कोशिश की तो अफीम की खेती और इससे जुड़ा पूरा Network विरोध में खड़ा हो गया.
आइये अब आपको अफीम की अवैध खेती और मणिपुर में भड़की हिंसा के Connection के बारे में बताते हैं. मणिपुर पुलिस के नारकोटिक्स एंड अफेयर्स बॉर्डर विभाग के अनुसार मणिपुर में हर वर्ष कई हज़ार करोड़ की अफीम की खेती होती है. ये खेती जंगल की आड़ में पहाड़ों में होती है. और दूरदराज़ के इलाक़ों में हो रही अफीम की खेती को नष्ट करना आसान नहीं है. ड्रग तस्कर अफीम की खेती करने वालों को मोटी रकम देती हैं. और लोग पैसों के लालच में जंगल काट कर अफीम उगा रहे हैं. ये जानते हुए भी कि वो जो कर रहे हैं, वो ग़लत ही नहीं, ग़ैर क़ानूनी भी है. सूत्रों के अनुसार ड्रग्स तस्करों ने इसके लिए बकायदा रेट फिक्स कर रखे हैं.
- एक एकड़ जमीन में करीब 10 किलो अफीम की खेती होती है
- 1 किलो अफीम की कीमत करीब 70,000 रुपए होती है...
- इस लिहाज से हर 1 एकड़ जमीन पर हर वर्ष लगभग 7 लाख रुपए की अफीम की खेती होती है
- यानी हर 3 एकड़ जमीन पर लगभग 21 लाख रुपए की अफीम पैदा होती है
- अफ़ीम की खेती की परमिशन देने के लिए गांव के मुखिया को हर तीन एकड़ जमीन के लिए 50 हज़ार रुपये सालाना का दिए जाते हैं...
- इसके अलावा उसे पैदा हुई अफ़ीम का एक हिस्सा भी कमीशन के तौर पर दिया जाता है
- मणिपुर के पहाड़ी इलाक़ों में स्थित गांवों के पास क़रीब 1,000 एकड़ की जमीन होती है...
- आज इसमें से 400 से 500 एकड़ जमीन पर अफीम की खेती की जा रही है
- और इस लिहाज से अफीम की खेती करवाने के लिए विलेज चीफ यानी गांव प्रधान को बैठे बिठाए ही प्रतिवर्ष 50 से 60 लाख रुपये मिल जाते हैं.
सूत्रों के अनुसार गांव के मुखिया को अफ़ीम की खेती से जो पैसा मिलता है. उसमें से एक बड़ा हिस्सा वहां सक्रिय उग्रवादी गुट ले लेते हैं. बाद में इसी रकम से ये उग्रवादी और आतंकी संगठन भारत के ख़िलाफ़ षडयंत्र रचते हैं. सरकारी सर्वे के अनुसार अफीम की सबसे ज़्यादा खेती कुकी बहुल चुराचंदपुर में होती है. इसके बाद कनपोकपी, टेंगनोपॉल, चांदेल और उखरूल जैसे जिलों में अफीम की खेती होती है. जब पुलिस ने इस अवैध कारोबार पर शिकंजा कसा तो अफीम के नेटवर्क से जुड़े कुकी समुदाय के लोग इससे नाराज़ हो गए. सूत्रों के अनुसार भारत विरोधी ताक़तों ने भारत के ख़िलाफ़ NARCO WAR छेड़ रखा है. कश्मीर और पंजाब में सख्ती बढ़ने के बाद अब मणिपुर उनके लिए HOT SPOT बन गया है.
सूत्रों के अनुसार मणिपुर में हर वर्ष करीब 50,000 किलोग्राम अफीम पैदा होती है. यानी मणिपुर के पहाड़ों में हर साल साढ़े 3 से 4 हजार करोड़ रुपये की अफ़ीम पैदा होती है. और आखिरकार बाद में ये पैसा घूम-फिर कर भारत विरोधी संगठनों के पास पहुंच जाता है. भारत विरोधी ताक़तों का एक PLAN ये भी है कि वो भारत की युवा पीढ़ी को नशे की लत लगाकर उसे खोखला करना चाहती हैं. इसके लिए ये network भारत- म्यांमार की बिना fensing वाले open border और free movment regime का फायदा उठा रहे हैं.
म्यांमार का चिन प्रांत मणिपुर से बिल्कुल सटा हुआ है और United Nations समेत कई संस्थाओं के अनुसार ये चिन प्रांत ड्रग तस्करी के golden triangle में आता है. यानी वो जगह जिसे आप ड्रग तस्करी का सबसे बड़ा Route कह सकते हैं. सरकार के अनुसार इसी चिन प्रांत से घुसपैठिए मणिपुर में घुसते हैं. एक जैसी भाषा और पहचान होने की वजह से वो आसानी से यहां घुलमिल जाते हैं. हालांकि पुलिस के तरफ से इस खेती को रोकने के लिए और नष्ट करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार..
-वर्ष 2013 से 2016 तक जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी उस दौरान 18 सौ नवासी एकड़ ज़मीन में अफीम और 66 एकड़ जमीन की गांजे की खेती नष्ट की गई थी.
-हालांकि BJP सरकार आने के बाद पहले 5 वर्षों में 18 हज़ार 6 सौ चौसठ से ज़्यादा एकड़ अफीम की खेती नष्ट की गई...यानी कांग्रेस सरकार के मुक़ाबले क़रीब 10 गुना ज़्यादा.
-इन 5 वर्षों में सबसे ज़्यादा कार्रवाई कुकी बहुल ज़िलों में हुई जहां चुराचांदपुर में चार हज़ार तीन सौ सत्तानवे एकड़ और kangpokpi (कानपोकपी) में दो हज़ार 7 सौ एकड़ ज़मीन पर मौजूद अफ़ीम की फ़सल नष्ट की गई.
-और जानकारों के अनुसार जब अफ़ीम के अवैध कारोबार पर सख्ती की गई तो पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाला कुकी समुदाय इससे भड़क गया और मणिपुर की ताज़ा हिंसा के पीछे ये नाराज़गी भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है.