Nehru-Gandhi Family News: केदारनाथ थाम में राहुल गांधी और वरुण गांधी की मुलाकात चर्चा का विषय बनी हुई है. राहुल गांधी रविवार को यहां पहुंचे थे जबकि वरुण गांधी पत्नी व बेटी सहित मंगलवार को यहां आए. राहुल रवाना होने से पहले हैलीपैड की ओर बढ़ रहे थे जब कि उनकी नजर बीकेटीसी के वेटिंग रूप के बाहर खड़े वरुण गांधी पर पड़ी. इसके बाद उन्होंने वरुण से मुलाकात की. राहुल वरुण की बेटी अनुसूइया से मिलकर बहुत खुश हुए. दोनों चचेरे भाइयों की मुलाकात आम तौर पर होती नहीं है. लेकिन जब केदार धाम में इनकी मुलाकात हुई तो अटकलों का दौर तो शुरू होना ही था और ऐसा हुआ भी.


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हम आपको आज बताने जा रहे हैं कि दोनों चचेरे भाइयों में इतनी दूरियां क्यों हैं. इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें 70 और 80 के दशक तक जाना होगा. यह वह दौर था जब गांधी परिवार एक साझा घर में रहता था और दिल्ली के सफदरजंग में प्रधानमंत्री कार्यालय हुआ करता था. राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को हुआ था, जबकि वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को हुआ था.


रिश्तों में तनाव
1980 में संजय गांधी की मौत से पहले तक सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इसके बाद सब बदल गया. मेनका और इंदिरा के बीच मनमुटाव पैदा हो गया. दूरियां इतनी बड़ी कि 28 मार्च 1982 को मीडियाकर्मियों और पुलिस कर्मियों के सामने मेनका, वरुण गांधी के साथ प्रधानमंत्री आवास से निकल गईं.


क्या था मनुटाव की वजह
संजय को इंदिरा गांधी का राजनीतिक वारिस माना जाता था लेकिन उनकी अचानक हुई मौत के बाद राजीव गांधी को राजनीति में आना पड़ा और अब वह राजनीतिक विरासत के हकदार बन गए जो मेनका को रास नहीं आ रहा था.


मेनका और इंदिरा के बीच मनमुटाव उस समय चरम पर पहुंच गया जब बहू ने अपने पति के अनुयायियों के साथ लखनऊ में एक बैठक में भाग लिया और 'जोरदार भाषण' दिया. उस समय इंदिरा गांधी लंदन में थीं. कहा जाता है कि मेनका को इंदिरा यह हिदायत देकर भी गई थी कि बैठक में भाग नहीं लेना है लेकिन मेनका ने उनकी नहीं सुनी. इंदिरा को जब मेनका के कार्यक्रम में जाने का पता चला तो वह आग बबूला हो गईं. सभा में भाषण देने के बाद मेनका वापस दिल्ली के सफदरजंग स्थित घर पहुंची. इसी घर में पूरा परिवार रहता था और यहीं 13 मार्च 1980 को वरुण गांधी का जन्म हुआ था.


इंदिरा ने मेनका से घर से चले जाने को कहा
स्पैनिश लेखक जेवियर मोरो ने अपनी किताब 'द रेड साड़ी' में इस घटनाक्रम के बारे में विस्तार ले लिखा है. 28 मार्च, 1982 की सुबह, इंदिरा और मेनका का आमना-सामना हुआ. मेनका ने इंदिरा से अभिवादन किया. जवाब में इंदिरा ने कहा हम बाद में बात करेंगे. इसके बाद मेनका ने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया.


कुछ समय बाद एक नौकर उसके पास भोजन से भरी एक ट्रे लेकर आया. यह पूछे जाने पर कि वह इसे कमरे में क्यों लाया, उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, 'गांधी (इंदिरा) ने मुझसे यह बताने के लिए कहा कि वह नहीं चाहतीं कि आप दोपहर के भोजन के लिए परिवार के बाकी लोगों के साथ शामिल हों.' एक घंटे बाद वह वापस आया और कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें बुलाया है.


जेवियर मोरो ने लिखते हैं, 'जब वह गलियारे से नीचे जा रही थी तो मेनका के पैर कांप रहे थे. बैठक कक्ष में कोई नहीं था. उन्हें कुछ मिनट इंतजार करना पड़ा, इस दौरान उन्होंने बच्ची की तरह अपने नाखून काटने शुरू कर दिए. अचानक उन्होंने शोर सुना और इंदिरा प्रकट हुईं, वह गुस्से में और नंगे पैर चली आ रही थीं, उनके साथ गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी और सचिव धवन थे.'


मोरो लिखते हैं, 'इंदिरा ने मेनका की ओर उंगली उठाई और चिल्लाकर कहा, 'तुरंत इस घर से बाहर निकल जाओ!, मैंने तुमसे कहा था कि लखनऊ में न जाओ लेकिन तुमने वही किया जो तुम चाहती थीं और तुमने मेरी बात नहीं मानी! तुम्हारे हर एक शब्द में ज़हर था... क्या तुम्हें लगता है कि मैं यह नहीं देख सकती? बाहर निकलो यहां से! अभी यह घर छोड़ दो! अपनी माँ के घर वापस जाओ!' इंदिरा ने मेनका को घर से अपने कपड़ों के सिवा और कुछ भीं नहीं ले जाने देने की हिदायत दी.


इसके बाद मेनका ने अपनी बहन अंबिका को फोन किया था कि प्रेस को सारी बात बताई जा सके. रात 9 बजे तक घर के बाहर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफरों और पत्रकारों का हुजूम खड़ा था. पुलिस बल भी मौजूद था.


'यह भारत के प्रधानमंत्री का घर है
मेनका अपनी बहन अंबिका के साथ जब यह तय कर रही थीं कि आगे क्या करना है तो उसी वक्‍त इंदिरा कमरे में अचानक आ गईं कहा,  'अभी बाहर निकलो!..मैंने तुमसे कहा है कि तुम अपने साथ यहां से कुछ भी नहीं लेकर जाओगी. इस पर अंबिका ने कहा, 'वह नहीं जाएगी! यह उसका घर है!' इंदिरा चिल्लाईं, 'यह उनका घर नहीं है,' उनकी आंखें गुस्से से उभरी हुई थीं. 'यह भारत के प्रधानमंत्री का घर है!'


इसके बाद मेनका और उनकी बहन सामान पैक करने लगी. इंदिरा नहीं चाहती थीं कि मेनका, वरुण को लेकर जाए लेकिन मेनका अपने बेटे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी.


इंदिरा ने अपने मुख्य आधिकारिक सचिव पी.सी. अलेक्जेंडर को बुलाया, जिन्होंने आधी रात में जागने पर सोचा कि कोई अंतरराष्ट्रीय संघर्ष छिड़ गया है. हालांकि , उनकी कानूनी टीम ने इंदिरा गांधी को समझाया कि उनके पोते को उनके पास रखना संभव नहीं हो पाएगा. रात के तकरीबन 11 बजे मेनका अपनी बहन और अपने 2 साल के बेटे वरुण के साथ गाड़ी में बैठकर घर से चली गईं.