Rajasthan News: राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है, जहां भक्त मां को चिट्ठियों में अपनी मन्नत लिखकर चढ़ाते हैं. भक्त ये चिट्ठियां मंदिर के दान-पात्र में डालते है और जब दानपात्र खुलता है तो दानपात्र से बड़ी संख्या में चिठ्ठियां निकलती है. यह अनूठा मंदिर है बांसवाड़ा के पुराने शहर स्थित महालक्ष्मी चौक में. यहां हर दिन कई लोग इसी तरह से अपनी मन्नत चिट्ठी में लिखकर आते हैं और इसके बाद उसे मां लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे चढ़ा देते हैं. इन पर्चियों में हर व्यक्ति की अपनी पीड़ा और मन्नत लिखी होती है, जब इन चिट्ठियों को देखा तो किसी ने अपनी बेटी-दामाद के लिए सुख-शांति मांगी थी तो किसी ने सरकारी नौकरी. किसी ने मन्नत मांगी- 2024 के अंत तक वे अपने पति और सास-ससुर के साथ रहने लग जाए. 


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482 साल पुराना है मंदिर 
बांसवाड़ा शहर में प्रसिद्ध महालक्ष्मी मंदिर करीब 482 साल पुराना है. मान्यता है कि चिट्ठी लिखकर मां लक्ष्मी से मन की बात कही जाए तो मां हर मन्नत पूरी करती हैं. इसी कारण यहां देशभर से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करवाने के लिए चिट्ठियां चढ़ाते हैं. यहां तक की माता के दर्शन करने आने वाले दान पेटी में भी चिट्ठी डालकर जाते हैं. मंदिर अध्यक्ष नरेश श्रीमाल ने बताया कि महालक्ष्मी मंदिर में आए श्रद्धालुओं की चिट्ठी रख ली जाती हैं. श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर मां का जन्म दिवस मनाया जाता है. इसी दिन या बसंत पंचमी पर माता के सामने श्रद्धालुओं की चिट्ठी खोली जाती हैं. यहां चिट्ठियां केवल दो से तीन साल ही एकत्रित रखी जाती हैं. फिर इन्हें विसर्जित कर दिया जाता है.


कैसी-कैसी मन्नतें? 
मां आपके चरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम. आप मेरे परिवार और मेरी बेटी के ऊपर कृपा बरसाए रखना. मां मेरी विनती है कि मेरी बेटी के घर नल का कनेक्शन कर देना. साल भर से वह बहुत परेशान है. उसके घर सब अच्छा हो..मां मेरी विनती है. 


हे लक्ष्मी मैय्या
मुझसे भूलवश कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना. आप अपने बच्चों की सभी मनोकामना पूरी करती हो. मेरी भी इच्छा है कि 2024 तक मुझे संतान की प्राप्ति हो जाए. मैं अपने पति, सास-ससुर के साथ रहूं और मेरा घर बन जाए. 


श्री महालक्ष्मी नम:
मेरी बेटी के घर में शांति देना व उसके घर में पैसे की कमी मत रखना. पैसों का भंडार भरकर रखना. मेरी बेटी के घर में सब कुछ अच्छा रखना.


शादी, सरकारी नौकरी समेत तमाम मन्नतें होती हैं चिट्‌ठी में
कोई अपने विवाह तो कोई सरकारी नौकरी की मन्नत मांगकर चिट्‌ठी लिखता है. घर में शांति, संतान प्राप्ति के लिए भी मंदिर में अर्जी दी जाती है. भक्त अपने और रिश्तेदारों के घर में भी सुख-शांति की कामना करने के लिए यहां अर्जी लगाते हैं.


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12 साल से चली आ रही परंपरा
सचिव निखिलेश श्रीमाल ने बताया कि उनके समाज की लड़की विभा श्रीमाल 3 बार RAS का इम्तिहान दे चुकी थी. हर बार कुछ नंबर से सिलेक्ट नहीं हो पाती थी. 2012 में जब उसने फाइट किया, तब उसने यहां मंदिर में चिट्ठी लिखकर मनोकामना मांगी थी. उसका उसी साल सिलेक्शन हो गया. 


वर्तमान में वो उदयपुर में वाणिज्य कर विभाग में कमिश्नर के पद पर कार्यरत है. इस बात का पता जब धीरे-धीरे लोगों को लगा तो उन्होंने भी फिर चिट्ठियां लिखनी शुरू कर दी. आज 12 सालों से यह परंपरा बन गई है. हर साल 500 से अधिक चिट्ठियां प्राप्त होती हैं. अधिकांश चिट्ठियां बिना नाम की होती हैं और मनोकामना पूरी होने पर लोग कुछ न कुछ चढ़ावा चढ़ा कर जाते हैं. 


16 दल के कमल पर विराजित हैं मां लक्ष्मी 
मंदिर में स्थापित प्रतिमा सफेद मार्बल से बनी है. यह ऊंचाई में साढ़े तीन फीट की है. प्रतिमा में मां लक्ष्मी 16 दल के कमल के आसन पर बैठे हुए रूप में विराजित है. पंडितों का कहना है कि बैठी हुई लक्ष्मीजी की पूजा करने से माता सदैव आपके घर में विराजित रहती हैं. ऐसी प्रतिमा देशभर में संभवत: नहीं है और यही कारण है कि माता की आराधना के लिए अन्य जिलों से भी भक्त यहां पहुंचते हैं.


सोना-चांदी से होता है मां लक्ष्मी का श्रृंगार
दिवाली पर महालक्ष्मी जी की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाता है. इसके तहत पहले साढ़े पांच किलो चांदी के वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है. इसके अलावा सोने की हार, अंगूठी, नथ भी पहनाई जाती है. विशेष बात यह है कि मंदिर में कोई गार्ड भी नहीं रखा गया है. पुजारियों का मानना है कि मां के पास उनके भक्त कभी भी अर्जी लगा सकते हैं. मां उनकी इच्छाओं की पूर्ति भी करती हैं. मंदिर में दिवाली पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है, जो अपनी मनोकामनाओं को चिट्ठी के रूप में मां से कहते हैं.