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अजमेर: नसीराबाद के पीसांगन उपखंड क्षेत्र में  हर साल की भांति इस साल भी आबाद गुर्जर समाज ने अपने पितृ का श्राद्ध कर्म करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए खीर चूरमे से तर्पण किया. जानकारी के अनुसार, देश प्रदेश का गुर्जर समाज पौराणिक मान्यताओं व परम्पराओं के आधार पर द्वापर युग से ही धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक अपने स्वजनों व पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करता है.


पूर्वजों को खीर चूरमा किया जाता अर्पण 


गुर्जर समाज की मान्यताओं व रिति रिवाजों व परम्पराओं के चलते श्राद्ध कर्म 03 दिन तक चलता है. और पिछली दीपावली से आने वाली दीपावली तक जिस घर परिवार में एक वर्ष की समयावधि में कोई भी स्वजन दिवंगत नही हुआ है. ऐसे परिवारो में दीपावली के दिन परिवार के सभी पुरुष सदस्य अपने पितृों के तर्पण कर्म के लिए गांव आदि में स्थित ताल, तलैया या सरोवर जो भी है के पानी के किनारे के अंदर जाकर पानी में मानव श्रृंखला बनाकर बैल जोतते हुए किनारे पर पितृों की पूजा आराधना कर खीर चूरमे से भोग लगाते है. 


धनतेरस के दिन भी होते हैं श्राद्ध कर्म


परिवार के सभी पुरुष सरोवर किनारे भोजन कर पुनःअपने अपने घरो की और लौटते हुए बर्तनों में भरकर सरोवर का पवित्र जल भी साथ लाते हैं. और इस एक वर्ष की समयावधि में जिस घर परिवार में कोई स्वजन दिवंगत हुआ हो,उस परिवार में श्राद्ध कर्म दीपावली से एक दिन पुर्व रूप चवदस के दिन किया जाता है. लेकिन यदि रूप चौदस मंगलवार या शनिवार के दिन आती है तो मान्यताओं के अनुसार कई जगह धनतेरस के दिन भी श्राद्ध कर्म करने का विधान है.


रविवार को उपखंड क्षेत्र के गुर्जर बाहुल्य नाड,नागेलाव,गढ़ी गुजरान,नुरियावास,प्रतापपुरा, बख्तावरपुरा, करनोस ,पगारा,धुवाड़िया,भड़सुरी,रिछमालिया सहित एक दर्जन से भी अधिक गांवो में गुर्जर समाज ने अपने पितृों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हुए परंपरा की निर्वाह किया. इस परंपरा के निर्वाहन के दौरान गुर्जर समाज का भाट स्थानीय भाषा में अपने यजमानो का यशोगान भी करता है,जिसे स्थानीय भाषा में "उभरात" कहा जाता है. बुधवाड़ा सरपंच जगदीश गुर्जर,करनोस सरपंच प्रतिनिधि मोती गुर्जर, पगारा सरपंच रामदेव गुर्जर, भड़सुरी के पुर्व सरपंच बलदेव गुर्जर,ग्रामीण मुकेश गुर्जर,बख्तावरपुरा निवासी लालाराम बजाड़,रिछमालिया निवासी मनोहर कुंवाड़ा,पगारा के पूर्व सरपंच शिवजी फामड़ा व हरिकिशन खटाणा के मुताबिक इस परंपरा को मनाने व जीवित रखने के पीछे जहां गुर्जर समाज की मान्यताए सर्वोपरि है, साथ ही यह परंपरा आपसी मनमुटाव व मतभेदों को भुलाकर सगे सम्बंधियों व कुटुंब जनों को एक जाजम पर बैठाकर करीब लाने का भी जरिया है.