जयपुर: राजस्थान विधानसभा ने गुर्जर समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पांच फीसदी आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित कर दिया है, लेकिन समुदाय के नेताओं में इस बात को लेकर संशय है कि इसे कानूनी अमलीजामा पहनाया जा सकेगा क्योंकि इससे पहले दो बार 2009 और 2015 में इसी तरह आरक्षण की मंजूरी को निरस्त कर दिया गया था. 


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राजस्थान उच्च न्यायालय ने दोनों बार कहा कि पांच फीसदी आरक्षण प्रदान किए जाने से राज्य में आरक्षण का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो गया है. वहीं, 2010 में एक फीसदी आरक्षण प्रदान किए जाने वाले विधेयक को भी इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि बगैर उचित सर्वेक्षण किए विषय को पेश किया गया. विशेषज्ञ बताते हैं कि पांच फीसदी आरक्षण के वास्ते आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी. 


आरक्षण के संबंध में 2017 में एक विधेयक पेश किए जाने के बाद समुदाय को इस समय शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में एक फीसदी आरक्षण का लाभ मिल रहा है. इसे बढ़ाकर पांच फीसदी करने की मांग करते हुए गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति ने आठ फरवरी को अपना आंदोलन दोबारा शुरू किया और प्रदेश के अनेक हिस्सों में रेल व सड़क मार्ग को बाधित किया. इस आंदोलन से प्रदेश में परिवहन ठप पड़ गया था. 


प्रदेश की विधानसभा ने बुधवार को गुर्जरों को पांच फीसदी आरक्षण प्रदान करने वाले विधेयक को पारित कर दिया. राज्यपाल कल्याण सिंह ने उसी दिन विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए. गुर्जरों ने हालांकि आंदोलन वापस लेने से मना कर दिया जो कि गुरुवार को सातवें दिन जारी रहा. 


गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संरक्षक कर्नल किरोरी सिंह बैंसला ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'हमने विधि विशेषज्ञों को विधेयक दिखाया है और विधेयक का अध्ययन करने के बाद हमारा समुदाय इससे असंतुष्ट है. यह फिर अदालत में रुक सकता है. इसलिए सरकार को हमें आरक्षण प्रदान करने का आश्वासन देते हुए यह लिखित में देना चाहिए'.


उन्होंने कहा, 'हम लोगों की असुविधा से अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार हमारे लोगों को होने वाली असुविधा से अवगत नहीं है'.


(इनपुट-आईएएनएस)