नई दिल्ली: 15 अगस्त काबुल पर कब्जा करते ही तालिबान ने राजधानी को चलाने के लिए और काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कंट्रोल करने के लिए एक नए सुरक्षा प्रमुख की नियुक्ति की. काबुल का नया सुरक्षा प्रमुख नियुक्त होते ही हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख कमांडर खलील-उल-रहमान हक्कानी ने जल्द ही अपने लड़ाकों के साथ काबुल की सड़कों पर जमावड़ा लगा दिया और काबुल हवाई अड्डे में घुसने और बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद कर दिए.


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अमेरिका की वापसी के बाद अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क के जबरदस्त प्रभाव का यह शुरुआती संकेत था. ऐसा ही संकेत पहले भी मिल चुका है, जब आतंकी संगठन के एक अन्य लीडर अनस हक्कानी ने तालिबान को सत्ता पर जल्दी काबिज कराने के लिए डॉ अब्दुल्ला अब्दुल्ला और हामिद करज़ई से मुलाकातें की. अभी अनस हक्कानी को तालिबान ने उसके नेतृत्व वाली सरकार के गठन के लिए स्टेकहोल्डर्स के साथ बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी हुई है.


लंबे समय से आतंकी गतिविधि चला रहा है हक्कानी नेटवर्क


इसके अलावा, ‘पंजशीर प्रतिरोध’ लड़ाकों के साथ लंबी लड़ाई और देश भर में विरोधियों को दबाने की तैयारी के लिए हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति की जिम्मेदारी अजीज अब्बासिन संभाल रहा है. अजीज अब्बासिन हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है. फरवरी 2020 में जब शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, तभी से वह तालिबान की तरफ से चौतरफा युद्ध की तैयारी के लिए हथियारों और गोलाबारूद की व्यवस्था का काम देख रहा था. इससे पहले, मई 2020 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अब्दुल अजीज अब्बासिन, हक्कानी नेटवर्क का एक सीनियर लीडर है और तालिबान के उप-प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी का भाई भी है. इसने गजनी, वर्दक, पख्तिया और परवान प्रांतों में तालिबानी लड़ाकों के लिए गोला-बारूद और विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति बढ़ाने के लिए ऑर्डर दिया. इसी तरह, इस संगठन का एक अन्य प्रमुख आतंकी हाजी मली खान है, जो लंबे समय से ही संगठन के लिए फंडिंग जुटाने का काम कर रहा है. गौरतलब है कि वह जलालुद्दीन हक्कानी के भाइयों में से एक है और नवंबर 2019 में हक्कानी नेटवर्क के अन्य दो प्रमुख सदस्यों - अनस हक्कानी और अब्दुल रशीद के साथ एक सौदे के तहत रिहा किया गया था.



सबसे बड़ा नेता है सिराजुद्दीन हक्कानी


इन सबसे ऊपर सिराजुद्दीन हक्कानी है, जिसका कद तालिबान नेताओं में दूसरे नंबर पर आता है. ये ही तालिबान सरकार के गठन में बड़ी भूमिका निभा रहा है और देश में तालिबान के मिलिट्री ऑपरेशन की भी कमान संभाल रहा है. अफगानिस्तान पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट के अनुसार, अब्दुल कय्यूम जाकिर को देश का नया कार्यवाहक रक्षा मंत्री नियुक्त किए जाने के पीछे सिराजुद्दीन का ही दम-खम था. क्वेटा शूरा के एक प्रमुख सदस्य और तालिबान के पूर्व आर्मी हेड अब्दुल कय्यूम जाकिर का नाम सिराजुद्दीन हक्कानी के करीबी लोगों की लिस्ट में आता है. इससे पहले, वह ग्वांतानामो खाड़ी स्थित अमेरिकी जेल में बंद था और 2007 में रिहा हुआ. रिहाई के बाद उसने हेलमंद प्रांत के नारकोटिक हब को नियंत्रित करना शुरू कर दिया, जो हक्कानी नेटवर्क के लिए फंडिंग का एक बड़ा सोर्स साबित हुआ. ये सभी बातें अफगानिस्तान की हालिया हालात में हक्कानी नेटवर्क की मजबूत स्थिति को बयां करती हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस संगठन के पास अब सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के साथ-साथ सैन्य कमान का भी पूरा कंट्रोल है.


हक्कानी नेटवर्क का सेंटर पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में


जानकारी के मुताबिक हक्कानी नेटवर्क का सेंटर पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में है और यह 1980 के दशक से ही डूरंड रेखा के दूसरी तरफ आतंकी गतिविधियों को चला रहा है. 2001 में अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद इस संगठन ने तालिबान नेताओं को वहां से भगाने और पाकिस्तान में पनाह देने में अहम भूमिका निभाई थी. स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार हक्कानी नेटवर्क  ने 2001 में तोरा बोरा से ओसामा बिन लादेन के भागने में भी सहायता की थी.सोवियत-विरोधी युद्ध के दौर से ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा अपनी भू-राजनीतिक और रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इस संगठन का दुरुपयोग किया जाता रहा है.


पाकिस्तान करता रहा है पर्दे के पीछे से सपोर्ट


इसके अलावा, आईएसआई ने अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाए इंफ्रास्ट्रक्चर और भारत समर्थकों पर हमला करने के लिए इस संगठन का कई बार इस्तेमाल किया है. इस संबंध में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान इस्लामी आतंकी गतिविधियों में शामिल होने से इनकार करता है, लेकिन पश्चिमी और अफगान अधिकारियों का कहना है कि अफगानिस्तान और भारत को कमजोर करने के लिए इस्लामाबाद आतंकवाद को बढ़ावा देता है. 2011 में, संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के तत्कालीन अध्यक्ष, एडमिरल माइक मुलेन ने हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की प्रमुख खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की मैन ब्रांच बताया था.


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Zee News से बात करने वाले एक स्ट्रेटजिक एक्सपर्ट का मानना है कि पाकिस्तान ने पिछले चार दशकों से चतुराई से खेल खेला है, जिसके तहत उसने हक्कानी नेटवर्क के माध्यम से न केवल अफगान और भारतीय हितों पर आघात किया है, बल्कि अमेरिका द्वारा ही दिए गए धन का उपयोग अमेरिकी लीडरशिप वाले सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए भी किया है. हालांकि पाकिस्तान इन हमलों में अपनी भूमिका होने से हमेशा नकारता रहा है.


वफादार तालिबान कमांडरों को लेकर प्लान


हक्कानी नेटवर्क के हाथों में सत्ता की चाबी आते ही आईएसआई यह सुनिश्चित कर रहा है कि इसके वफादार तालिबान कमांडरों को सरकार के साथ-साथ सेना के शीर्ष पदों पर बिठा दिया जाए. नतीजतन, अफगान नागरिकों को इस चिंता ने घेर रखा है कि अफगान सरकार अब काबुल से नहीं, बल्कि इस्लामाबाद से चलेगी. अनस हक्कानी जैसे अपने वफादारों के माध्यम से दोहा में एक फायदेमंद सौदे और जलमय खलीलजाद जैसे लोगों को अपने पाले में लाकर अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान अब आतंकवादी संगठनों को बढ़ावा देने के लिए कर रहा है.


इसके साथ ही ये घटनाक्रम यह भी इशारा करती हैं कि दुनिया अफगानिस्तान की नई सरकार में सिराजुद्दीन हक्कानी को असली लीडर के रूप में देख सकती है, जबकि मुल्ला गनी बरादर केवल नाममात्र के लीडर होंगे. अफगान मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, तमाम नए मंत्रियों के अलावा, प्रांतों के तालिबानी गवर्नरों और फ्रंट कमांडरों में से ज्यादातर से सिराजुद्दीन हक्कानी के अच्छे ताल्लुक हैं.



10 मिलियन डॉलर का इनाम


गौरतलब है कि सिराजुद्दीन अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा घोषित एक वैश्विक आतंकवादी है, उसके सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम है और उसने अफगानिस्तान में अमेरिकी नागरिकों पर कई हमलों को अंजाम देने के साथ-साथ अप्रैल 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई के हत्या की योजना भी बनाई थी. उसे एक निर्दयी और घातक कमांडर माना जाता है और संगठन का नेतृत्व संभालने के बाद उसने अधिक हिंसात्मक योजनाओं पर काम करना शुरु कर दिया. तालिबान के डिप्टी हेड के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उसने संगठन को और ज्यादा खतरनाक बना दिया. इसके अलावा, वह अल-कायदा के साथ अपने और हक्कानी नेटवर्क के संबंधों के बारे में काफी मुखर रहा है. 


हक्कानी नेटवर्क के हाथों में सत्ता का शीर्ष नेतृत्व आने का बुरा असर


हक्कानी नेटवर्क के हाथों में सत्ता का शीर्ष नेतृत्व आने का बुरा असर हो सकता है. अब वहां पाकिस्तान अल-कायदा सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों का भी चालाकी से इस्तेमाल करेगा, जिनके हक्कानी नेटवर्क के साथ मजबूत संबंध हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी द्वारा संबंधों की बात स्वीकारने के अलावा खलील-उर-रहमान हक्कानी अल-कायदा के सैन्य अभियानों से जुड़ा रहा है और 2002 से ही उसके लिए काम कर रहा है, जब उसने अल-कायदा नेटवर्क को फिर से एक्टिव करने के लिए पख्तिया प्रांत में अपने लड़ाकों को लगाया था. 


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इन सब के बीच अफगान नागरिकों की चिंताएं अब धीरे-धीरे सामने आ रही हैं, जिनका मानना है कि अफगानिस्तान का सिराजुद्दीन हक्कानी के सीधे नियंत्रण में आने के बाद तालिबान अपने विरोधियों को अधिक क्रूरता से कुचलेगा क्योंकि अफगान जनता, खासकर दक्षिणपूर्वी इलाकों से के लोग सिराजुद्दीन हक्कानी से खासी नफरत करते हैं और उसे एक बड़ा कट्टरपंथी और क्रूर आतंकवादी के रूप में देखते हैं.


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