One Nation One Election: कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बनाए गए वन नेशन वन इलेक्‍शन बिल को केंद्रीय कैबिनेट की गुरुवार को मंजूरी मिल गई. सूत्रों के मुताबिक, संसद में जारी शीतकालीन सत्र में बिल पेश किया जा सकता है. अगर वन नेशन वन इलेक्शन बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हुआ तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों के एक साथ कराए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा. इस पीढ़ी के लिए भले ही ये नया लगे लेकिन गुजरे दौर में अपने देश में ही ऐसा होता रहा है. शुरू के चार आम चुनावों के साथ ही सारे राज्‍यों के चुनाव भी कराए जाते थे. बाद में गाड़ी पटरी से उतर गई...


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वो चार चुनाव...
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में हुए थे. नये संविधान के तहत पहला आम चुनाव अक्टूबर 1951-मई 1952 के बीच आयोजित किया गया था, जिसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, केंद्र और राज्यों में निचले सदनों और उच्च सदनों के सदस्यों का चुनाव तीन-स्तरीय प्रक्रिया के तहत किया गया था.


लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए दूसरा आम चुनाव मार्च 1957 में संपन्न हुआ. लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों के परामर्श से बिहार, बंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की विधानसभाओं को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया गया.


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जब बिगड़ी बात
समय बीतने के साथ-साथ एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था खत्म हो गई. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल निश्चित अवधि के लिए नहीं बल्कि अधिकतम पांच साल के लिए था. 1961 से 1970 के बीच पांच राज्यों-बिहार, केरल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तीन बार चुनाव हुए. अगले दशक (1971-1980) में स्थिति और खराब हो गई, जब 14 राज्यों में तीन बार चुनाव हुए. ओडिशा में इस दशक में चार बार चुनाव हुए. उसके बाद के दशक (1981-1990) में पांच राज्यों में तीन बार चुनाव हुए. 1991 से 2000 तक दो राज्यों में तीन बार चुनाव हुए और चार बार लोकसभा चुनाव हुए.


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जब उठी मांग
एक साथ चुनाव कराने पर समय-समय पर कई रिपोर्ट सामने आईं. 1983 में अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के विचार की पैरवी की थी. 2002 में संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग ने अलग-अलग चुनावों के नुकसान को चिह्नित किया और एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था फिर से शुरू करने का आग्रह किया.


विधि आयोग ने चुनावों के संचालन से जुड़े विभिन्न मुद्दों का अध्ययन किया और 1999, 2015 और 2018 की अपनी रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की. विधि आयोग ने 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में बताया कि 1967 से पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की प्रचलित प्रथा में विभिन्न कारकों के कारण व्यवधान उत्पन्न हुए थे.


विधि आयोग की रिपोर्ट (मसौदा), 2018 ने एक साथ चुनाव कराने के महत्व और फायदों को फिर से रेखांकित किया. कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने चुनाव कराने में शामिल मुद्दों का गहन अध्ययन किया और दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने की वैकल्पिक एवं व्यावहारिक पद्धति की सिफारिश की.


जनवरी 2017 में नीति आयोग ने ‘‘एक साथ चुनावों का विश्लेषण : क्या, क्यों और कैसे’’ शीर्षक से एक कार्यपत्र तैयार किया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की संभावना तलाशी गई. 2019 में दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें शासन में महत्वपूर्ण सुधारों पर चर्चा करने के लिए 19 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. चर्चा का एक विषय एक साथ चुनाव कराना भी था. उसके बाद पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्‍व में एक कमेटी का गठन किया गया. इसी साल सितंबर में उस रिपोर्ट को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी.