पंजाब में कांग्रेस का पत्ता साफ, क्या BJP की तरफ से खेलेंगे कैप्टन?
79 वर्ष के अमरिंदर सिंह राजनीति का टेस्ट मैच खेल रहे हैं. बीजेपी इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं करेगी. पहले अमरिंदर सिंह की छवि को चमकाया जाएगा. उन्हें किसानों और सरकार के बीच मध्यस्थता कराने का काम सौंपा जाएगा और फिर उन्हें बीजेपी में शामिल करने को लेकर कोई फैसला लिया जाएगा.
नई दिल्ली: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के बीच बुधवार शाम एक मुलाकात हुई. 79 वर्ष के अमरिंदर सिंह और 56 वर्ष के अमित शाह के बीच ये मुलाकात 50 मिनट तक चली. राजनीति में 50 मिनट की मुलाकात को सामान्य मुलाकात तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता. T-20 क्रिकेट में एक टीम इतने समय में अपनी पारी के आधे Overs खेल लेती है और दोनों टीमों के लिए ये अनुमान लगाना आसान हो जाता है कि मैच किस तरफ जा सकता है और इस मुलाकात से भी ऐसा ही हुआ है.
क्या बीजेपी ज्वाइन करेंगे कैप्टन?
राजनीतिक अटकलें ये हैं कि अमरिंदर सिंह बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं और पंजाब के विधान सभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बन सकते हैं लेकिन असली रणनीति इससे कहीं आगे की है. अगर अमरिंदर सिंह बीजेपी ज्वाइन करके केंद्र सरकार में मंत्री बन जाते हैं, या बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनते हैं तो वो भी नवजोत सिंह सिद्धू की तरह सत्ता पाने के लिए बेताब, एक नेता की तरह दिखेंगे. इसलिए बीजेपी चाहती है कि पहले अमरिंदर सिंह की छवि पंजाब के किसानों के सबसे मजबूत प्रतिनिधि के तौर पर चमकाई जाए और फिर उनसे किसानों के साथ बातचीत में मध्यस्थता कराई जाए. शायद इसीलिए इस मुलाकात में कैप्टन अमरिंदर सिंह और अमित शाह के बीच किसान आन्दोलन, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसानों के मुद्दे पर काफी लम्बी चर्चा हुई.
क्या है बीजेपी का प्लान?
किसान आंदोलन की शुरुआत पिछले साल अगस्त में पंजाब से ही हुई थी और ये किसान भी अब आंदोलन से थक चुके हैं लेकिन राकेश टिकैत जैसे नेताओं के स्वार्थ की वजह से किसानों को इस आंदोलन से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा. अगर अमरिंदर सिंह किसानों से बात करते हैं तो फिर शायद किसान भी आंदोलन वापस लेने के बारे में सोच सकते हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह जाट सिख समुदाय से आते हैं, जिनकी पंजाब में कुल आबादी 14 से 18 प्रतिशत तक है. पंजाब में ज्यादातर जमींदार किसान भी इसी समुदाय से आते हैं और आन्दोलन में भी पंजाब के इन्हीं किसानों की सबसे ज्यादा भूमिका है. इसलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह इस रोल में काफी फिट हो सकते हैं.
अमरिंदर के सामने हैं तीन विकल्प?
2017 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने अकेले दम पर पंजाब की 117 सीटों में से 77 सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी. यानी पंजाब की लगभग 65 प्रतिशत सीटें उन्होंने अकेले दम पर जीत ली थीं. जबकि बीजेपी और अकाली दल दोनों को मिला कर 18 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी और आम आदमी पार्टी को 20 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह 74 साल के थे और अब उनकी उम्र 79 वर्ष हो चुकी है इसलिए कुछ लोग ये थ्योरी दे रहे हैं कि उनके पास अब तीन विकल्प हैं. पहला वो बीजेपी में शामिल हो जाएं और बीजेपी उनके नेतृत्व में ही पंजाब का चुनाव लड़े. दूसरा वो पंजाब में अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना लें और चुनाव के बाद बीजेपी इस पार्टी को समर्थन दे दे या चुनाव से पहले गठबंधन कर ले और तीसरा कैप्टन बीजेपी ज्वॉइन कर लें, और बीजेपी उन्हें केंद्र में मंत्री बना दे. उदाहरण के लिए कृषि मंत्री उन्हें बना दिया जाए.
सिद्धू और कांग्रेस की गलतफहमी
लेकिन बीजेपी इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं करेगी. पहले अमरिंदर सिंह की छवि को चमकाया जाएगा. उन्हें किसानों और सरकार के बीच मध्यस्थता कराने का काम सौंपा जाएगा और फिर उन्हें बीजेपी में शामिल करने को लेकर कोई फैसला लिया जाएगा. कुल मिलाकर 79 वर्ष के अमरिंदर सिंह राजनीति का टेस्ट मैच खेल रहे हैं. जबकि 57 साल के नवजोत सिंह सिद्धू को लग रहा है कि उन्होंने 20-20 के स्टाइल में आते ही कैप्टन अमरिंदर सिंह का विकेट ले लिया है. जबकि गांधी परिवार सोच रहा था कि उसने एक ही गेंद में दोनों का विकेट ले लिया है. लेकिन असल में अगर इनमें से किसी का विकेट गिरा है तो वो है गांधी परिवार का क्योंकि इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ और कमजोर हो गई है लेकिन गांधी परिवार उस बल्लेबाज की तरह है, जो आउट होने के बाद भी क्रीज छोड़ने को तैयार नहीं है और अब भी थर्ड अंपायर की तरफ देख रहा है कि शायद उन्हें Not Out दे दिया जाए.
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गांधी परिवार पर उठ रहे हैं सवाल
शायद यही वजह है कि अब कांग्रेस के खिलाड़ी ही गांधी परिवार पर सवाल उठाने लगे हैं. अब कांग्रेस के उन 23 नेताओं की टीम मैदान में उतर आई है, जिसे पार्टी में Group-23 कहा जाता है. क्योंकि इन 23 नेताओं ने पिछले साल गांधी परिवार को एक चिट्ठी लिख कर पार्टी की नीतियों की आलोचना की थी लेकिन आज कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ये कह दिया कि वो G-23 तो हैं लेकिन जी हुजूर-23 नहीं हैं. यानी वो और उनके जैसे बाकी नेता गांधी परिवार की जी हुजूरी नहीं कर सकते. कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार का नाम लिए बिना ये भी कहा कि जो लोग इस परिवार के सबसे खास थे, वो तो पार्टी छोड़ कर चले गए लेकिन जिन्हें ये अपने खिलाफ समझते हैं, वो आज भी पार्टी के साथ खड़े हैं और अपनी उन्हीं मांगों को फिर से दोहरा रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने चिट्ठी लिखी थी.
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क्या 'मैच' अब निर्णायक मोड़ पर आ गया है?
कपिल सिब्बल ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम लिए बिना ये भी कहा कि जब पार्टी का कोई नियमित अध्यक्ष है ही नहीं तो फिर पार्टी के सारे बड़े फैसले ले कौन रहा है? यानी उनका सीधा निशाना सोनिया गांधी की तरफ है. कांग्रेस के इसी ग्रुप के एक और नेता गुलाम नबी आजाद ने भी आज सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिख कर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक बैठक बुलाने की मांग की है, जिससे ऐसा लगता है कि ये मैच अब निर्णायक मोड़ पर जा सकता है और कांग्रेस में अध्यक्ष पद की कुर्सी को लेकर सुपर ओवर की भी स्थिति बन सकती है.
कब तक चलेगा एक ही परिवार का 'राज'?
इस समय कांग्रेस का नियंत्रण राहुल गांधी के पास है, जो गांधी नेहरू परिवार की चौथी पीढ़ी के नेता हैं. इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पढ़ा है, जिनसे आप ये जान सकते हैं कि एक परिवार की विरासत चौथी, पांचवीं पीढ़ी तक या तो समाप्त होने लगती है या कमजोर हो जाती है. फिर चाहे वो राजशाही परिवार हो या लोकतंत्र में एक परिवार का शासन हो. जैसे दिल्ली सल्तनत का तुगलक राजवंश चौथी पीढ़ी आते आते समाप्त हो गया था. फिरोजशाह तुगलक, तुगलक वंश की तीसरी पीढ़ी के शासक थे लेकिन वर्ष 1388 में उनकी मृत्यु के 10 साल बाद ही तैमूर ने भारत पर हमला कर दिया और तुगलक वंश हमेशा के लिए समाप्त हो गया. इसी तरह लोदी राजवंश की तीसरी पीढ़ी के शासक इब्राहिम लोदी वर्ष 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई बाबर से हार गए थे और इसके बाद लोदी राजवंश हमेशा के लिए खत्म हो गया था. मुगल सल्तनत भी छठी पीढ़ी आते आते बिखरने लगी थी. लोकतंत्र में भी ऐसा कई बार देखा गया है. जैसे पाकिस्तान में जुल्फीकार अली भुट्टो का परिवार तीसरी पीढ़ी आते आते काफी कमजोर हो गया. अमेरिका में भी एक समय क्लिंटन, बुश और Kennedy परिवार मजबूत हुआ करता था लेकिन इनका प्रभाव भी ज्यादा समय तक नहीं रहा. कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही हो रहा है.
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