Jharkhand Govt Suspends Internet for JGGLCCE: झारखंड में जनरल ग्रेजुएट लेवल कंबाइंड कंप्टेटिव एग्जामिनेशन (JGGLCCE) की वजह से राज्य में शनिवार और रविवार (21 और 22 सितंबर) को पांच घंटे से अधिक समय के लिए इंटरनेट सर्विसेज पर रोक लगाने का फैसला किया है. सरकार ने इसके पीछे तर्क दिया है कि परीक्षा के दौरान किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकने के लिए शनिवार को सुबह आठ बजे से दोपहर 1:30 बजे तक सेवाएं निलंबित रहेंगी और रविवार को भी यह प्रतिबंध जारी रहेगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उन्होंने परीक्षा की तैयारियों को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों से बात की है और किसी भी परिस्थिति में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी. सोरेन ने कहा कि अगर कोई भी परीक्षा के दौरान गलती से भी कुछ गलत करने की कोशिश करेगा तो हम उसके साथ सख्ती से निपटेंगे. लेकिन, ये कैसी सख्ती है कि इंटरनेट बंद कर दी जाय, क्या झारखंड सरकार के सारे तंत्र फेल हो गए हैं जो अब परीक्षा में चीटिंग रोकने के लिए इंटरनेट बंद का सहारा लेना पड़ रहा है.


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क्या इंटरनेट बंद करना है समाधान?


एग्जाम में चीटिंग रोकने के लिए क्या उपाय किए जाएं? यह एक गंभीर सवाल है, लेकिन इसके लिए कई तरह के कदम उठाए जा सकते थे और परीक्षा में कड़ाई की जा सकती थी. लेकिन, झारखंड जनरल ग्रेजुएट लेवल कंबाइंड कंप्टेटिव एग्जामिनेशन (JGGLCCE) के दौरान इंटरनेट बंद करने का फैसला कई गंभीर सवाल खड़े करता है. हालांकि, दूसरी तरफ यह परीक्षा की पवित्रता बनाए रखने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, लेकिन इस कदम को पूरी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है.


आम लोगों को हुई परेशानी की कौन करेगा भरपाई?


परीक्षाओं में नकल एक गंभीर समस्या है, जो न केवल छात्रों के भविष्य को प्रभावित करती है बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है. झारखंड सरकार का यह कदम इस समस्या से निपटने का एक अस्थायी समाधान हो सकता है, लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है. इंटरनेट बंद करने से कुछ छात्रों को नकल करने से रोका जा सकता है, लेकिन यह उन छात्रों के लिए भी एक बाधा बन सकता है जो ईमानदारी से पढ़ाई कर रहे हैं. इसके अलावा, इंटरनेट बंद करने से कई अन्य गतिविधियों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि ऐसे कई लोग हैं जिनका काम इंटरनेट से ही चलता है और उनको 2 दिनों तक आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. क्या सरकार ऐसे लोगों को हुए नुकसान की भरपाई करेगी?


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आखिरी एग्जाम में छात्र नकल करते ही क्यों हैं?


परीक्षाओं में चीटिंग को रोकने के लिए मूल समस्या की ओर ध्यान देना होगा. सरकार यह समझने की जरूरत है कि आखिर छात्र नकल करते ही क्यों हैं. क्या यह दबाव के कारण होता है? क्या यह शिक्षा व्यवस्था की खामियों के कारण होता है? क्या यह समाज में व्याप्त नकल की प्रवृत्ति के कारण होता है? इन सवालों के जवाब ढूंढकर ही हम इस समस्या का स्थायी समाधान निकाल सकते हैं.


नकल रोकने के लिए क्या करना चाहिए?


हम नकल रोकने के लिए तकनीक का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि बायोमेट्रिक पहचान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस. एग्जाम सेंटर में कड़ी निगरानी रखना सबसे महत्वपूर्ण उपाय है. एग्जामिनर को छात्रों पर लगातार नजर रखनी चाहिए और किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. एग्जाम सेंटर पर मेटल डिटेक्टर से छात्रों की जांच की जानी चाहिए ताकि छात्र सेंटर के अंदर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या नकल करने वाले उपकरण ना ले जा सकें. परीक्षा केंद्र के आसपास मोबाइल फोन जैमर लगाकर छात्रों के मोबाइल फोन को बंद किया जा सकता है. एग्जाम सेंटर पर सीसीटीवी कैमरे से नजर रखने के साथ ही सीसीटीवी से पूरी परीक्षा प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है. प्रश्न पत्रों के अलग-अलग सेट तैयार करके छात्रों को अलग-अलग प्रश्न पत्र दिए जा सकते हैं. एग्जाम हॉल में छात्रों को एक-दूसरे से कुछ दूरी पर बैठाकर भी नकल रोकी जा सकती है.


किसी भी एग्जाम में चीटिंग रोकने के लिए शिक्षा व्यवस्था को ऐसा बनाना होगा, जहां छात्र दबाव महसूस न करें. इसके साथ ही छात्रों को कोई भी चीज सीखने के लिए पढ़ाई करने पर जोर देना होगा, ना कि केवल पास करने के लिए. हमें परीक्षा प्रणाली को ऐसा बनाना होगा, जो छात्रों के ज्ञान और समझ का परीक्षण करे, न कि केवल उनकी याद करने की क्षमता का टेस्ट करें.