बारां जिला अस्पताल में एक वार्मर पर भर्ती हैं दो नवजात, जन्म लेते ही संक्रमण का खतरा
Baran News: बारां के शहीद राजमल मीणा जिला अस्पताल में एसएनसीयू वार्ड में एक वार्मर पर 2 नवजात भर्ती हैं, जिससे नवजात बच्चों में संक्रमण का खतरा भी बना हुआ है.
Baran News, बारां: राजस्थान के बारां शहर स्थित जिले के सबसे बड़े अस्पताल शहीद राजमल मीणा जिला अस्पताल में प्री-मेच्योर नवजात बच्चों के उपचार के लिए बनाए गए एसएनसीयू वार्ड में वार्मर खराब पड़े हुए है. वार्ड में हालात यह है कि एक वार्मर पर 2 बच्चों को भर्ती करना पड़ रहा है, जिससे नवजात बच्चों में संक्रमण का खतरा भी बना हुआ है.
बारां जिला अस्पताल में जिलेभर के साथ ही मध्यप्रदेश से भी बड़ी संख्या में प्रसूताएं पंहुचती है. इनमें प्री-मेच्योर बच्चों को जन्म देने के बाद एसएनसीयू वार्ड में नवजात को भर्ती कर इलाज किया जाता है, लेकिन वर्तमान में एसएनसीयू वार्ड में लगे हुए वार्मरों में से आधे से ज्यादा खराब हो चुके हैं.
जिला अस्पताल की एमसीएच विंग के एसएनसीयू वार्ड में 27 वार्मर लगाए हुए है, लेकिन इनमें से 15 वार्मर खराब हो रहे हैं. इस वार्ड में लगे हुए 27 में 7 वार्मर तो पूरी तरह खराब हो चुके हैं, बाकी के 8 वार्मर को कई बार सही करवाया जा चुका है, लेकिन यह 1-2 दिन बाद ही खराब हो रहे हैं.
वर्तमान में एसएनसीयू वार्ड में दो दर्जन से अधिक नवजात बच्चों को भर्ती कर उपचार किया जा रहा है. वहीं जो वार्मर सही करवाए जाते है उनमें 1-2 दिन बाद ही तापमान को मेंटेंन नहीं करने की शिकायत आ जाती है. इसके कारण नवजात बच्चों को दूसरे वार्मर पर शिफ्ट करना पड़ता है. एसएनसीयू एक वार्मर मशीन में मानक के अधिक शिशु रखे जा रहे हैं. इसकी वजह से नवजातों के इलाज में काफी दिक्कतें आ रही हैं. ऐसे में गंभीर रूप से बीमार नवजातों को निजी अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ रहा है.
जिला महिला अस्पताल के एसएनसीयू यूनिट में 27 वार्मर उपकरण मशीन लगाई गई थी. इनमें से 15 वार्मर 6 महीने से खराब चल रहे हैं. इस बीच खराब उपकरणों का मरम्मत कार्य भी कराया गया, लेकिन चंद दिनों के बाद ही उपकरण वापस अपनी पहली की स्थिति में आ गए. बार-बार मरम्मत कराने के बाद भी उपकरण छह माह बाद भी सही हालत में नहीं आए, जिससे एक वार्मर में मानक से अधिक नवजातों को रखना अस्पताल प्रशासन की मजबूरी बन गई. एक साथ अधिक बच्चों को वार्मर में रखने से उस तरह के परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जबकि मानक के अनुरूप रखने से होगी. ऐसे में नवजातों का उपचार प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है.
चिकित्सको के अनुसार शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात से लेकर एक माह तक के बच्चों के लिए वरदान साबित होता है. समय से पहले जन्मे, कम वजन, पीलिया आदि बीमारियों से ग्रसित नवजात शिशुओं का उपचार एसएनसीयू यूनिट में किया जाता है. एसएनसीयू एक प्रकार का आईसीयू ही है, जहां समय से पहल जन्मे बच्चों के इलाज की सुविधा होती है. ऐसे बच्चे जिनका वजन जन्म के समय 2 किलो से कम रहता है, प्री मैच्योर बच्चे को बेबी वार्मर मशीन में रखा जाता है, लेकिन इन दिनों एसएनसीयू वार्ड में क्षमता से अधिक नवजात बच्चे भर्ती हैं. जिसे संभालने प्रबंधन की ओर से एक बेड(वार्मर) पर एक साथ दो या तीन नवजात बच्चों को लिटाकर इलाज देना पड़ा रहा है.
जिला चिकित्सालय प्रभारी डा. सतीश अग्रवाल का कहना है कि एमसीएस अस्पताल में 12 बेड की स्वीकृत है, लेकिन 27 लगा रखें हैं, जिसमें से कुछ खराब है, अभी 12 वार्मर चालू है, जो खराब है उनको सही करने के प्रयास किए जा रहें हैं. कई वार्मर में दो बच्चे रखने पड़ते हैं.
Reporter- Ram Mehta