बलूचिस्तान पाकिस्तान में नहीं गया, फिर जिन्ना ने इसे कैसे हड़पा, पूर कहानी जानिए
History of 11 august 1947: उस दिन सोमवार का दिन था. सुबह के करीब 10 बज रहें थे. पाकिस्तान की संविधान में अध्यक्ष पद की कुर्सी पर जोगेंद्रनाथ मंडल बैठे हुए थे. उन्होंने कहा कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया जाए. सभा की पहली कार्यवाही में सदन अध्यक्ष का चुनाव होना था.
History of 11 august 1947: उस दिन सोमवार का दिन था. सुबह के करीब 10 बज रहें थे. पाकिस्तान की संविधान में अध्यक्ष पद की कुर्सी पर जोगेंद्रनाथ मंडल बैठे हुए थे. उन्होंने कहा कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया जाए. सभा की पहली कार्यवाही में सदन अध्यक्ष का चुनाव होना था. गयासुद्दीन पठान, अब्दुल कासिम खान, लियाकत अली खान, ख्वाजा नज़ीमुद्दीन, एमके खुहरो, हमीदुल हक चौधरी, शब्बीर अहमद उस्मानी ने क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर प्रस्ताव दिया था, और विरोध में किसी के प्रस्ताव नहीं आया. जिन्ना पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति चुन लिए गए थे. जिन्ना को 1 दिन पहले ही महान नेता की उपाधि मिली थी.
लियाकत अली समेत अन्य सदस्यों ने जिन्ना के सम्मान में कुछ बातें कहीं. जिन्ना को अब बोलने के लिए कहा गया. दरअसल जिन्ना का राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहला भाषण था. लाहौर, कराची, बलूचिस्तान, और पंजाब के कई हिस्से ढाका समेत बंगाल के दूसरे इलाके में दंगे की आग में जल रहा था. लाखों लोग बेघर हो चुके थे. हिंदुओं-मुसलमानों के बीच ऐसे हो चुके थे, की जैसे सदियों से खून के प्यासे हो. दंगों में सब कुछ अपना लुटा चुके लोग जिन्ना के भाषण पर कान टिकाए हुए थे, और अब आकाशवाणी और बीबीसी आकाशवाणी पर प्रसारण शुरू हो चुका थे.
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जिन्ना ने बोला धर्म की आजादी मिलेगी
जिन्ना ने बोलना शुरू किया, कहा हमारी सरकार पारदर्शी होगी. धर्म की आजादी मिलेगी, समानता और कानून के आधार पर हम काम करेंगे. इतना बोलते ही शिविर में तालियों से गूंज उठी, और अपना सब कुछ लुटा चुके विस्थापितों का गला भर आया था. किसी के मुंह से कुछ बोल नहीं निकले, सिर्फ आंसू बहते रहे थे, और सिसकियों के बीच रेडियो पर कान लगाए रहे. जिन्ना ने कहा कि कानून-व्यवस्था हमारी प्राथमिकता है. लोगों की संपत्तियां, जीवन और धार्मिक आस्था की हर कीमत पर रक्षा होगी.
हिंदू-मुस्लिम का फर्क खत्म
रेडियो पर महान नेता आजम की आवाज गूंज रही थी. जिन्ना ने बोला समय के साथ ही हिंदू-मुस्लिम का फर्क खत्म हो जाईगी. हिन्दुओं में आप खत्री, ब्राह्मण, मद्रासी और बंगाली हैं. मुसलमान की हैसियत से आप पंजाबी, पठान, शिया या सुन्नी हैं. अगर ये समस्या नहीं होती तो भारत काफी पहले आजाद हो जाता और कहा पाकिस्तान में आप अपने मंदिर जाने के लिए आजाद होंगे. यहां गुरुद्वारे, मस्जिद, जाने के लिए स्वतंत्र होंगे. अभी जिन्ना की छवि गांधी की तरह हिंदू-मुस्लिम एकता के दूत वाली थी. ऐसे में भाषण पर हर दंगा पीड़ित अपने अभिभावक के आश्वासन की तरह यकीन कर रहा थे. परन्तु किसी को क्या खबर थी यह यकीन कुछ घंटों के लिए ही है.
क्वेटा बलूचिस्तान का प्रमुख शहर है. लोग तो वैसे 1935 में इसे भूकंप से हुई तबाही के लिए याद करते हैं, पर यह शहर एक और इतिहास का गवाह रहा की बलूचिस्तान की आजादी पर आज ही के दिन इसी शहर में फैसला हुआ था. 4 अगस्त को दिल्ली में खान ऑफ कलात मीर अहमद खान, माउंटबेटन और जिन्ना के बीच मीटिंग में तय हुई कि 5 अगस्त को कलात स्वतंत्र होगा. कलात में लॉस बुला, मारी, खारान, बुग्ती को शामिल कर बलूचिस्तान बनाया जाएगा. इस फैसले के कागज पर दस्तखत 11 अगस्त की दोपहर में हुआ. आजादी के सिर्फ 225 दिन ही हो रहे थे. 1अप्रैल 1948 को पाकिस्तान ने हमला कर उसे अपने में मिला लिया.
स्वतंत्रता के पीछे अंग्रेजों की एक संधि
इस स्वतंत्रता के पीछे अंग्रेजों की एक संधि थी. अंग्रेजों ने अखंड भारत की 560 रियासतों को एक कैटिगरी में रखा. सिक्किम और भूटान बी कैटिगरी के प्रांत रहे थे. साल 1876 में एक संधि के तहत इन्हें अंग्रेजों ने आंतरिक स्वतंत्रता दी थी. भारत-पाक में इसलिए किसी ने कलात को अपने में शामिल करने का दबाव नहीं बनाया था. दशक 60 में विद्रोह ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और तब से लेकर अब तक बलूचिस्तान पाकिस्तानी हुकूमत का विरोध करता रहा है. बलूचिस्तान के लोग आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं, परन्तु अब पाकिस्तान हमेशा आरोप लगाता है कि भारत यहां के लोगों को भड़का रहा है.
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भोपाल और हैदराबाद के नवाब बहकावे में आकर बीकानेर रियासत के महाराजा सादुल सिंह भी विलय को लेकर असमंजस की स्थिति में पहुंच गए और कहा पाकिस्तान के साथ बीकानेर का विलय संभव नहीं है, इससे जनता भड़क सकती है और हालात बिगड़ जाएंगे. महाराजा सादुल सिंह ने दोबारा भोपाल और हैदराबाद के चक्कर में वक्त जाया ही नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ हैदराबाद के नवाब ने भारत में विलय पर फैसला लेने के लिए 2 महीने की इजाजत मांगी थी. लेकिन माउंटबेटन ने इसे स्वीकार कर लिया था. बंगाल के सोडेपुर आश्रम में गांधी का तीसरा दिन था और 3 दिन किसी भी इलाके में दंगे की खबर नहीं आई थी. गांधी ने दोपहर में तय किया कि शाम में दंगाग्रस्त इलाकों का हाल देखने के लिए जाएंगे. किन्तु इस सूचना पर पश्चिम बंगाल के होने वाले cm प्रफुल्ल चंद्र घोष, पुलिस कमिश्नर एसएन चटर्जी और भी सोडेपुर आश्रम पहुंच गए. चंद रोज पहले 3 बड़े पुलिस अधिकारियों पर बम से हमला हुआ था. अब भी अस्पताल में हैं, यहां कोई अधिकारी या नेता नहीं चाहता है कि गांधी उन इलाकों में जाए, उनकी सुरक्षा को लेकर सभी चिंतित हैं.
गांधी जी किसी के बात को नहीं सुन रहे थे. आश्रम में शाम के समय बापू निकले तो नेता और अफसर साथ में चलने लगे. चिटपोर, पाइक पारा, माणिकतोला, बेलगाछी, बेलियाघाट, नर्केल, तंगरा, एंटली, राजा बाजार पूरी तरह से बर्बाद हो चुके थे. हर तरफ सिर्फ खंडहर दिख रहे हैं. बापू ने चल रहे प्रफुल्ल चंद्र घोष से कहा कि जो भी इस हिंसा के प्रभावित हैं, उन तक मदद पहुंचाई जाए.
देश आजाद हुआ तो प्रफुल्ल चंद्र घोष को पश्चिम बंगाल का पहला मुख्यमंत्री नाया गया था. उन्हें सीएम बनाया कांग्रेस ने बनाया था. 1948 में अविश्वास प्रस्ताव से हटा भी दिया था. उन्होंने फिर कृषक मजदूर पार्टी बनाई. इसका सोशलिस्ट पार्टी में विलय हो गया था. 1967 में संयुक्त मोर्चा सरकार में प्रफुल्ल खाद्य को पश्चिम बंगाल की पहली खाद्य मंत्री बने थे. फिर सरकार गिरी तो कांग्रेस के सहयोग से पश्चिम बंगाल के सीएम बन गए. 1969 के चुनाव हारने के बाद संन्यास लेकर समाज सेवा में जुट गए थे.