Rajasthan Election: विधायकों की खान है ये सीट, फिर भी चलना पड़ रहा बाहरियों के खिलाफ अभियान
Lohawat Vidhansabha Seat : जोधपुर संसदीय क्षेत्र में आने वाली लोहावट विधानसभा सीट को विधायकों की खान कहा जाता है. जोधपुर के 40 फीसदी विधायक यहीं से आते हैं, वहीं इस चुनाव में यहां स्थानीय वर्सेस बाहरी को लेकर सियासत तेज होती दिखाई दे रही है. पढ़ें यहां का सियासी इतिहास और समीकरण...
Lohawat Vidhansabha Seat : मारवाड़ में विधायकों की खान कहलाने वाली लोहावट विधानसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है. इस सीट का परिसीमन साल 2008 में ही हुआ है. अब तक यहां से दो बार भाजपा उम्मीदवार और एक बार कांग्रेस के प्रत्याशी की जीत हुई है. हालांकि यहां इस बार बाहरी बनाम स्थानीय की जंग तेज होती दिखाई दे रही है.
खासियत
लोहावट विधानसभा सीट को विधायकों की खान इसलिए कहा जाता है, क्योंकि लोहावट क्षेत्र से आने वाले चार व्यक्ति अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. जोधपुर में कुल 10 विधानसभा क्षेत्र हैं. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि जोधपुर के 40% विधायक लोहावट क्षेत्र ने हीं दिए हैं. इनमें किसानम विश्नोई, मीना कंवर, पब्बाराम विश्नोई और दिव्या मदेरणा जैसे नाम शामिल हैं. वहीं लोहावट विधानसभा क्षेत्र से दो बार जीत दर्ज करने वाले गजेंद्र सिंह खींवसर, वसुंधरा सरकार में मंत्री भी रहे हैं.
इस चुनाव की स्थिति
लोहावट विधानसभा क्षेत्र में इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है. भाजपा में जबरदस्त गुटबाजी का दौर जारी है. लोहावट के पूर्व प्रधान और भाजपा नेता भागीरथ बेनीवाल ने दो बार विधायक रहे गजेंद्र सिंह खींवसर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. स्थिति यह है कि भाजपा नेता भागीरथ बेनीवाल ने भाजपा से ही पूर्व मंत्री रहे खींवसर के खिलाफ 'नहीं सहेगा राजस्थान' अभियान के तर्ज पर 'बाहरी को नहीं सहेगा लोहावट' की आवाज बुलंद कर दी है. लिहाजा ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार सीट पर टिकट को लेकर बड़ा घमासान देखने को मिल सकता है. वहीं इस चुनाव में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी ताल ठोक कर दोनों ही प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है.
लोहावट विधानसभा क्षेत्र का इतिहास पहला
विधानसभा चुनाव 2008
परिसीमन के बाद बने लोहावट विधानसभा क्षेत्र के पहले चुनाव में भाजपा की ओर से इलाके के वरिष्ठ नेता गजेंद्र सिंह खींवसर ने ताल ठोकी तो वहीं कांग्रेस ने महेंद्र सिंह भाटी को चुनावी मैदान में उतारा जबकि निर्दलीय के तौर पर मालाराम विश्नोई चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार महेंद्र सिंह भाटी के पक्ष में 17,964 वोट पड़े तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार माला राम विश्नोई के पक्ष में 31 फ़ीसदी मतदाताओं ने 36,742 वोट डालें जबकि भाजपा की ओर से ताल ठोक रहे गजेंद्र सिंह खींवसर को 38% वोट मिले और गजेंद्र सिंह खींवसर ने 7695 मतों के अंतर से जीत हासिल की.
दूसरा विधानसभा चुनाव 2013
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से एक बार फिर गजेंद्र सिंह खींवसर ही चुनावी मैदान में उतरे जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर मालाराम विश्नोई पर दांव खेला. हालांकि कांग्रेस का दांव विफल रहा और उनके पक्ष में 63,273 वोट पड़े तो वहीं 55% वोटों के साथ भाजपा उम्मीदवार गजेंद्र सिंह खींवसर को 83,087 वोट पड़े. इस चुनाव में एक बार फिर गजेंद्र सिंह खींवसर की जीत हुई.
तीसरा विधानसभा चुनाव 2018
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदलते हुए किसानम विश्नोई को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं भाजपा ने एक बार फिर गजेंद्र सिंह खींवसर पर ही विश्वास जताया और उन्हें टिकट दिया. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार माघ राम मेघवाल ने भी चुनौती दी. माघ राम मेघवाल के पक्ष में सिर्फ 5,206 उम्मीदवारों ने वोट किया. इसके साथ ही उनकी जमानत भी जप्त हो गई. जबकि गजेंद्र सिंह खींवसर के पक्ष में 35% वोट आए और उसके साथ ही उन्हें 65,200 मतदाताओं ने समर्थन दिया. लेकिन इसके बावजूद गजेंद्र सिंह खींवसर बड़े मार्जिन से चुनाव हार गए और इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार किसानम विश्नोई की जीत हुई. किसानम विश्नोई को 10,6084 वोट मिले और उनका वोट प्रतिशत 58% रहा और इसके साथ ही 40,876 वोटों के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार पहली बार इस विधानसभा सीट से विधायक बने.
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