नई दिल्ली: सरकारी अफसरों की लालफीताशाही की अक्सर बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. इसका हालिया उदाहरण परिवहन मंत्रालय में तब देखने को मिला. जहां भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को करीब 9 साल पुराने मामले का निपटारा करना महंगा पड़ गया.


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यहां 20 लाख के पुराने बिल का भुगतान रोकने के हर्जाने में प्राधिकरण को 4.5 करोड़ रुपये चुकाने पड़े. सड़क परिवहन मंत्रालय के तहत काम करने वाली एक प्राइवेट फर्म ने कोर्ट और ट्रिब्यूनल के जरिये केस जीत कर अपने हक की रकम हासिल की


ऊंची ब्याज दर रही वजह


टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक हाई इंटरेस्ट रेट (High Interest Rate) के कारण NHAI को इतनी बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ा. प्राधिकरण ने आखिरी पेमेंट दिसंबर 2019 में की थी. कोर्ट में पेश दस्तावेजों के मुताबिक फर्म MSME Development Act के तहत रजिस्टर्ड थी इसलिये वो 27% ब्याज पाने की हकदार थी. 


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क्या था मामला?


दरअसल प्राइवेट फर्म ने 11 टोल प्लाजा पर टोल कलेक्शन की निगरानी के लिए फरवरी 2010 में NHAI के साथ करार किया था. अथॉरिटी ने पेमेंट रोकने के पीछे ये तर्क दिया था कि फर्म अपने काम को सही से पूरा करने में नाकाम रही और फर्म के पेमेंट में देरी इस वजह से हुई क्योंकि कंपनी ने अपनी रिपोर्ट देर से दाखिल की थी.


परिवहन मंत्री ने कही जांच की बात


वहीं अफसरों की हीलाहवाली से नाराज फर्म अपने वकीलों के जरिये मामले को Delhi International Arbitration Centre तक ले गई थी. ये मामला हाई कोर्ट (Delhi High Court) तक गया लेकिन NHAI को कोई राहत नहीं मिली.


इस मामले का खुलासा होने के बाद केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि इस मामले की जांच कराई जाएगी.