नई दिल्ली: भारत बायोटेक की कोवैक्सीन में बछड़े के सीरम के इस्तेमाल को लेकर कांग्रेस नेता के सवाल पर काफी विवाद हुआ. इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय और भारत बायोटेक दोनों ने इस पर जवाब दिया और बताया कि ये फेक न्यूज़ है. लेकिन ये मामला अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. अब एनिमल राइट ऑर्गनाइजेशन PETA ने इसमें एंट्री ले ली है. 


कोवैक्सीन बनाने की प्रक्रिया को बदलने की मांग


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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में PETA ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को लिखा है कि कोवैक्सीन बनाने की प्रक्रिया को बदला जाए और इसमें किसी भी जानवर का इस्तेमाल न किया जाए. 


गुरुवार को PETA ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को लिखा कि बछड़े के सीरम की जगह कोवैक्सीन को बनाने के लिए किसी और चीज का इस्तेमाल किया जाए, जिससे जानवरों को किसी तरह का नुकसान न हो और वैक्सीन का प्रोडक्शन भी बिना रुके होता रहे.


PETA ने डीजीसीआई से ये आश्वासन मांगा है कि यह सुनिश्चित करें कि वैक्सीन के प्रोडक्शन में जानवरों का इस्तेमाल नहीं होगा. PETA ने कहा कि जिस बछड़े के सीरम का इस्तेमाल वैक्सीन के प्रोडक्शन में किया जाता है, उसे जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मां से अलग कर दिया जा​ता है. इसके साथ ही PETA ने कुछ नियमों का हवाला दिया जिसमें 3 महीने से कम उम्र वाले बछड़े को मारने पर रोक की बात कही गई है. 



बता दें कि सोशल मीडिया पर कांग्रेस के नेशनल कोऑर्डिनेटर गौरव पांधी ने एक RTI के हवाले से दावा किया कि कोवैक्सीन में 20 दिन से कम उम्र वाले गाय के बछड़े का सीरम इस्तेमाल किया जाता है. वहीं केंद्र सरकार ने इस फेक न्यूज़ पर ब्रेक लगाते हुए इस पर सही जानकारी लोगों के साथ शेयर की, जिसके तहत सरकार ने बताया कि कोवैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम मिले होने की बात पूरी तरह गलत है.


डेड सेल्स से तैयार होती है कोवैक्सीन


कोवैक्सीन, कोरोना वायरस के डेड सेल्स से तैयार होती है और ये काम अलग-अलग चरणों में होता है. गाय के बछड़े का सीरम सिर्फ Vero Cells को विकसित करने के लिए होता है. ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका प्रयोग वैक्सीन बनाने के लिए वैज्ञानिक कई दशकों से कर रहे हैं. 


कोरोना वायरस को वेरो सेल्स में मिलाया जाता है, जिसके बाद ये वायरस उसमें अपनी कॉपीज बनानी शुरू कर देता है. वायरस की ग्रोथ की इस प्रक्रिया में Vero Cells पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं और इस चरण के बाद सिर्फ वायरस बचता है. इसके बाद इस वायरस को भी पीट पीट कर मार दिया जाता है क्योंकि, ये एक डेड वायरस वैक्सीन है.


वायरस को मारने के बाद उसे पानी और केमिकल्स से फिर से धोया जाता है ताकि गाय के बछड़े का सीरम उसमें बचा न रहे. इस पूरी प्रक्रिया के बाद मरे हुए वायरस से वैक्सीन तैयार होती है यानी वैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम नहीं होता है.