Contraceptive Pills Story: महिलाओं और प्रेग्नेंसी का एक अलग ही जुड़ाव होता है. वहीं, कुछ महिलाएं अनचाही प्रेग्नेंसी से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का भी प्रयोग करती हैं. इन गोलियों में सबसे ज्यादा आजकल महिलाएं कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स खा रही हैं. ये कई तरह की आती हैं और इन्हें लेने की भी प्रक्रिया अलग-अलग होती है. बता दें कि कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स को लगभग दुनिया की 3 करोड़ महिलाएं आजकल इस्तेमाल कर रही हैं. यह एक सफेद रंग की छोटी सी गोली होती है.


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कहते हैं कि इस छोटी सी गोली ने न केवल भारत की बल्कि दुनिया के कई और देशों की भी तस्वीर ही बदल डाली लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाओं तक आखिर कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स पहुंची तो कैसे? आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस महिला ने कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स बनाई थी, उसे इसके लिए जेल भी जाना पड़ा था. आज हम आपको इस गर्भनिरोधक गोली कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स के फायदे और नुकसान दोनों ही बताते हैं.


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बात 1960 की है, जब अमेरिका के फूड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने दुनिया की पहली बर्थ कंट्रोल पिल को मंजूरी दी थी. इस दवा का नाम इनोविड 10 था. यह करीब 40 रुपये की थी और आते ही दवाइयों की दुनिया में छा गई थी. इसके बाद जल्द ही लोग इसे 'द पfल' के नाम से जानने लगे थे. कहते हैं कि इस दवा को बनाने के पीछे करीब 50 साल की मेहनत लगी थी. यह मेहनत की थी बर्थ कंट्रोल एक्टिविस्ट मार्गरेट सेंगर ने. 


किसने बनाई थी दवा
इस दवा को मार्गरेट सेंगर के दिमाग की उपज माना जाता है. मार्गरेट सेंगर एक नर्स थी और साल 1916 में अमेरिका में पहला बर्थ कंट्रोल क्लीनिक शुरू किया था हालांकि यह वह समय था, जब अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में बस कंट्रोल या फिर गर्भपात को अपराध माना जाता था. कहते हैं कि यही वजह रही, जिसकी चलते क्लीनिक केवल 10 दिन चल पाया था. क्लीनिक के बंद होते ही सेंगर ने एक किताब लिख डाली. फैमिली लिमिटेशन किताब का नाम था. इसके बाद इस किताब को बैन कर दिया गया. फिर नर्स मार्गरेट सेंगर को 30 दिनों के लिए जेल में भी डाल दिया गया था.


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जेल से बाहर निकलने के बाद सेंगर ने अमेरिका को छोड़कर ब्रिटेन की पनाह ली लेकिन यहां पर भी उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं. हैरानी की बात तो यह है कि 'द पिल' के बाजार में आने के करीब चार-पांच साल बाद अमेरिका की हर चौथी शादीशुदा महिला इस दवा का इस्तेमाल करने लगी. डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में दुनिया भर की करीब एक करोड़ महिलाओं ने  'द पिल' दवा का इस्तेमाल किया. वहीं, डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि साल 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर सात करोड़ के करीब पहुंच सकता है.


चीन में सबसे ज्यादा इस्तेमाल
बता दें कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा यह दवा चीन में इस्तेमाल की जाती है. यहां पर वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की गई है लेकिन इन पिल्स के ज्यादा इस्तेमाल से महिलाओं को क्या-क्या परेशानियां होती हैं, इसके बारे में हम आपको बताते हैं. जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों की दवा का ज्यादा इस्तेमाल करती है, उन्हें सिर दर्द, चक्कर आना, तेजी से मोटापा बढ़ना, माइग्रेन, कैंसर और कम उम्र में ही दिल का दौरा पड़ने जैसी बीमारियों से जूझना पड़ रहा है.



एक शोध के अनुसार, यूरोप में हर साल 10 लाख से ज्यादा महिलाओं को वजन बढ़ना, एंग्जाइटी, तनाव का कारण कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स मानी जा रही हैं. इन्हीं सारी समस्याओं को ध्यान रखते हुए भारत में साल 1991 में एक खास इन्वेंशन की गई थी. इसके चलते भारत में ही सहेली नाम की कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स बनाई गई थी. यह दुनिया की पहली ऐसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स थी, जिसमें किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं था. साल 1990 में भारत में करीब 13% महिलाओं ने सहेली दवा का इस्तेमाल किया था, वहीं, यह आंकड़ा 2009 में 48 परसेंट हो गया था.