पीएम नरेंद्र मोदी का पहला पॉडकास्ट आ गया है. इस इंटरव्यू में जीरोधा के को-फाउंडर निखिल कामथ ने बड़े सहज तरीके से कई रोचक सवाल पूछे हैं. इसमें भी सबसे ज्यादा चर्चा इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी से संबंधित सवाल की हो रही है. हां, सोशल मीडिया पर उतने हिस्से का इंटरव्यू वायरल है. आखिर निखिल कामथ ने ऐसा क्या पूछ लिया?


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दरअसल, हंसी के मूड में दिख रहे निखिल कामथ ने इंटरव्यू के आखिरी हिस्से में कहा कि चूंकि मेरा फेवरेट फूड पिज्जा है और पिज्जा इटली से है. लोग इंटरनेट पर कहते हैं कि आपको इटली के बारे में बहुत कुछ पता है. यह सवाल दागकर निखिल मुस्कुराने लगे. कुछ सेंकेड रुके फिर बोले कि आप इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे. (नीचे पीएम के साथ इटली के पीएम की सेल्फी देख लीजिए)



पहले से रिकॉर्ड इस इंटरव्यू में कैमरे का फोकस अब पीएम मोदी पर आता है. पीएम उस समय विचारमग्न मुद्रा में दिखते हैं. एडिटिंग के जरिए पीएम मोदी और इटली की पीएम मेलोनी की सेल्फी पीछे दिखाई जाती है, जिसमें दोनों मुस्कुराते हुए दिखाई देते हैं. पीएम कुछ सेकेंड सोच में पड़ जाते हैं कि क्या जवाब दिया जाए.


निखिल फिर बोलते हैं कि आपने मीम्स नहीं देखे? तब पीएम बोले- नहीं, नहीं, वो तो चलता रहता है. मैं अपना टाइम खराब नहीं करता हूं. पीएम ने आगे कहा कि मैं खाने का शौकीन नहीं हूं. जो भी वेजिटेरियन परोसा जाता है खा लेता हूं. आगे उन्होंने भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली को याद करते हुए कहा कि अरुण जी खाने के शौकीन थे और जब संगठन का काम करते समय बाहर खाना होता था तो वही ऑर्डर करते थे.



जेरोधा के सह-संस्थापक निखिल कामथ के साथ पॉडकास्ट में मोदी ने यह भी कहा कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी पर हालात की वजह से उन्होंने प्रधानमंत्री पद का तक सफर तय किया. प्रधानमंत्री ने सवालिया अंदाज में कहा कि आज के युग में नेता की जो परिभाषा आप देखते हैं, उसमें महात्मा गांधी कहां फिट होते हैं? उन्होंने कहा, ‘व्यक्तित्व के लिहाज से शरीर दुबला पतला...ओरेटरी (भाषण कला) न के बराबर थी. उस हिसाब से देखें तो वह लीडर बन ही नहीं सकते थे. तो क्या कारण थे कि वह महात्मा बने. उनके भीतर जीवटता थी जिसने उस व्यक्ति के पीछे पूरे देश को खड़ा कर दिया था.’


प्रधानमंत्री ने कहा कि जरूरी नहीं है कि नेता लच्छेदार भाषण देने वाला ही होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘यह कुछ दिन चल जाता है. तालियां बज जाती हैं लेकिन अंतत: जीवटता काम करती है. दूसरा मेरा मत है कि भाषण कला से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है संवाद कला. आप संवाद कैसे करते हैं?’


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उन्होंने कहा, ‘अब देखिए, महात्मा गांधी हाथ में अपने से भी ऊंचा डंडा रखते थे, लेकिन अहिंसा की वकालत करते थे. बहुत बड़ा अंतर्विरोध था फिर भी संवाद करते थे. महात्मा गांधी ने कभी टोपी नहीं पहनी लेकिन दुनिया गांधी टोपी पहनती थी. यह संवाद की ताकत थी. महात्मा गांधी का क्षेत्र राजनीति था लेकिन राज व्यवस्था नहीं थी. वह चुनाव नहीं लड़े, वह सत्ता में नहीं बैठे लेकिन मृत्यु के बाद जो जगह बनी (समाधि), वह राजघाट बना.’