World Mental health day आखिर क्यों नहीं छोड़ती भयानक यादें हमारा पीछा? जानिए वैज्ञानिकों की इस खोज से
World Mental health day: अक्सर हमारे माइंड में चल रही बुरी यादे हमारा पीछा जल्दी नहीं छोड़ती. अगर हम उन्हें भुलाना भी चाहे तो वह हमें किसी न किसी तरह हम पर हावी होने लगती है. इसलिए कभी कभी हम झल्लाहट के साथ कह भी देते क्यों बार बार याद आने लगती है ये डरावनी बातें.
World Mental health day: अक्सर हमारे माइंड में चल रही बुरी यादे हमारा पीछा जल्दी नहीं छोड़ती. अगर हम उन्हें भुलाना भी चाहे तो वह हमें किसी न किसी तरह हम पर हावी होने लगती है. इसलिए कभी कभी हम झल्लाहट के साथ कह भी देते क्यों बार बार याद आने लगती है ये डरावनी बातें. हमारे जहन से निकलती क्यूं नहीं. क्यों हम लगातार इसकी पकड़ में घिरे चले जाते है. लेकिन अगर आप आपनी बुरी यादों से पीछा छुड़ाना चाहते है तो यह काम आपके लिए वैज्ञानिकों ने आसान कर दिया है. उन्होंने इन यादों के लगातार पीछा करने की वजह को ही खोज निकाला है.
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कैसे किया गया शोध
Tulane University School of Science and Engineering and Tufts University School of Medicine ने अपने शोध में पाया कि हिप्पोकैम्पस यानी (ब्रेन का वह पार्ट, जो लॉन्ग टर्म मेमोरी और शॉर्ट टर्म मेमोरी को एक साथ कंसोलिडेट करता है) एक विशेष संदर्भ में प्रतिक्रिया करता है और इसे एन्कोड करता है. वहीं एमिग्डाला भय प्रतिक्रियाओं सहित अक्रमाक व्यवहार को पुश करता है. बता दें कि डर की स्मृति हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला के बीच संबंधों को मजबूत करके बनाई जाती है. सहानुभूति तंत्रिका तंत्र में एड्रेनालाईन की तरह तनाव हार्मोन रिलीज करने के लिए संकेत भेजे जाते हैं. इससे मनुष्य के मन में तनाव पैदा होता है. और वह अजीबोगरीब चीजे करने गते है.
किसी डरावने अनुभव पर कैसे काम करता है दिमाग
वैज्ञानिकों ने इसके अलावा यह भी पता लगाया कि जब मस्तिष्क हाइपोथैलेमस, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र और अधिवृक्क-कॉर्टिकल सिस्टम को रसायनों की एक श्रृंखला जारी करके प्रतिक्रिया देता है तब मन में डर की स्थिति उत्पन्न होती है. हमारे शरीर में आपातकालीन कंट्रोल सेंटर होता है- अमयगडाला (बादाम के आकार का, जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है). अचानक किसी डरावने अनुभव पर हमारा सर्वाइवल सिस्टम हरकत में आता है.
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डरावने अनुभवों की यादें लंबी
Tulane cell और molecular biology के प्रोफेसर जेफरी टास्कर एक डकैती के उदाहरण का जिक्र करते हुए बताते हैं, "यदि आपको बंदूक की नोक पर रख दिया जाए, तो आपके दिमाग में तनाव न्यूरोट्रांसमीटर नॉरपेनेफ्रिन का एक बंच रिलीज होगा. और ये आपके दिमाग में इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज पैटर्न को बदलकर दिमाग के इमोशनल हिस्से में रिलीज करेगा.
आसान भाषा में कहें तो जिस तरह हर व्यक्ति में भावनाओं का स्तर अलग अलग होता है, वैसा ही डर के मामले में भी होता है. डर पैदा कर मस्तिष्क ये चेतावनी देता है कि इस जगह खतरा है, जान बचाने के लिए यहां से दूर जाना चाहिए. हालांकि जरूरी नहीं है कि डरावने अनुभवों की लंबी याद होती है. पर अब यह आप भर निर्भर है कि आप इनसे कैसे निपटेंगे?