Chittorgarh: मध्यप्रदेश और राजस्थान में लगातार बरसात का दौर जारी है. एमपी के गांधी सागर बांध और चंबल की सहायक नदियों से राणा प्रताप सागर बांध में साढ़े 4 लाख क्यूसेक पानी आ रहा है. जिससे राणा प्रताप सागर बांध के 17 में से 16 गेट पिछले 24 घंटों से खुले है.


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साल 2019 के बाद एक बार फिर चंबल नदी में पानी का जमकर सैलाब आया है. जिसके चलते मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गांधी सागर बांध से लेकर कोटा जिले के बैराज बांध तक पानी दरिया बन कर बह रहा है. सबसे बुरे हालात कोटा में है, जहां कई निचली बस्तियों में पानी भरने के बाद सैकड़ों लोगों को घर खाली करने पड़ सकता है.


वहीं गांधी सागर और राणा प्रताप सागर बांध भी अपनी पूरे भराव क्षमता के पास है. जिसमें गांधी सागर बांध के सभी 19 गेट खोल कर पानी छोड़ा जा रहा है तो रावतभाटा के राणाप्रताप सागर बांध के 17 में से 16 गेटों से लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है. गांधी सागर बांध की भराव क्षमता 1312 फीट है, और बांध अपनी भराव क्षमता के आसपास बना हुआ है. पिछले तीन दिनों से बांध के 19 गेट खोल कर लगातार 4 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है.


इसके बावजूद गांधी सागर बांध में पानी की भारी अवाक हो रही है. बुधवार सुबह तो हालात और भी बुरे हो गए थे जब साढ़े 9 लाख क्यूसेक पानी की भारी आवक के बाद बांध मात्र ढाई घंटे में ही बांध दो फीट भर गया और बांध का जल स्तर 1308 फीट के ऊपर चला गया. जिससे बांध के ओवर फ्लो होने की आशंका के चलते अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए. शाम होते-होते गांधी सागर बांध में पानी की आवक घट कर साढ़े पांच लाख क्यूसेक हुई. तब कहीं जाकर अधिकारियों की जान में जान आई. वहीं राणा प्रताप सागर बांध से भारी तादात में पानी छोड़े जाने से प्रशासन अलर्ट मोड़ में है, और संभावित डूब क्षेत्र में लगातार नजर रखी जा रही है.


गौरतलब है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान की संयुक्त चंबल जल परियोजना में गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध का पानी लाखों लोगों की प्यास बुझाता है. वहीं इन बांधों का पानी बड़े क्षेत्रफल में सिंचाई के काम आता है. रावतभाटा में स्थित राणाप्रताप सागर बांध से कई जिलों के लाखों लोगों की प्यास बुझती है तो वहीं परमाणु बिजलीघर परियोजनाओं, भारी पानी संयंत्र और एफसी में बांध का पानी काम में लिया जाता है. पहला बांध मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गांधीसागर बांध है, जिसके डाउनस्ट्रीम में बाकी के तीनों बांध पड़ते है. ऐसे में गांधी सागर की महत्ता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.


टूटने की कगार पर बांध 


गौरतलब है कि साल 2006 और साल 2019 में ऐसा दो बार हुआ जब गांधी सागर बांध में साढ़े 16 लाख क्यूसेक पानी की आवक होने पर बांध टूटने की कगार पर आ गया था. जनवरी महीने में कैग यानी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में बांध के टूटने या शिखर से पानी बहने से विनाशकारी परिणाम होने की बात सामने आई थी.


अगर गांधी सागर बांध टूटता है तो इसके डाउनस्ट्रीम में स्थित बाकी बांधों का टूटना भी तय है. जिसके बाद दो राज्यों की बड़ी आबादी का सब कुछ बर्बाद हो जाएगा. इसमें मध्यप्रदेश के श्योपुर, भींड, मुरैना के साथ-साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा, कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली और धौलपुर सहित सात जिलों में भयंकर तबाही मच सकती है. जिससे करीब 40 लाख की आबादी का सब कुछ बर्बाद हो सकता है.


परमाणु बिजली घर पर बड़ा खतरा


वहीं इससे बांध के डाउनस्ट्रीम में रावतभाटा में स्थित परमाणु बिजली पर भी बड़ा खतरा हो सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक गांधी सागर बांध की मरम्मत और सुरक्षा को लेकर बांध सुरक्षा निरीक्षण पैनल और केंद्रीय जल आयोग की सिफारिशें भी पिछले 12 सालों से मध्य प्रदेश, राजस्थान और भारत सरकार के विभागों में धूल खा रही है. वहीं बांधों के जीर्णोद्धार के लिए तीन साल पहले स्वीकृत केंद्रीय जल आयोग की ड्रीप योजना में अब तक काम शुरू नहीं हो सका और केवल जांच, निरीक्षण और सर्वे के नाम पर फाइलें ही दौड़ाई जा रही है.


इधर आधी शताब्दी पार कर चुके राणा प्रताप सागर और गांधी सागर बांध बूढ़े हो चुके है, जो वर्तमान में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे है. वहीं दूसरी ओर जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के बांधों में पानी की आवक और निकासी के बीच पर्याप्त समय का अंतराल रखने के आंकड़े भी कहीं ना कही फेल हो रहे हैं. जिससे बांध की सुरक्षा ख़तरे में पड़ने से लाखों लोगों की जिंदगियां बार-बार दाव पर लग जाती है.


Reporter: Deepak Vyas


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