Bundi: बूंदी के लाखेरी उपखंड का पाली एक ऐसा प्रचीन विरासत वाला गांव है, जिसकी पहचान प्रदेश में एकमुखी शिवलिंग की मौजूदगी के साथ यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए होती है. चंबल व मेज नदी के संगम पर बसा यह गांव तीन बार उजाडा और तीन बार बसा. पाली गांव में आज भी प्राचीन बस्तियों के निशान और प्रमाण खुदाई के दौरान मिलते रहते हैं. इतनी बडी पहचान के बावजुद पाली गांव आजादी से लेकर अब तक एक अदद पक्की सडक के लिए तरस रहा है.


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गांव में बनी तीन किमी की यह कच्ची सड़क ग्रामीणों के लिए बरसात में अभिशाप बन जाती है. बरसात में कच्ची सड़क कीचड़ में बदल जाती है, ऐसे में वाहन तो क्या पैदल निकलने में भी ग्रामीणों को मशक्कत करनी पडती है. बरसात में ग्रामीण या तो गांव से पलायन कर जाते है या फिर चंबल व मेज नदी के पानी के पहरे में दिन काटते रहते हैं. यह परेशानी पिछले कई वर्षों से चली आ रही है, अब तक गांव मे कई अधिकारी व नेता आए पर कोई भी ठोस रूप से इस समस्या का समाधान नहीं कर पाए. अब ग्रामीणों को अधिकारियों व नेताओं के आश्वासनों भरोसा नहीं रहा. ग्रामीणों का कहना है कि चुनावों के दौरान नेता आते हैं और वादे करके चले जाते हैं, लेकिन सडक की मांग को लेकर अब ग्रामीण लामबद हो रहें हैं और आन्दोलन की राह पर है. 


बजट ठिकाने लगाने का जरिया बनी सड़क


बसवाडा पंचायत से जोडने वाली पाली गांव की तीन किमी सडक भी ग्रेवल बनाने व और मिट्टी डालकर बजट ठिकाने लगाने का जरिया बन गयी है. हर साल इस कच्ची सड़क पर मिट्टी डालकर बजट पूरा कर लिया जाता है. वहीं पंचायत स्तर पर आने वाले बजट को ग्रेवल सड़क बनाने के नाम भेंट चढ़ा दिया जाता है. इस काम में लाखों रूपय का बजट हर साल नदियों की बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है.



मतदान का किया बहिष्कार 


ग्रामीणों दो साल पहले पंचायत चुनावों के समय ग्रामीणों ने सड़क को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था, तब अधिकारी चिकनी चुपडी बातें कर ग्रामीणों को मनाने लगे थे और बडी मशक्कत के बाद जिला व उपखड लेवल के अधिकारियों ने ग्रामीणों को मतदान के लिए इस शर्त पर राजी किया कि, दो महीने में सड़क बन जाएगी. मतदान प्रक्रिया खत्म होते ही अफसर अपना वादा ऐसे भूले कि बीते दो सालों में सड़क पहले से बदतर हालत में पहुंच गयी. इससे पहले भी ग्रामीण चार बार सड़क की मांग को उठा चुके हैं.


यह है फैक्ट फाइल


लाखेरी उपखड से 17 व जिला मुखयालय से 70 किमी दूर चंबल किनारे स्थित पाली गांव बसवाडा पंचायत के अधीन आता है. 106 परिवारों वाले इस गांव की पहचान एक हजार साल से भी पुरानी है. कहा जाता है कि यह गांव तीन बार उजड़ कर फिर बसा. आज भी खुदाई में प्राचीन बस्तियों के अवशेष यहां मिलते हैं, खुदाई में प्राचीन प्रतिमाओं के साथ अन्य प्रमाण मिलते हैं. पिछले कुछ सालों में सबसे अहम पहचान तब मिली जब यहां दो एकमुखी शिवलिंग की दुर्लभता सामने आई. बूंदी के पुराअन्वेषक ओमप्रकाश कुकी ने जब यह खोज की तो पुरातत्व विभाग भी चौंक गया. जानकार ऐसा मानते है कि ऐसे दुर्लभ शिवलिंग प्रदेश मे कुछ ही स्थानों पर हैं, इन शिवलिंग के बारे मे अध्ययन करने के लिए पुरातत्व से जुडे कई शोधार्थ पाली गांव आते रहते हैं.


Reporter - Sandeep Vyas


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