नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश के आरोप में जिन पांच कथित माओवादियों को मंगलवार को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया या नजरबंद किया, वो अपने अपने क्षेत्र की दिग्गज हस्तियां हैं. कोई आईआईटी से ग्रेजुएट है, अमेरिकी नागरिकता छोड़ चुका है, तो कोई सरकारी नौकरी छोड़कर कवि बन गया. तो कोई शिक्षक की नौकरी छोड़कर ट्रेड यूनियन नेता बन गया. कोई जानामाना अर्थशास्त्री है तो कोई ऐसा कवि जिसकी रचनाओं का अनुवाद 20 भाषाओं में हो चका है.


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सुधा भारद्वाज



57 साल की सुधा भारद्वाज ट्रेड यूनियन नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील हैं. उनका जन्म अमेरिका में हुआ था और वो 11 साल की उम्र में भारत आ गईं. जब वो 18 साल की थीं, तो उन्होंने अमेरिका की नागरिकता छोड़ दी. वो जानेमाने शिक्षाविद् और अर्थशास्त्री रंगनाथ भारद्वाज और कृष्णा भारद्वाज की बेटी हैं. उनकी मां ने एमटीआई ने अर्थशास्त्र में पीएचडी की. उन्होंने अपने जीवन के पिछले 30 वर्षों का ज्यादातर समय छत्तीसगढ़ में बिताया है. 2017 में वो दिल्ली आ गईं और इस समय नेशनल लॉ यूनीवर्सिटी में पढ़ा रही हैं. वो पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की महासचिव हैं.


भारद्वाज ने आईआईटी कानपुर से गणित में ग्रेजुएशन किया है. बाद में वो अध्यापन छोड़कर मजदूर संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गईं. वो भिलाई स्टील प्लांट के मजदूर संघ के साथ भी जुड़ी रही हैं. उन्होंने बेहतर मजदूरी और सुरक्षित कार्यदशाओं के लिए संघर्ष किया. उन्होंने 2000 में कानून की पढ़ाई पूरी की और तब से वो मानवाधिकार और श्रम कानून के कई मुकदमें लड़ चुकी हैं. वो बस्तर सॉलिडेरिटी नेटवर्क और जगदलपुर लीगल एड ग्रुप से भी जुड़ी रही हैं.


वरवर राव



तेलंगाना में वारंगल के रहने वाले 78 वर्षीय वरवर राव जानेमाने क्रांतिकारी कवि, आलोचक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हैं. उन्हें कथित तौर पर माओवादियों से सहानुभूति रखने वाला माना जाता है. वह माओवादियों तक संदेशवाहक की भूमिका निभा चुके हैं. जब संयुक्त आंध्र प्रदेश में विद्रोह अपने चरम पर था, तब उन्होंने संघर्ष विराम के लिए वार्ता की है.


वो क्रांतिकारी लेखक संघ के संस्थापक हैं, जो क्रांति की कविताएं और साहित्य प्रकाशित करता है. उनके 15 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनका 20 भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है. वो भारत सरकार के प्रचार विभाग डीएवीपी में प्रकाशन सहायक के रूप में काम भी कर चुके हैं.


मई 1974 में आंध्र प्रदेश सरकार ने उनके और 40 अन्य क्रांतिकारी लेखकों के खिलाफ विद्रोह को भड़काने वाला साहित्य लिखने का केस दर्ज किया. इसे सिकंदराबाद साजिश के नाम से जाना जाता है. बाद में ट्रायल कोर्ट ने राव और उनके साथियों को रिहा कर दिया.


गौतम नवलाखा



ग्वालियर में जन्मे नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले गौतम नवलाखा पीपुल्स यूनियन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के सक्रिय सदस्य हैं. उन्होंने मुंबई से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की है और पिछले एक साल से 'न्यूजक्लिक' नाम से एक डिजिटल न्यूजपोर्टल चला रहे हैं. 65 वर्षीय नवलाखा ऐकडेमिक जर्नल बिजनेस एंड पॉलिटिकल वीकली के साथ 30 साल से अधिक समय तक जुड़े रहे. उन्होंने 'डेज एंड नाइट्स इन दि हार्टलैंड ऑफ रिबेलियन' के नाम से एक किताब भी लिखी है. वो कश्मीर में मानवाधिकार के मसले पर काफी सक्रिय रहे हैं.


वरनन गोंजाल्विस



उन्हें पहली बार 2007 में प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 60 वर्षीय गोंजाल्विस एक कैथोलिक ईसाई परिवार में जन्मे और उनका बचपन दक्षिण मुंबई की निम्न-मध्यमवर्गीय चाल में बीता. उन्हें सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने की नौकरी मिल गई, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने वो नौकरी छोड़ दी और विदर्भ में मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने लगे.


अरुण परेरा



48 वर्षीय अरुण परेरा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के पूर्व छात्र हैं. 2007 से ही लगातार जेल के अंदर-बाहर हो रहे हैं. करीब पांच साल जेल में रहने के बाद 2014 में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने जेल के अपने अनुभवों पर 'कलर्स ऑफ केज' नाम से एक किताब लिखी. 2015 से वो मुंबई में एक वकील के तौर पर प्रैक्टिस कर रहे हैं.


हाल में उन्होंने एक वेब पोर्टल पर अपने जेल अनुभवों के बारे में एक लेख लिखा था, जिसमें बता कि जेल में रोशनी और खुली हवा नसीब नहीं होती. इस लेख को आधार बनाकर लंदन में विजय माल्या ने भारत प्रत्यर्पण का विरोध किया.